Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 531
________________ नय ४. सामान्य विशेष आदि धर्मोरूप ४७ नयका निर्देश प्र. सा./त.प्र./ परि/नय नं० तत्तु द्रव्यनयेन पटमात्रवञ्चिन्मात्रम् | ११ पर्यायनयेन तन्तुमात्र दर्शनज्ञानादिमात्र २ विकल्पनयेन शिशुकुमारस्थविरे पुरुषवत्सविकम्प | १०|अविकम्पनयेने करुपमा |११| सामान्यनयेन हारसग्दामसुत्रापि ॥१६॥ विशेषनयेन तदेकमुक्ताफलवदव्यापि | १७ | नित्यनयेन नटवदवस्थायि | १८) अनित्यनयेन रामरावणमदनवस्थावि । १६। सर्वगतनयेन विस्फुरिताक्षचक्षु | २०| असर्व पतनयेन मीलितादात्मवति |२१| शुन्यनयेन शुन्यागारवत्केवलोद्भासि] [२२] अशून्यनयेन लोकाक्रान्तनमितासि ॥२३॥ ज्ञानानयेन महदिन्धनभारपरिणत धूमकेतुववेक | २४| ज्ञानयद्वैतनयेन परप्रतिभिम्भसंवृत्तदर्पनदने कम् | २५ नियतिनयेन नियमितोष्णय नहि नियत स्वभावभासि ॥२६॥ अनियतनयेन नित्यनियमितोपानीयवदनियतस्वभावभासि [२७] स्वभावनयेनानिशिततीक्ष्णकण्टकवत्संस्कारार्थस्यकारि |२८| स्वभावनयेनायस्कारनिविवरसस स्कारसार्थक्यकारि |२| कालनयेन निवाब दिवसानुसारिपच्यमानसहकारफलमसमयायत्तसिद्धिः दः |३०| अकालनयेन कृत्रिमोष्मपाच्यमान सहकार फलवत्समनानायत सिद्धि. ११ पुरुषाकारमयेन पुरुषकारोपधुकुटीक पुरुषकारवादी साध्यसिद्धिः ॥३२॥ देवमयेन पुरुषाकारवादिदतमधुकुक्कुटो गर्भ सम्प्रमाणिक्यदेवादिवदनसाध्यसिद्धिः |३३| ईश्वरनयेन धात्रीहटावलेह्य मानपान्थबालकवत्पारतन्त्र्यभोक्तृ |३४| अनीश्वरनयेन स्वच्छन्ददारित कुरङ्ग कण्ठीरववतन्त्र्यभोक्तृ । ३५। गुनियेनोपाध्याय विनीयमानकुमारकवद्गुणग्राहि । ३६ । अगुणिनयेनोपाध्याय विमीयमान कुमार काध्याय केवलमेन साक्षि |३७| तू नयेन जयागादिपरिनामवतु ॥ अ नयेन स्वकर्मप्रवृत ध्यक्षसमेन साक्षि | २१| भोषनयेन हिताहिताभोक्तृव्याधित दुखादिभक्त 1201 अभोक्तृनयेन हिताहितानोपाधिया ध्यक्षधन्वन्तरिचरवत् केवलमेव साक्षी [४१] क्रियानमेन स्थाभिन्नमूर्धजातदृष्टिलब्ध निधानान्धवदनुष्ठानप्राधान्यसाध्यसिद्धिः ॥४२॥ ज्ञाननयेन चकटीत चिन्तामणिगृहकाणचा विजयद्विवेकप्राधान्यसाध्यसिद्धिः |४३| व्यवहारनयेन बन्धकमोचकपरमाण्वन्तरसंयुज्यमानवियुज्यमानपरमाणुबन्धमोक्षयोतानुवति ॥४४॥ निश्चयनयेन केवलबध्यमानमुच्यमानमधीतिस्निग्ध गुण परिणतपरमाणुमोक्षमता ४५ अनुनयेन घटशराम विशिष्टमात्र वत्सोपाधिस्वभावम् ॥४६॥ शुद्धनयेन केवलमृण्मात्रवन्निरुपाधिस्वभावम् | ४७] = १. आत्मद्रव्य द्रव्यनयसे, पटमात्रकी भाँति चिन्मात्र है । २, पर्यायनयसे वह तन्तुमात्रकी भाँति दर्शनज्ञानादि मात्र है । ३. विकल्पमय से बालक कुमार और वृद्ध ऐसे एक पुरुषको भाँति सविकल्प है। ४. विकल्पनयले एकपुरुषमात्रकी भाँति अविकल्प है । ५. सामान्यनयसे हार माला कण्ठीके डोरेकी भाँति व्यापक है । ६. विशेष नयसे उसके एक मोतीकी भाँति, अव्यापक है । ७. नित्यनयसे, नटकी भाँति उपस्थायी है। अनित्यनयसे रामरावणकी भाँति अनवस्थायी है (पं. प./पू. ७००६) १. सर्वगतन से खुली हुई आँखी भांति सर्ववर्ती है। १०. अगलनय सेमिची हुई आँखकी भाँति आत्मवर्ती है । ११. शून्यनयसे शून्यपरकी भाँति एकाकी भासित होता है। १२. अशून्यनयसे लोगों से भरे हुए जहाजकी भाँति मिलित भासित होता है । १३. ज्ञानज्ञेय अद्वैतनयसे महान ईन्धनसमूहरूप परिणत अग्निकी भाँति एक है । १४. ज्ञानपरके प्रतिबिम्बोंसे संपृक्त दर्पणकी भाँति अनेक है । १५. आत्मद्रव्य नियतिनयसे नियतस्वभाव रूप भासित होता है, जिसकी उष्णता नियमित होती है ऐसी अग्निकी भाँति । Jain Education International ५२३ I नय सामान्य १६. अनियतनयसे अनियतस्वभावरूप भासित होता है, जिसकी उष्णता नियमित नहीं है ऐसे पानीकी भाँति १० स्वभावनय से संस्कारको निरर्थक करनेवाला है, जिसकी किसीसे नोक नहीं निकाली जाती, ऐसे पैने कॉटेकी भाँति । १८. अस्वभावनयसे सस्कारको सार्थक करनेवाला है, जिसकी बुहारके द्वारा नोक निकाली गयी है, ऐसे पैने बाणकी भाँति १६. कालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार रामती है ऐसा है. गर्मी के दिनोंके अनुसार पकनेवाले आम फलकी भाँति । २०. अकालनयसे जिसकी सिद्धि समयपर आधार नहीं रखती ऐसा है कृत्रिम गर्मी पकाये गये आयफलकी भाँति । २१. पुरुषाकारनयसे जिसकी सिद्धि यत्नसाध्य है ऐसा है, जिसे पुरुषाकारसे नौका वृक्ष प्राप्त होता है, ऐसे पुरुषाकारवादीकी भाँति । २२. देवनयसे जिसकी सिद्धि अयत्नसाध्य है ऐसा है, पुरुषाकारवादी द्वारा प्रदत नींबूके वृक्ष के भीतरसे जिसे माणिक प्राप्त हो जाता है, ऐसे देवबादकी भाँति २३ ईश्वरनय से परतंत्रता भोगनेवाला है, घायकी दुकान पर दूध पिलाये जानेवाले राहगीर २४. अनोश्वरमय से स्वतन्त्रता भोगनेवाला है, हिरनको स्वच्छन्दतापूर्वक फाडकर खा जानेवाले सिहकी भाँति । २५. आत्मद्रव्य गुणीनयसे गुणग्राही है, शिक्षकके द्वारा जिसे शिक्षा दी जाती है ऐसे कुमारकी भाँति । २६. अनुगीनयसे केवल साली ही है। २७ क नय से रंगरेजको भाँति रागादि परिणामका कर्ता है। २८ अकर्तृ नय से केवल साक्षी ही है. अपने कार्य में प्रवृत्त रंगरेजको देखनेवाले पुरुषकी भाँति २१ भोक्तृनयसे सुख-दुखादिका भोता है, हिसकारीअहितकारी अन्नको खानेवाले रोगीकी भाँति । ३०. अभोक्तृनयसे केवल साक्षी हो है. हितकारी अहितकारी अझको खानेवाले रोगीको देखनेवाले वैद्यकी भाँति ३१. किमानयसे अनुष्ठानकी प्रधानता से सिद्धि साधित हो ऐसा है, खम्भेसे सिर फूट जानेपर दृष्टि उत्पन्न होकर जिसे निधान प्राप्त हो जाय ऐसे अन्धेकी भाँति । ३२. ज्ञानमयसे विवेककी प्रधान सिद्धि साधित हो ऐसा है मुट्ठीभर चने देकर चिन्तामणि रत्न खरीदनेवाले घरके कोनेमें बैठे हुए व्यापारीकी भाँति । ३३ आत्मद्रव्य व्यवहारनयसे बन्ध और मोक्ष में द्वैतका अनुसरण करनेवाला है: बन्धक और मोचक अन्य परमाणु के साथ संयुक्त होनेवाले और उससे वियुक्त होनेवाले परमाणुकी भाँति ३४. निश्चयनयसे मन्ध और मोक्षमें बतका अनुसरण करनेवाला है; अवेले बध्यमान और मुच्यमान ऐसे बन्ध मोक्षोचित स्मग्लरूपगुणरूप परिणत परमाकी भांति ३५. अनुनयसे घट और रामपात्रसे विशिष्ट मिट्टी मात्रकी भांति सोपाधि स्वभावबाला है । ३६. शुद्धनयसे केवल मिट्टी मात्रकी भाँति निरुपाधि स्वभाववाला है। पं. घ. //लोक अस्ति द्रव्यं गुणोऽथवा पर्यायस्त्रयंमियोऽनेक व्यवहारे कविशिष्टो नयः स वानेकसंज्ञको न्यायात् । ७५२ | एक सदिति द्रव्यं गुणोऽथवा पर्ययोऽपवा] नाम्ना श्रद्वयमन्यतरं धम एक परिणममानेऽपि तथाभूतेभवनश्यमानेऽपि । नायमपूर्वो भावः पर्यायाधिकविभावन अभिनवभाव परिणतेर्योऽयं वस्तुन्यपूर्व समयो य' । इति यो वदति स कश्चित्पर्यायार्थिकन येष्वभावनय ॥७६४ | अस्तित्वं नामगुण. स्यादिति साधारणः स तस्य । तत्पर्ययश्च नय' समासतोऽस्तित्वनय इति वा । ५६३॥ कर्तृत्वं जीवगुणोऽस्त्वथ वैभाविकोऽथवा भाव। तत्पविशिष्ट कर्तृत्वनयो यथा नाम २५१४| ३७. व्यवहार नयसे द्रव्य, गुण, पर्याय अपने अपने स्वरूपसे परस्परमें पृथक-पृथक हैं, ऐसी अनेनय है 10 १८ नामकी अपेक्षा पृथक्-पृथक् हुए 「 जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org

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