Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 538
________________ नय ५३० III नैगम आदि सात नय निर्देश शुद्वद्रव्यार्थपर्यायनै गमः, शुद्भद्र व्यव्यानपर्यायनै गमः, अशुद्धद्रव्यार्थपर्यायनैगम;- अशुद्रव्यव्यब्जनपर्यायनैगमश्चेति नवधा नैगमः साभास उदाहृत' परीक्षणीयः ।-नैगमनय तीन प्रकारका है-पर्यायनैगम, द्रव्यनगम, द्रव्यपर्यायनैगम । तहाँ पर्यायनै गम तीन प्रकारका है-अर्थपर्यायनै गम, व्यजनपर्यायनैगम और अर्थव्यञ्जनपर्यायनै गम। द्रव्यनै गमनय दो प्रकार का है-शुद्धदव्यनगम और अशुद्धद्रव्यनै गम । द्रव्यपर्यायनैगम चार प्रकार है-शुद्ध द्रव्यार्थपर्याय नैगम, शुद्धद्रव्यव्यजनपर्यायनै गम, अशुद्ध द्रव्यार्थपर्याय नैगम, अशुद्ध द्रव्यव्यञ्जनपर्यायनैगम । ऐसे नौ प्रकारका नैगमनय और इन नौ ही प्रकारका नै गमाभास उदाहरण पूर्वक कहे गये हैं । (क. पा. १/१३-१४/३२०२/२४४/१); (ध.१/४,१,४५/१८१/३)। आ. प./५ नै गमस्त्रेधा भूतभाविवर्तमानकालभेदात् । -भूत, भावि और वर्तमानकालके भेदसे (संकल्पनाही) नै गमनय तीन प्रकार का है। (नि. सा./ता. वृ./१६)। ५. मृत मावी व वर्तमान नैगमनयके लक्षण आ. प./५ अतीते बर्तमानारोपणं यत्र स भूतनैगमो। ...भाविनि भूतबत्कथनं यत्र स भाविनै गमो। ... कर्तुमारब्धमीषन्निष्पन्नमनिष्पन्न वा वस्तु निष्पन्नवत्कथ्यते यत्र स वर्तमाननैगमो। - अतीत कार्य मे 'आज हुआ है' ऐसा वर्तमानका आरोप या उपचार करना भूत नै गमनय है। होनेवाले कार्यको 'हो चुका' ऐसा भूतवद कथन करना भावी नै गमनय है। और जो कार्य करना प्रारम्भ कर दिया गया है, परन्तु अभी तक जो निष्पन्न नहीं हुआ है, कुछ निष्पन्न है और कुछ अनिष्पन्न उस कार्यको 'हो गया' ऐसा निष्पन्नवत् कथन करना वर्तमान नैगमनय है (न.च. वृ./२०६-२०८); (न. च./श्रुत/ पृ. १२)। ६. भूत भावी व वर्तमान नैगमनयके उदाहरण १. भूत नैगम आ. प./५ भूतनै गमो यथा, अद्य दीपोत्सवदिने श्रीवर्द्धमानस्वामी मोक्षगत आज दीपावलीके दिन भगवान बर्द्धमान मोक्ष गये हैं, ऐसा कहना भूत नैगमनय है । (न. च. वृ./२०६ ): (न च./श्रुत/पृ. १०) । नि, सा./ता. वृ./१६ भूतनै गमनयापेक्षया भगवता सिद्धानामपि व्यञ्जनपर्यायत्वमशुद्धत्वं च संभवति। पूर्वकाले ते भगवन्तः संसारिण इति व्यवहारात् । - भूत नैगमनयकी अपेक्षासे भगवन्त सिद्धोंको भी व्यञ्जनपर्यायवानपना और अशुद्धपना सम्भावित होता है, क्योंकि पूर्व कालमें वे भगवन्त संसारी थे ऐसा व्यवहार है। द्र.सं /टी./१४/४८/६ अन्तरात्मावस्थायां तु महिरात्मा भूतपूर्वन्यायेन घृतघटवत्...परमात्मावस्थायां पुनरन्तरात्मबहिरात्मद्वयं भूतपूर्वनयेनेति । = अन्तरात्माकी अवस्थामें बहिरात्मा और परमात्माकी अवस्थामें अन्तरात्मा व बहिरात्मी दोनों घीके घड़ेवत् भूतपूर्व न्यायसे जानने चाहिए। २. भावी नैगमनय आ. प./५ भावि नैगमो यथा-अर्डन सिद्ध एव । = भावी नैगमनयकी अपेक्षा अर्हन्त भगवान सिद्ध ही हैं । न.च. वृ./२०७ णिप्पण्णमिव पर्जपदि भाविपदत्य णरो अणिप्पण्णं । अप्पत्थे जह पत्थं भण्णइ सो भाविणइगमत्तिणओ।२०७। जो पदार्थ अभी अनिष्पन्न है, और भावी कालमें निष्पन्न होनेवाला है, उसे निप्पन्नवत् कहना भावी नैगमनय है। जैसे-जो अभी प्रस्थ नहीं बना है ऐसे काठके टुकड़ेको हो प्रस्थ कह देना । (न. च./श्रुत/पृ.११) (और भी-दे० पीछे संकल्पग्राही नैगमका उदाहरण )। ध.१२/४,२,१०,२/३०३/५ उदीर्ण स्य भवतु नाम प्रकृतिव्यपदेश', फलदातृत्वेन परिणतत्वात् । न बध्यमानोपशान्तयो, तत्र तदभावादिति । न, त्रिष्वपि कालेषु प्रकृतिशब्दसिद्धे । ...