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ज्ञानज्ञेय अद्वैतनय
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१. ज्ञानावरणीय कर्म निर्देश
ज्ञानशद्धि- ना ज्ञानसमय-दे० समय ।
ज्ञानसागर-काष्ठा संघ नन्दितट गच्छ । गुरु परम्परा-वैश्वसेन विद्याभूषण, ज्ञान सागर । एक ब्रह्मचारी थे। कृतियें-अक्षर बावनी आदि हिन्दी रचनायें, कथा संग्रह तथा ब. मतिसागर के पठनार्थ एक गुटका। समय-वि.श. १७ (ई. श. १७ पूर्व)। (ती/३/४४२), (हिन्दी जैन साहित्य इतिहास/३७/डा० कामता प्रसाद)।
कल्पसमाधिकाले यद्यपि न कत व्यस्तथापि तस्य त्रिगुप्तिध्यानस्याभावे शुद्धात्मानमुपादेयं कृत्वा आगमभाषया पुनः मोक्षमुपादेयं कृत्वा सरागसम्यक्त्वकाले विषयकषायवञ्चनार्थ कर्तव्य प्रश्न-हे भगवन् । 'यह धर्मास्तिकाय है, यह जीव है' इत्यादि ज्ञेयतत्त्वके बिचारकाल में किये गये विकल्पोसे यदि कर्मबन्ध होता है तो ज्ञेयतत्त्वका विचार करना वृथा है. इसलिए वह नहीं करना चाहिए। उत्तर-ऐसा नही कहना चाहिए। यद्यपि त्रिगुप्तिगुप्तनिर्विकल्पसमाधिके समय वह नहीं करना चाहिए तथापि उस त्रिगुप्तिरूप ध्यान्का अभाव हो जानेपर शुद्धात्मको उपादेय समझते हुए या आगमभाषामे एक मात्र मोक्षको उपादेय करके सरागसम्यक्त्वके काल मे विषयकषायसे बचनेके लिए अवश्य करना चाहिए।(न च. लघु/७)। और भी दे० नय/VIE/४ (निश्चय व व्यवहार सम्यग्ज्ञानमे साध्य
साधन भाव )। ज्ञानज्ञेय अद्वतनय-दे० नय/11५। ज्ञानचन्द्र-वि०१७७५ (ई० १७१८) के एक भट्टारक। आपने पचा
स्तिकायकी टीका लिखी है। (प का./प्र ३/प पन्नालाल )। ज्ञानचेतना-दे० चेतना । ज्ञानदान-दे० दान। ज्ञानदीपक-आ० ब्रह्मदेव (ई०१२६२-१३२३) द्वारा संस्कृत
भाषामें रचा गया एक आध्यात्मिक ग्रन्थ । ज्ञानदीपिका-पं० आशाधर (ई०११७३-१२४३) की संस्कृत भाषा
बद्ध एक आध्यात्मिक रचना। ज्ञाननय-दे० नय/I/४। ज्ञानपंचमो-कवि विद्धणु (ई०१३६६) कृत हिन्दी छन्दबद्ध
रचना, जिसमें श्रुतपचमी बतका माहात्म्य दर्शाया है। ज्ञानपच्चीसी व्रत-चौदह पूर्वोकी १४ चतुर्दशी और ग्यारह
अंगोकी ११ एकादशी इस प्रकार २५ उपवास करने। ॐ ह्रीं द्वादशाङ्ग श्रुतज्ञानाय नमः" इस मन्त्रका त्रिकाल जाप्य । (वत विधान संग्रह। पृ० १७३ ) (किशन सिह क्रियाकोश)। ज्ञान प्रवाद-अंग द्रव्यश्रुतज्ञानका पाँचवॉ पूर्व
-दे० श्रतज्ञान/IIII ज्ञानभूषण-१. नन्दिसंघ ईडरगद्दी। पहले विमलकीर्ति के और पीछे भुवनकीर्ति के शिष्य हुए । कृतिया-आरम सम्बोधन काव्य तत्त्वज्ञान तरंगिनी, नेमि निर्वाण काव्य की पञ्जिका टीका, पूजाष्टक टीका, भक्तामर पूजा, श्रुतपूजा, सरस्वती पूजा. समयतत्वज्ञान तरंगिनी का रचना काल वि. १५६० भट्टारक काल वि. १५००-१९६२ (ई. १४४३-१५०५)। दे. इतिहास/७/४ । (ती./३/३४८) । २. सुरतगद्दी बीरचन्द के शिष्य/सुमति कीति की कृतियों का शोधन तथा उनके साथ कर्म प्रकृति, टीका लिखी। समय वि. १५८५-१६१६/ दे. इतिहास/७/४ । जै। ज्ञान मति-भूतकालीन २१वें तीर्थ कर-दे० तीर्थकर/५ ॥ ज्ञानमद-दे० मद । ज्ञानवाद-० वाद। ज्ञानविनय-विनय । ज्ञानशक्ति-(स.सा./आ/प्रशस्ति/शक्ति नं०४) साकारोपयोगमयी ज्ञानशक्तिः।- (ज्ञेय पदार्थोके विशेष रूपमें उपयुक्त होनेवाली आत्माकी एक ) साकारोपयोगमयी शक्ति अर्थात ज्ञान ।
