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नानाजीवापेक्षया
गुण
मार्गणा
एकजीवापेक्षया
- प्रमाण
प्रमाण
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काल
स्थान
नं०१/ नं०/२/ जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष न०१ नं०/३ | जघन्य
विशेष
उत्कृष्ट
विशेष
भा०२-१५
१ समय
१जीववत्
क्रोध मान माया| ६-६ | २५१-
(उप०) | २५२
अन्तमु० जघन्यवर २५३
प्रवाह २८४
१ समय
अन्तर्मुहुर्त
सर्वोत्कृष्ट स्थिति
८६.१० में अवरोहक और १,१० में आरोहक व अवरो. हक के प्रथम समय में मरण
२१७
| लोभ कषाय ८-१०
(क्षप०) क्रोध मान माया ८.६ २५५
(क्षप०) | २५६ लोभ ८-१०
(उप०) अकषायी |११-१४/२५६
जधन्यसे संगुणा
अन्तर्म
२५८
मरण रहित शेष भंग | उपरोक्तवत् (दे० कास/)
-
मूलोघवत् । -
।
मुखोववव
७ शान मार्गणा
मति श्रुतअज्ञान
३१-३२ सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा बिचोदाभाव
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जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
अन्तर्मुः
, सादि सान्स विभंग सामान्य .. (मन्नु० तिर्य०)
. . . .
घ/81 ३६७
३१-३२]
मतिश्रुत अवधिझान
१३३- | अनन्त अनादि अनन्त व अनादि अनन्त
जघन्यवद सान्त ज्ञान परिवर्तन कुछ कम अर्ध सम्यक्त्वसे मिथ्यात्व फिर सम्मक्स्व
पु० परि० देव नारकीमें उपरोक्त प्रकार १३९- १समय उप० सम्य० देव नारकी-अन्तम० कम १४०
द्विती. समय सासा.हो मरे। ३३ सा० घ/8/- समय | औदारिक शरीरकी संघा- अन्तर्मुहर्त
तनपरिशातन कृति देव नारकी सन्यक्त्वी हो ६६ सागर+४ पुनः मिथ्या। पूर्व को०
( देखो काल/५) ० इतने काल पश्चात् मरण
८ वर्ष कम १८ वर्ष में दीक्षा लेकर शेष उत्कृष्ट को०पू०
आयु पर्यन्त | अन्तर्मुहूर्त ( दे० दर्शन/३/२) मूलोधवत्
१४३
मनःपर्यय
३१-३२ सर्वदा विच्छेदाभाव सर्वदा विच्छेदाभाव
१४
केवलज्ञान
(क.पा.)
-
२६१/
मलिश्रुत अज्ञान| १-२ | २६०- विभंग ज्ञान १ | २६२ ।
क. । .
- स्लोघवत्
। २६१ विच्छेदाभाव
। सर्वदा बिच्छेदाभाव। २६३
६. कालानुयोग विषयक प्ररूपणाएं
अन्तर्मु० गुणस्थान परिवर्तन
। २६४
|३३ सागर से सप्तम पृथिवीको अपेक्षा
अन्तम० कम अन्तमुहत
| मनुष्य तियंचकी अपेक्षा
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