भूदभविस्सपज्जायाणं, वट्टमाणत्तम्भुषगमादो वा णेगमणयम्मि एसा बुत्पत्ती घडदे । प्रश्न - उदीर्ण कर्म पुलस्कन्धकी प्रकृति संज्ञा भले ही हो, क्योकि, वह फलदान स्वरूपसे परिणत है। बध्यमान और उपशान्त कर्म पुद्गलस्कन्धों की यह सज्ञा नहीं बन सकती, क्योंकि, उनमें फलदान स्वरूपका अभाव है । उत्तर-नहीं, क्योकि, तीनों ही कालोमे प्रकृति शब्दकी सिद्धि की गयी है। भूत व भविष्यत् पर्यायोको वर्तमान रूप स्वीकार कर लेनेसे नैगमनयमें व्युत्पत्ति बैठ जाती है। दे० अपूर्व करण/४ (भूत व भावी नै गमनयसे ८३ गुणस्थानमें उपशामक वक्षपक संज्ञा बन जाती है, भले ही वहाँ एक भी कर्मका उपशम या क्षय नहीं होता। द्र.सं./टी/१४/४८/८ बहिरात्मावस्थायामन्तरात्मपरमात्मद्वयं शक्तिरूपेण भाविनैगमनयेन व्यक्तिरूपेण च विज्ञयम्, अन्तरात्मावस्थायां.. परमात्मस्वरूप तु शक्तिरूपेण भाविनै गमनयेन व्यक्तिरूपेण च । - बहिरात्माकी दशामें अन्तरात्मा तथा परमात्मा ये दोनों शक्तिरूपसे तो रहते ही हैं, परन्तु भाविन गमनयसे व्यक्तिरूपसे भी रहते हैं। इसी प्रकार अन्तरारमाकी दशामें परमात्मस्वरूप शक्तिरूपसे तो रहता ही है, परन्तु भाविनै गमनयसे व्यक्तिरूपसे भी रहता है। पं. ध /उ./६२१ तेभ्योऽयंगपि छद्मस्थरूपास्तद्रूपधारिण। गुरवः स्युगुरोर्यायान्नान्योऽवस्थाविशेषभाक् ।६२११- देव होनेसे पहले भी, छद्मस्थ रूपमें विद्यमान मुनिको देवरूपका धारी होने करि गुरु कह दिया जाता है । वास्तव में तो देव ही गुरु हैं । ऐसा भावि नैगमनयसे ही कहा जा सकता है। अन्य अवस्था विशेषमें तो किसी भी प्रकार गुरु संज्ञा घटित होती नहीं। ३. वर्तमान नैगमनय आ. प./५ वर्तमाननैगमो यथा-ओदन' पच्यते। वर्तमान नै गमनयसे अधपके चावलो को भी 'भात पकता है' ऐसा कह दिया जाता है। (न. च./श्रुत/पृ. ११)। न. च. वृ./२०८ परद्धा जा किरिया पयणविहाणादि कहइ जो सिद्धा। लोएसे पुच्छमाणे भण्ण इ तं बट्टमाणणयं ।२०८= पाकक्रियाके प्रारम्भ करनेपर ही किसीके पूछनेपर यह कह दिया जाता है, कि भात पक गया है या भात पकाता हूँ, ऐसा वर्तमान नै गमनय है । ( और भी दे० पीछे संकल्पग्राही नैगमनयका उदाहरण)।। ७. पर्याय, द्रव्य व उभयरूप नैगमसामान्यके लक्षण ध.६/४,१,४५/१८१/२ न एकगमो नैगम इति न्यायात शुद्धाशुद्धपर्यायाथिकनयद्वयविषय. पर्यायार्थिकनैगम., द्रव्याथिकनयद्वय विषयः द्रव्यार्थिकनै गम'; द्रव्यपर्यायाथिकनयद्वयविषय. नैगमो द्वन्द्वजः । -जो एकको विषय न करे अर्थात् भेद व अभेद दोनोंको विषय करे वह नैगमनय है' इस न्यायसे जो शुद्ध व अशुद्ध दोनों पर्यायार्थिकनयों के विषयको ग्रहण करनेवाला हो वह पर्यायाथिकनै गमनय है। शुद्ध व अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयों के विषयको ग्रहण करनेवाला द्रव्यार्थिक नैगमनय है । द्रव्यार्थिक और पर्यायाथिक दोनों नयों के विषयको ग्रहण करनेवाला द्वंद्वज अर्थात् द्रव्य पर्यायार्थिक नैगमनय है। क. पा. १/१३-१४/ २०२/२४४/३ युक्त्यवष्टम्भबलेन संग्रहव्यवहारनयविषयः द्रव्यार्थिकनै गमः । ऋजुसूत्रादिनयचतुष्टयविषयं युक्त्यवष्टम्भबलेन प्रतिपन्न' पर्यायाथिकनैगमः । द्रव्यार्थिकनय विषयं पर्यायार्थिकविषयं च प्रतिपन्नः द्रव्यपर्यायाथिकनै गमः। -युक्तिरूप आधारके बलसे संग्रह और व्यवहार इन दोनों (शुद्ध व अशुद्ध द्रव्याथिक) नयोंके विषयको स्वीकार करनेवाला द्रव्यार्थिक नैगमनय है । ऋजु सूत्र आदि चार नयो के विषय को स्वीकार करने वाला पर्यायार्थिव नय है तथा द्रव्यार्थिक व पर्यायाथिक इन दोनों के विषय को स्वीकार करने वान्ना द्रव्यपर्यायाथिक नैगमनय है जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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