Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 543
________________ नय III नैगम आदि सात नय निर्देश ६. ऋजुसूत्रनयको द्रव्यार्थिक कहनेका कथंचित् विधि निषेध १. कथंचित् निषेध ध.१०/४,२,२,३/११/४ तब्भवसारिच्छसामण्णप्पयदव्वमिच्छतो उजुसुदो कधं ण दव्य ठ्ठियो। ण, घड-पडत्यंभादिवंजणपज्जायपरिच्छिण्णसगपुवावरभावविरहियउजुबट्टविसयस्स दब्बठ्ठियणयत्तविरोहादो। का प्रश्न-तद्भावसामान्य व सादृश्यसामान्यरूप द्रव्यको स्वीकार करनेवाला ऋजुसूत्रनय (दे० स्थूल ऋजुसूत्रनयका लक्षण) द्रव्याथिक कैसे नहीं है। उत्तर-नहीं, क्योंकि, ऋजुसूत्रनय घट, पट व स्तम्भादि स्वरूप व्यंजनपर्यायोंसे परिच्छिन्न ऐसे अपने पूर्वापर भावोंसे रहित वर्तमान मात्रको विषय करता है, अतः उसे द्रव्यार्थिक नय मानने में विरोध आता है अर्थात् स्वीकार करता है. वह ऋजुमूत्र नय है । (रा.वा./१/३३/७/६६/ ३०) (क.पा.१/१३-१४/३१८५/२२३/३) (आ.प./8) २. वर्तमानकालमात्र ग्राही स. सि./२/३३/१४२/६ पूर्वापरास्त्रिकाल विषयानतिशय्य वर्तमानकालविषयानादत्ते अतीतानागतयोविनष्टानुत्पन्नत्वेन व्यवहाराभावात् । -- यह नय पहिले और पीछेवाले तीनो कालों के विषयोंको ग्रहण न करके वर्तमान कालके विषयभूत पदार्थों को ग्रहण करता है, क्योंकि अतीतके विनष्ट और अनागतके अनुत्पन्न होनेसे उनमे व्यवहार नहीं हो सकता । (रा.वा /१/३३/9/६६/११), (रा.वा./४/४२/१७/२६१/५), (ह.पु./५८/४६), (ध.६/४,१,४५/१७१/७) (न्या,टी.//९८५/१२८)। और भी दे० ( नय/III/१/२) (नय/IV/३) २. ऋजुसूत्र नयके भेद ध.६/४,१,४६/२४४/२ उजुसुदो दुविहो सुद्धो असुद्धो चेदि । = ऋजुसूत्रनय शुद्ध और अशुद्धके भेदसे दो प्रकारका है। आ.प./५ ऋजुसूत्रो द्विविध' । सूक्ष्मणुसूत्रो “स्थूलर्जुसूत्रो ।-ऋजुसूत्रनय दो प्रकारका है-सूक्ष्म ऋजुसूत्र और स्थूल ऋजुसूत्र । ३. सूक्ष्म व स्थूल ऋजुसूत्रनयके लक्षण ध.६/४,१,४६/२४४/२ तत्थ सुद्धो बसईकयअत्थपज्जाओ पडिक्रवणं विवट्टमाणासेसत्यो अप्पणो विसयादो ओसारिदसारिच्छ-तब्भावलक्खणसामण्णो । "...तत्थ जो असुद्धो उजुसुदणओ सो चक्रबुपासिय वेंजणपज्जयविसओ।" अर्थपर्यायको विषय करनेवाला शुद्ध अजुसूत्र नय है । वह प्रत्येक क्षणमें परिणमन करनेवाले समस्त पदार्थों को विषय करता हुआ अपने विषयसे सादृश्यसामान्य व तद्भावरूप सामान्यको दूर करनेवाला है । जो अशुद्ध ऋजुसूत्र नय है, वह चक्षु इन्द्रियकी विषयभूत व्यंजन पर्यायोको विषय करनेवाला है। आ.प./५ सूक्ष्मणुसूत्रो यथा-एकसमयावस्थायी पर्यायः । स्थूलसूत्रो यथा-मनुष्यादिपर्यायास्तदायु प्रमाणकालं तिष्ठन्ति । सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय एकसमय अस्थायी पर्यायको विषय करता है। और स्थूल ऋजुसूत्रकी अपेक्षा मनुष्यादि पर्यायें स्व स्व आयुप्रमाणकाल पर्यन्त ठहरती हैं। (न च.बृ./२११-२१२) (न.च./श्रुत/पृ.१६) का.अ./मू./२७४ जो वट्टमाणकाले अत्थपज्जायपरिणदं अत्थं। संतं साहदि सव्वं तं पि णयं उज्जुयं जाण ।२७४। वर्तमानकालमें अर्थ पर्यायरूप परिणत अर्थको जो सत रूप साधता है वह ऋजुसूत्र नय है। (यह लक्षण यद्यपि सामान्य ऋजुसूत्रके लिए किया गया है, परन्तु सूक्ष्मऋजुसूत्रपर घटित होता है) ४. ऋजुसूत्राभासका लक्षण श्लो,वा,४/१/३३/श्लो,६२/२४८ निराकरोति यद्रव्यं बहिरन्तश्च सर्वथा। स तदाभोऽभिमन्तव्यः प्रतीतेर पलापत.। • एतेन चित्राद्वैतं. संवेदनाद्वैतं क्षणिकमित्यपि मननमृजुत्राभासमायातीत्युक्तं वेदितब्य (पृ. २५३/४)। - बहिरंग ब अन्तरंग दोनों द्रव्योंका सर्वथा अपलाप करनेवाले चित्राद्वैतवादी, विज्ञानाद्वैतवादी व क्षणिकवादी बौद्धोंकी मान्यतामें अजुमूत्रनयका आभास है, क्योंकि उनकी सब मान्यताएँ प्रतीति व प्रमाणसे बाधित है। (विशेष दे० श्लो.