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न्याय
६३२
१. न्याय दर्शन निर्देश
४. जैन न्यायके अवयव
चार्ट नं०१
वस्तु विवेक
(न्या-दी-/१/६२/५)
उद्देश्य
लक्षणानिर्देश
(वस्तुकोनामनिशा
परीक्षा (वस्तुकानामनिदश)सम्यक
मिध्या (लक्षण) (लक्षणामास)
प्रमाण
(देनय) आत्मभूत अनात्ममूत अतिव्याप्त अव्याप्त असम्सव सम्यक मिश्या
(प्रमाण) (प्रमाणामास)
नय
प्रत्यक्ष
परोक्ष
आगम
सम्यक
मिथ्या स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क (प्रत्यक्ष)
अनुमान (प्रत्यक्षामास)
(व्यामिज्ञान) (वनज्ञान) सांत्यवहारिक पारमार्थिक बौद्धमान्य) न्यायमान्य - (मतिज्ञान)
कुल्पनापोट इन्द्रियार्थसन्निकष सहभावीक्रमभावी अवग्रह ईहा अवाय धारणा, सकल, दश एकत्व सादृश्य विसादृश्य तत्प्रतियोगी
अवाय धारा केवलज्ञान)
देश
अवधि
मन.पर्यय
स्वार्थानुमान
परानुमान
धर्मी
साधन
(पर्वत)
प्रमाण विकल्प उभय प्रतिज्ञा हेतु उदाहरण उपनय निगमन सिद्ध सिद्ध सिद्ध
देचार्ट ।
अन्धी व्यतिरेकी
चार्टन
हेतु
(दे.हेतु)
हेतु
सम्यक हेतु
मिथ्याहेत
(हेत्वाभास) उपलब्धि
अनुपलब्धि (विधिरूप) (प्रतिषेधरूप)
(हे हेतु)
___प्रसिद्ध विरुद्ध अनैकान्तिक अकिंचित्कर अविरुद्धो- विरुद्धोप- अविरुद्धानुप- विरुद्धानुपपलब्धि लब्धि
लब्धि
लब्धि (विधिसाधक) (प्रतिषेधसाधक) (विधि साधक) (प्रतिषेध साधक) व्याप्यन व्याप्या स्वभाव
" सिद्ध सिद्ध विपक्षवृत्ति विपक्षवृत्ति विषय साधन
कार्य कार्य- कार्य व्याप्य कारण
प्रत्यक्ष अनुमान आगम लोक स्ववचन कारण- कारण कार्य
बाधित बाधित बाधित बाधित बाधित पूर्वचर पूर्वचर कारणउत्तरचर उतरचर- पूर्वचर सहचर, सहचरJ उत्तरचर
सहचर)
स्वभाव
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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