Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 610
________________ निक्षेप चलता पूर्ण प्रवृत्ति करनेवाला जीव और वह भावागम भी परिचित कहा जाता है । ४. शिष्योंको पढानेका नाम वाचना है । वह चार प्रकार है- नन्दा, भद्रा, जया और सौम्या । ( विशेष दे० वाचना ) | इन चार प्रकारकी वाचनाओको प्राप्त वाचनोपगत कहलाता है । अर्थात् जो दूसरोको ज्ञान करानेमे समर्थ है वह वाचनोपगत है । १. तीर से निकला बीजपद सूत्र कहलाता है। (विशेष देखो आगम ७) उस सूत्र के साथ चूँ कि रहता अर्थात् उत्पन्न होता है, अतः गणधर देव में स्थित श्रुतज्ञान सूत्रसम कहा गया है । ६, जो ''जाना जाता है यह वाक्यका विषय अर्थ है, उस अर्थ के साथ रहने के कारण अर्थसम कहलाता है। श्रुत अनायकी अपेक्षा न करके सथमसे उत्पन्न हुए श्रुतज्ञानावरण क्षयो पशमसे जन्य स्वयंबुद्धोमे रहनेवाला द्वादशांगत अर्थसम है यह अभिप्राय है । ७ गणधर देवसे रचा गया द्रव्यश्रुत ग्रन्थ कहा जाता है। उसके साथ गहने अर्थाद उत्पन्न होनेके कारण मुख आचार्योंमे स्थित द्वादशांग श्रुतज्ञान ग्रन्थसम कहलाता है । ८, 'नाना मिनोति' अर्थात नानारूप जो जानता है उसे नाम कहते है। अनेको कमद्वारा भेद करनेके कारण एक आदि अपरूप मारह अगोके अनुयोगोंके मध्य स्थित द्रव्यश्रुत ज्ञानके भेद नाम है, यह अभिप्राय है । उस नामके अर्थात् के साथ रहने अर्थात होनेके कारण दोष आचार्योंमें स्थित श्रुतज्ञान नामसम कहलाता है । ६. सूची; मुद्रा आदि पाँच दृष्टान्तोंके वचनसे (दे० अनुयोग / २ / १) घोष संज्ञावाला अनुयोगका अनुयोग (घोषानुयोग ) नामका एकदेश होनेते अनुयोग कहा जाता है क्योंकि पद अरगम्यमान अर्थ उरुपदके एकदेशभृत भामा शब्द से भी जाना ही जाता है ।...घोष अर्थात् द्रव्यानुयोगद्वारके समं अर्थात् साथ रहता है, अर्थात उत्पन्न होता है, इस कारण अनुयोग झन घोष कहलाता है। नोट-ये उपरोक्त नौकेनौ भेदों यहाँ भी दिये है (ध. १/४ १.६२/६२/२४९/५) (१२/२६१२०-१) ६०२ ९. ग्रन्थिम आदि भेदोंके लक्षण ध. १/२,१.६४/२०२/१३ सत्य गंधणकिरियापितमादिद गंवि धाम वाकिरियाप्प पारि-विदयबालकंस स्थाविदम्यवाद काम सुतिको der किरियाणिफण्णं वेदिमं णाम । तलाव लि-जिणहरा हिट्ठाणादिद पूरणकिरियाणिफण्णं पूरिमं णाम । कट्टिमणिधर पावरहादिव्वं कहिय पत्थरादिसंवाद किरिया संचा दिमं गामणिर्ममनुजंगीरादि बहोदिन किरिया फिरण महोदिमं णाम। अहोदिमकिरियासचित अचिम्बा रोवणकिरिति हो। पोखरिणी यायी मतनायमादि-सुरु दव्वं णिक्खोदण करियाणिप्फण्णं णिवखोदिमं णाम । णिक्खोदणंमिदितं होदि एक-दू-मिस- डोराम किरियामिमि नाम गंधिम-वाहमा पाम पिसारयामसि च नायकुलार्ण किरिया गररया दिवाणामपि पिंडिया कादि किरिया णं णाम बहूणं दवा 'जागेणुइदगंध पहाणं दव्वं गंधं णाम । घुट्ट-पिट्ठ- चंदण-कुंकुमदिवसे शाम १ ग्रन्धनेरूप किया सिद्ध हुए फूल आदि द्रव्यको ग्रन्थिम कहते हैं । २. बुनना क्रियासे सिद्ध हुए सूप पिटारी, चंगेर, कृतक, चालनी, कम्बल और वस्त्र आदि द्रव्य वाम कहा है। २. बेधन कियाने सिद्ध हुए सूति (सोम निकालनेका स्थान ) इंधुत्र ( भट्ठी ) कोश और पत्य आदि द्रव्य बेधिम कहे - Jain Education International ६. द्रव्यनिक्षेप निर्देश व शंकाएँ जाते है । ४. पूरण क्रियासे सिद्ध हुए तालाबका बाँध व जिनग्रहका चबूतरा आदि द्रव्यका नाम पूरिम है । ५. काष्ठ, ईंट और पत्थर आदिकी संघातन क्रियासे सिद्ध हुए कृत्रिम