Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 588
________________ नरक निं० ति प रा व. ७ ८ पटली या इन्द्रको के नाम १ १ आर आर २ आर मार मार तार ३ तार ४ ह. पुत्रि सा २ ३ ४ योजन उज्ज्व-उज्ज्व- उज्ज्व प्रज्व १ १६ १८ १४८ १७५०८०० fea लित लित लित संज्व- १ १८ १७ १४० १६५८३३२ डे लित संज्य- संजय संज्वलित लित लित εसंप्रज्व संप्रज्य सप्रज्व लित । लित लित ४ पंक प्रभाः तत्त्व वर्चस्क वर्चस्क तमक वैमनस्क तमक तार मार तारा चर्चा तमकी ५ ६ वाद खड खड ७ खडखड अखड खडखड ५. धूमप्रभाः भ्रम १ तमक तमो तम २ । भ्रमक ३ झषक झष ४ वाविल अन्ध ५ तिमिश्र तमिल ६ तमः प्रभा १ हिम हिम २ बदल गईल ३ लब्लक ब्लक ७ महातमः प्रभा१ अवधि- |अप्रति स्थान ष्ठान Jain Education International आरा मारा प्रत्येक पटल मे इन्द्रक घाटा घटा ५ श्रेणी बद्ध दिशा विदिशा कुल योग संप्रज्य- १ १७ १६ १३२ १५६६६६६ लिस ६ ७ १ १६ १५ १ १४ १४ तमका १ १ १४ १३ १ १३ १२ भ्रम झष भ्रमका १ झषका १ अन्त अंधेद्रा १ तमिल तिमि १ श्रका ३ ह - ११२ ११ १२ १ ११ १० ४ १०१८ ८ ६६ ११० ६७६ ६२५००० ५ ८ इन्द्रकोका विस्तार हिम हिम बा १२ बर्दल वाईल ७०० १२४ १४७५००० ९१६/ १३८२३२२ १०८ १२६१६६६ १०० १२००००० |११०८३३३ २६० ८ ६८ ८३३३३३. ७ ००१ ६५२ ६५०००० ६ ५४४ ५५८३२२२ ५४ ३६ ४६६६६६ १६० ४ ३ २८ ३७५००० २ २० २८३३३३ लब्लक लल्लक १ २ १ १२ १६१६६६ ५८० १ ४ अप्रति- अवधि- १ १ ४ ४ १००,००० ष्ठित स्थान नरक मुख - अष्टम नारद थे। अपर नाम नरवक्त्र । विशेष दे० शलाका पुरुष / ६ । नरकांता कूट - नील पर्वतस्थ एक कूट - दे० श्लोक ७ । नरकांता देवी - नरकान्ता कुण्ड निवासिनी एक देवी :--- ३० लोक/३/२०१ नरकांता नदीरम्यक क्षेत्रकी प्रधान नदी । - दे० लोक ३/११ । नरकायु दे० आयु / ३ | नरगीत -- विजयार्ध की दक्षिण श्रेणीका एक नगर - दे० विद्याधर । नलदिवार नरपति - ( म. पु. / ६१ / ८६ - १० ) मघवान चक्रवर्तीका पूर्व का दूसरा भव है। यह उत्कृष्ट तपश्चरणके कारण मध्यम ग्रैवेयक में अहमिन्द्र उत्पन्न हुआ था । नरमद-भरतक्षेत्र पश्चिम आर्यखण्डका एक देश - ३० मनुष्य / ४ । नरवर्मा- - एक भोजवंशी राजा भोजवंशकी वंशावलीके अनुसार यह उदयादित्यका पुत्र और यशोवर्माका पिता था। मालवा देशमें राज्य करता था । धारा या उज्जैनी इसकी राजधानी थी। समयबि. १९५०-१२०० (३० १०६३ ११४३ ) - ३० इतिहास /२/१ नरवाहन- -मगधदेशकी राज्य वंशावलीके अनुसार यह शक जातिका एक सरदार था, जो राजा विक्रमादित्य के काल में मगध देशके किसी भागपर अपना अधिकार जमाये बैठा था। इसका दूसरा नाम नभ सेन था । इतिहास मे इसका नाम नहपान प्रसिद्ध है। श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार मालवादेशकी राज्य वंशावली में भी नभ सेनकी बजाय नरवाहन ही नाम दिया है । भृत्यवंशके गोतमीपुत्र सातकर्णी शालिवाहन) ने दी. नि. ६०५ में इसे परास्त करके इसका देश भी मगध राज्यमे मिला लिया ( क. पा. १/प्र.५३/ पं. महेन्द्र ) और इसीके उपलक्ष्यमे उसने शक संवत् प्रचलित किया था। समय- वी. नि. २६६-६०६ ई. पू. २६-०६) नोट वाहन द्वारा बी.नि. ६० में इसके परास्त होनेकी संगति बैठानेके लिए दे० इति हास / ३ / ३ | नरवृषभ - (म. पु / ६१/६६-६८ ) वीतशोकापुरी नगरीका राजा था । दीक्षा पूर्वक मरणकर सहस्रार स्वर्ग में देव हुआ। यह 'सुदर्शन' नामक के पूर्वका दूसरा भन है-ये सुदर्शन । नरसेनामा कहा, पौपाल पर आदि के रचयिता एक अपभ्रंश कवि गृहस्थ । समय-विश १४ का मध्य (eft,//993) 1 नरेन्द्रसेन- -१ सिद्धान्तसार सग्रह तथा प्रतिष्ठा तिलक के रचयित लाडगड सधी आचार्य गुरु - गुणमेन समय -वश १२ का द्वि चरण (ती / २ /३४) । २. प्रमाण प्रमेय कलिका के रचयिता । गुरुशान्तिमेन । समय-वि १७८०-१७६० । ( इतिहास / ७ /६), (ती./३/ ४२७) । नर्मदा पूर्वदक्षिणी आर्यण्डकी एक नहीं दे० मनुष्य ४ । नल (१. पु/६/१३ व ११६/३६ ) सुग्रीवके चचा ऋक्षरजका पुत्र था | १३ | अन्तमें दीक्षित हो गया था |३६| नलकूबर - ( प. पु. / १२ / ७९ ) राजा इन्द्रका एक लोकपाल जिसने के साथ युद्ध किया । नलदियार - तामिल भाषाका ८००० पद्य प्रमाण एक ग्रन्थ था. जिसे ई० पू० २६१३२२ में विशालाचार्य तथा उनके ८००० शिष्योंने एक रात में रचा था। इसके लिए यह दन्तकथा प्रसिद्ध है कि- बारह वर्षीय दुर्भिक्ष में जब आ. भद्रबाहुका संघ दक्षिण देशमें चला गया तो पाण्ड्य नरेशका उन साधुओंके गुणोंसे बहुत स्नेह हो गया। दुर्भिक्ष समाप्त होनेपर जब विशाखाचार्य पुनः मोकी ओर लौटने लगे तो पाण्डमनरेशने उन्हे स्नेहमा रोकना चाहा तुन आचार्यप्रवरने अपने दस दस शिष्यों को दस दस श्लोकोंमें अपने जीवनके अनुभव नित्रद्ध करनेकी आज्ञा दी। उनके ८००० शिष्य थे, जिन्होंने एक रात में ही अपने अनुभव गाथाओं में गूँथ दिये और सवेरा होते तक ८००० श्लोक प्रमाण एक ग्रन्थ तैयार हो गया। आचार्य ग्रन्थको नदी किनारे छोड़कर बिहार कर गये । राजा उनके बिहारका समाचार जानकर बहुत बिगड़ा और क्रोधवश वे सम जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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