वा,४/२/३३/श्लो, ६३-६७/२४८-२५५), (स्या. म./२/३१८/२४) ५. ऋजुसूत्रनय शुद्ध पर्यायाथिक है। न्या.दी./३/8८५/१२४/७ जुसूत्रनयस्तु परमपर्यायार्थिकः । = ऋजुसूत्रनय परम (शुद्ध) पर्यायाथिक नय है । (सूक्ष्म ऋजुसूत्र शुद्ध पर्यायार्थिक नय है और स्थूल ऋजुसूत्र अशुद्ध पर्यायार्थिक-नय/IV/३) (और भी दे०/नय/III/९/१-२) २. कथंचित् विधि घ.१०/४,२,३,३/१५/६ उजुसुदस्स पज्जवठियस्स कधं दव्वं विसओ। ण, वंजणपज्जायमहिट्ठियस्स दव्वस्स तस्विसयत्ताविरोहादो। ण च उप्पादविणासलक्खणतं तचिसयदवस्स विरुज्झदे, अप्पिदपज्जायभावाभावलक्रवण-उप्पाद विणासविदिरित्त अवट्ठाणाणुवलं भादो। ण च पढमसमए उप्पण्णस्स विदियादिसमएसु अबट्ठाणं, तत्थ पढमविदियादिसमयकप्पणए कारणाभावादो। ण च उत्पादो चेव अबढाणं, विरोहादो उप्पादलक्रवणभावविदिरित्तअबढाणलक्खणाणुवलं भादो च। तदो अव्यढाणाभावादो उप्पाद विणासलकवण दव्वमिदि सिद्ध। - प्रश्न-जुसूत्र चूकि पर्यायार्थिक है, अत. उसका द्रव्य विषय कैसे हो सकता है। उत्तर-नहीं, क्यो कि, व्यंजन पर्यायको प्राप्त द्रव्य उसका विषय है, ऐसा माननेमें कोई विरोध नहीं आता। (अर्थात अशुद्ध अजुसूत्रको द्रव्यार्थिक मानने में कोई विरोध नहीं है-ध./8) (ध.६/४,१,५८/२६५/६), (ध.१२/४.२,८,१४/२६०/५) (निक्षेप/३/४ ) प्रश्न-ऋजुसूत्रके विषयभूत द्रव्यको उत्पाद विनाश लक्षण मानने में विरोध आता है। उत्तर --सो भी बात नहीं है; क्योंकि, विवक्षित पर्यायका सद्भाव ही उत्पाद है और उसका अभाव ही व्यय है। इसके सिवा अवस्थान स्वतन्त्र रूपसे नही पाया जाता । प्रश्न-प्रथम समयमे पर्याय उत्पन्न होती है और द्वितीयादि समयोंमें उसका अवस्थान होता है। उत्तर-यह बात नहीं बनती%3B क्योंकि उसमे प्रथम व द्वितीयादि समयोंकी कल्पनाका कोई कारण नहीं है । प्रश्न-फिर तो उत्पाद ही अवस्थान बन बैठेगा । उत्तरसो भी बात नहीं है क्योकि, एक तो ऐसा माननेमें विरोध आता है, दूसरे उत्पादस्वरूप भाषको छोडकर अवस्थानका और कोई लक्षण पाया नही जाता। इस कारण अबस्थानका अभाव होनेसे उत्पाद व विनाश स्वरूप द्रव्य है, यह सिद्ध हुआ। (वही व्यंजन पर्यायरूप द्रव्य स्थूल ऋजुमूत्रका विषय है । ध.१२/४,२.१४/२६०/६ वट्टमाणकाल बिसयउजुसुदवत्थुस्स दवणाभावादो ण तत्थ दव्व मिदि णाणावरणीयवेयणा णस्थि त्ति वुत्ते-ण, वट्टमाणकालस्स बंजणपज्जाए पड्डुच्च अवट्टियस्स सगाससावयवाणं गदस्स दब्वत्तं पडि विरोहाभावादो। अप्पिदपज्जाएण वट्टमाणत्तमा वण्णस्स वत्थुस्स अणप्रिपद पज्जाएमु दवणविरोहाभावादो वा अस्थि उजुसुदणयविसए दव्य मिदि। -प्रश्न-वर्तमानकाल विषयक ऋजुसूत्रनयकी विषयभूत वस्तुका द्रवण नहीं होनेसे चू कि उसका विषय, द्रव्य नहीं हो सकता है, अत. ज्ञानावरणीय वेदना उसका विषय नहीं है। उत्तर-ऐसा पूछनेपर उत्तर देते है, कि ऐसा नहीं है, क्योंकि वर्तमानकाल व्यंजन पर्यायोका आलम्बन करके अवस्थित है (दे० जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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