जिनभवन, गृह, प्राकार और स्तूप आदि द्रव्य सघातिम कहलाते है । ६ नीम, आम, जामुन ओर अंबीर आदि अयोधि क्रियासे सिद्ध हुए द्रव्यको अघोधि " कहते हैं । अधोधिम क्रियाका अर्थ सचित्त और अचित्त द्रव्योंकी रोपन किया है। यह तात्पर्य है ७ पुष्करिणी, बापी फूप. तडाग, लयन और सुरग आदि निष्खनन क्रियासे सिद्ध हुए द्रव्य णिवरखोदिम कहलाते है। खिदिमसे अभिप्राय खोदना किया है) उपबेलन क्रिया सिद्ध हुए एकगुणे, दुगुने एवं तिगुणे सूत्र डोरा, वेष्ट आदि द्रव्य उपवेल्लन कहलाते हैं । ६. ग्रन्थिम व वाइम आदि द्रव्य के उद्वेल्लनसे उत्पन्न हुए द्रव्य उद्वेल्लिम कहलाते हैं । १०. चित्रकार एवं वर्णोंके उत्पादनमे निपुण दूसरोंकी क्रियासे सिद्ध मनुष्य. तुरग आदि अनेक आकाररूप द्रव्य वर्ण कहे जाते हैं । ११, चूर्णन क्रियासे सिद्ध हुए पिष्ट, पिष्टिका, और कणिका आदि द्रव्यको चूर्ण कहते है । १२. बहुत द्रव्योंके संयोग से उत्पादित गन्धकी प्रधानता रखनेवाले द्रव्यका नाम गन्ध है । १३. घिसे व पीसे गये चन्दन और ककुम आदि द्रव्य विलेपन कहे जाते हैं । ६. द्रव्यनिक्षेप निर्देश व शंकाएँ १. द्रव्य निक्षेपके लक्षण सम्बन्धी शंका दे द्रव्य / २/२ (भविष्य पर्यायके प्रति अभिमुखपने रूप लक्षण 'गुणपर्ययवान द्रव्य इस लक्षणके साथ विशेषको प्राप्त नहीं होता)। रा. वा./१/५/४/२८/२५ युक्तं तावत् सम्यग्दर्शनप्राप्ति प्रति गृहीताभिमुख्यमिति, अतत्परिणामस्य जीवस्य संभवातः इदं त्वयुक्तम्जीवनपर्यायप्राप्ति प्रति गृहीताभिमुख्यमिति । कुतः । सदा तत्परिणामात् । यदि न स्यात, प्रागजीव प्राप्नोतीति । नैष दोष, मनुष्यजीवादिविषापेक्षा सव्यपदेशो मेदितव्यः प्रश्न- सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिके प्रति अभिमुख कहना तो मुख है; क्योंकि पहले जो पर्याय नहीं है, उसका आगे होना सम्भव है; परन्तु जीवनपर्यायके प्रति अभिमुख कहना तो युक्त नहीं है, क्योंकि, उस पर्यायरूप तो यह सदा ही रहता है। यदि न रहता तो उससे पहले उसे अजीब का प्रसंग प्राप्त होता 1 उत्तर - यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि, यहाँ जीवन सामान्यकी अपेक्षा उपरोक्त बात नहीं कही गयी है, बि मनुष्यादिपने रूप जीवल विशेषको अपेक्षा भात कही है। नोट - यह लक्षण नोआगम तथा भावी नोआगम द्रव्य निक्षेपमें घटित होता है- (दे० निक्षेप /६/३/२.२ ) । २. आगम द्रव्य निक्षेप विषयक शंका १. आगम-द्रव्य - निक्षेपमें द्रव्यनिक्षेपपनेकी सिद्धि श्लो, वा. २/१/५/६६/२७०/१ तदेवेदमित्येकत्व प्रत्यभिज्ञानमन्वयप्रत्ययः । सतावज्जोवादिप्राभृतज्ञायिन्यात्मन्यनुपयुक्ते जीवाद्यागमद्रव्येऽस्ति । स एवाहं जीवादिप्राभृतज्ञाने स्वयमुपयुक्त प्रागासम् स एवेदानीं तत्रानुपयुक्त वर्ते पुनरुपयुक्तो भविष्यामीति संप्रत्ययात् । - 'यह वही है' इस प्रकारका एकत्व प्रत्यभिज्ञान अन्वयज्ञान कहलाता है। जीवादि विषयक शास्त्रको जाननेवाले वर्तमान अनुपयुक्त आत्मामें वह अवश्य विद्यमान है। क्योंकि, 'जो ही मे जीवादि शास्त्रोंको जाननेमें पहले उपयोग सहित था, वही मैं इस समय उस शास्त्रज्ञानमें उपयोग रहित होकर वर्त रहा हूँ और पीछे फिर शास्त्रज्ञानमें उपयुक्त हो जाऊँगा । इस प्रकार द्रव्यपनेकी लडीको लिये हुए भले प्रकार ज्ञान हो रहा है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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