ज्ञानसार-१. आ० देवसेन (ई०६३३-६५५) द्वारा रचित प्राकृत गाथाबद्ध ग्रन्थ । २. मुनि पद्यसिंह (ई. १०८६) कृत ६३ गाथा और ७४ श्लोक प्रमाण ग्रन्थ । विषय-कर्महेतुक संसार भ्रमण । (ती./३/ ज्ञानाचार-दे० आचार। ज्ञानाणव-आ० शुभचन्द्र (ई० १००३-११६८) द्वारा संस्कृत श्लोकोमे रचित एक आध्यात्मिक व ध्यान विषयक ग्रन्थ है। इसमें ४२ प्रकरण है और कुल २५०० श्लोक प्रमाण है। इस ग्रन्थपर निम्न टोकाए लिखी गयी-(१) आ० श्रुतसागर ( ई, १४८१-१४६६) ने 'तत्त्वत्रा प्रकाशिका टीका इसके गद्यभागपर लिखी, जिसमें शिवतत्त्र, गरुडतत्व और कामतत्त्व इन तीनों तत्त्वोका वर्णन है।(२) ५० जयचन्द छाबडा ( ई० १८१२) कृत भाषा वचनिका। ज्ञातावरण-जीवके ज्ञानको आवत करनेवाले एक कर्म विशेषका नाम इानावरणीय है। जितने प्रकारका ज्ञान है, उतने ही प्रकारके ज्ञानावरणीय कर्म भी है और इसीलिए इस कर्म के संख्यात व असख्यात भेद स्वीकार किये गये है। १. ज्ञानावरणीय कर्म निर्देश
१. ज्ञानावरणीय सामान्यका लक्षण स. सि./८/४/३८०/३ आवृणोत्यात्रियतेऽनेनेति का आवरणम् । स सि/4/2/३७८/१० ज्ञानावरणस्य का प्रकृतिः । अर्थानवगमः। - जो
आवृत करता है या जिसके द्वारा आवृत किया जाता है वह आवरण कहलाता है।४। ज्ञानावरण कर्मकी क्या प्रकृति ( स्वभाव) है । अर्थका ज्ञान न होना । (रा. वा./८/४/२/५६७/३२), (८/३/४/५६७/२) ध १/१,१,१३१/३८१/६ बहिरङ्गार्थविषयोपयोगप्रतिबन्धकं ज्ञानावरणमिति प्रतिपत्तव्यम् । = बहिर ग पदार्थको विषय करनेवाले उपयोग
का प्रतिबन्धक ज्ञानावरण कर्म है, ऐसा जानना चाहिए। ध.६/१६-१,५/६/८ णाणमवबोहो अवगमो परिच्छेदो इदि एयो ।
तमावरेदि त्ति णाणावरणीयं कम्मं । -ज्ञान, अवबोध, अवगम, और परिच्छेद ये सब एकार्थवाचक नाम है. उस ज्ञानको जो आवरण
करता है, वह ज्ञानावरणीय कम है। द्र, सं/टी/३१/१०/१ सहजशुद्धकेवलज्ञानमभेदेन केवलज्ञानाद्यनन्तगुणाधारभूत ज्ञानशब्दवाच्य परमात्मानं वा आवृणोतीति ज्ञानावरणं । - सहज शुद्ध केवल ज्ञानको अथवा अभेदनयसे केवलज्ञान आदि अनन्तगुणोके आधारभूत 'ज्ञान' शब्दसे कहने योग्य परमात्माको जो आवृत करै यानि ढकै सो ज्ञानाबरण है। *ज्ञानावरण कर्मका उदाहरण-दे० प्रकृति बन्ध/३ ।
हा
२. ज्ञानावरण कर्मके सामान्य पाँच भेद ष. खं १३/५.५/सू २१/२०१ णाणावरणीयस्स कम्मरस पंच पयडीओ
आभिणियोहियणाणावरणीयं सुदणाणावरणीयं, ओहिणाणावरणीय
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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