Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 446
________________ दृष्टान्त ४३८ १. दृष्टान्त । उदाहरणोंके भेद व लक्षण त्युदाह्रियते ॥टीका। तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् ॥३७... अनित्यः शब्द उत्पत्तिधर्मकत्वात् अनुत्पतिधर्मकं नित्यमात्मादि सोऽयमात्मादिदृष्टान्तः ।-साध्यके साथ तुत्य धर्मतासे साध्यका धर्म जिसमें हो ऐसे दृष्टान्तको (साधर्म्य) उदाहरण कहते हैं ।३६। शब्द अनित्य है, क्योंकि उत्पत्ति धर्मवाला है, जो-जो उत्पत्ति धर्मवाला होता है वह-वह अनित्य होता है जैसे कि 'घट' । यह अन्वयी ( साधर्म्य ) उदाहरणका लक्षण कहा। साध्यके विरुद्ध धर्मसे विपरीत (वैधर्म्य ) उदाहरण होता है, जैसे शब्द अनित्य है, उत्पत्यर्थवाला होने से, जो उत्पत्ति धर्मवाला नहीं होता है, वह नित्य देखा गया है, जैसे-आकाश, आत्मा, काल आदि। न्या. वि./टी./२/२११/२४०/२० तत्र साधम्र्येण कृतकवादनित्यत्वे साध्ये घटः, तत्रान्वयमुखेन तयोः संबन्धप्रतिपत्तेः । वैधम्र्येणाकाशं तत्रापि व्यतिरेकद्वारेण तयोस्तत्परिज्ञानात् । = कृतक होनेसे अनित्य है जैसे कि 'घट'। इस हेतुमें दिया गया दृष्टान्त साधर्म्य है। यहाँ अन्वयकी प्रधानतासे कृतकस्व और अनित्यत्व इन दोनोंकी व्याप्ति दर्शायी गयी है । अकृतक होनेसे अनित्य नहीं है जैसे कि 'आकाश', यहाँ व्यतिरेक द्वारा कृतक व अनित्यत्व धोकी व्याप्ति दर्शायी गयी है। ( न्या. दी/३६३२/७८/७। प./मु./३/४८-४९/२१ साध्यं व्याप्त साधनं यत्र प्रदर्श्यते सोऽन्वयदृष्टान्त' ।४। साध्याभावे साधनाभावों यत्र कध्यते स व्यतिरेकदृष्टान्तः ।४६।- जहाँ हेतुकी मौजूदगीसे साध्यकी मौजूदगी बतलायी जाये उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं। और जहाँ साध्यके अभावमें साधनका अभाव कहा जाय उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं ।४८-४६।। न्या. दी./३/१३२/७८/३ यो यो घूमवानसावसावग्निमात्, यथा महानस इति साधोदाहरणम् । यो योऽग्निमान्न भवति स स धूमवान्न भवति, यथा महाहृद इति वैधर्योदाहरणम् । पूर्वत्रोदाहरणभेदे हेतोरन्वयव्याप्ति' प्रदर्श्यते द्वितीये तु व्यतिरेकव्याप्तिः। तद्यथाअन्वयव्याप्तिप्रदर्शनस्थानमन्वयदृष्टान्तः, व्यतिरेकव्याप्तिप्रदर्शनप्रदेशो व्यतिरेकदृष्टान्त। न्या. दी./३/६४/१०४/७ धूमादौ सति नियमेनाग्न्यादिरस्ति, अग्न्याद्यभावे नियमेन धूमादिर्नास्तीति तत्र महानसादिरन्वयदृष्टान्तः । अत्र साध्यसाधनयोर्भावरूपान्वयसंप्रतिपत्तिसंभवाद हृदादिस्तु व्यतिरेकदृष्टान्तः । अत्र साध्यसाधनयोरभावरूपव्यतिरेकसंप्रतिपत्तिसंभवाव । - जो जो धूमवाला है वह वह अग्नि वाला है जैसे- रसोईघर । यह साधर्म्य उदाहरण है। जो जो अग्निवाला नहीं होता वह वह धूमवाल नहीं होता जैसे-तालाब । यह वैधर्म्य उदाहरण है। उदाहरण के पहले भेदमें हेतुकी अन्वय व्याप्ति (साध्यकी मौजूदगी में साधनकी मौजूदगी) दिखायी जाती है और दूसरे भेदमें व्यतिरेकव्याप्ति (साध्यकी गैरमौजूदगी में साधनकी गैरमौजूदगी) बतलायी जाती है। जहाँ अन्वय व्याप्ति प्रदर्शित की जाती है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते है. और जहाँ व्यतिरेक व्याप्ति दिखायी जाती है उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। धूमादिके होनेपर नियमसे अग्नि आदि पाये जाते हैं, और अग्न्यादिके अभावमें नियमसे धूमादिक नहीं पाये जाते'। उनमें रसोईशाला आदि दृष्टान्त अन्वय है, क्योंकि उससे साध्य और साधनके सद्भावरूप अन्वय बुद्धि होती है। और तालाबादि व्यतिरेक दृष्टान्त है, क्योंकि उससे साध्य और साधन के अभावरूप व्यतिरेकका ज्ञान होता है। ४. उदाहरणामास सामान्यका लक्षण व भेद म्या.दी./३/844/१०/१० उदाहरणलक्षणरहित उदाहरणवदवभासमान उदाहरणाभासः। उदाहरणलक्षणराहित्यं द्वधा संभवति, दृष्टान्तस्यासम्यग्वचनेनादृष्टान्तस्य सम्यगू बचनेन वा। -जो उदाहरणके लक्षणसे रहित है किन्तु उदाहरण जैसा प्रतीत होता है वह उदाहरणाभास है । उदाहरणके लक्षणकी रहितता ( अभाव) दो तरहसे होता है-१. दृष्टान्तका सम्यग्वचन न होना और दूसरा जो दृष्टान्त नहीं है उसका सम्यग्वचन होना। ५. उदाहरणामासके भेदोंके लक्षण न्या.दी./३/84/१०५/१२ तत्राद्य यथा, यो योऽग्निमात् स स धूमवार, यथा महानस इति, यत्र यत्र धूमो नास्ति तत्र तत्राग्निर्नास्ति, यथा महावद इति च व्याप्यव्यापकयोर्वपरीत्येन कथनम् । न्या.दी./२/९६८/१०८/७ अदृष्टान्तवचनं तु, अन्वयव्याप्ती व्यतिरेकदृष्टान्तवचनम्, व्यतिरेकव्याप्तावन्वयदृष्टान्तवचनं च, उदाहरणाभासौ। स्पष्टमुदाहरणम् । = उनमें पहलेका उदाहरण इस प्रकार है-जो-जो अग्निवाला होता है वह-वह धूमवाला हाता है. जैसे रसोईघर। जहाँ-जहाँ धूम नहीं है वहाँ-वहाँ अग्नि नहीं है जैसेतालाब । इस तरह व्याप्य और व्यापकका विपरीत (उलटा) कथन करना दृष्टान्तका असम्यग्वचन है। 'अदृष्टान्त वचन' (जो दृष्टान्त नहीं है उसका सम्यग्वचन होना) नामका दूसरा उदाहरणाभास इस प्रकार है-अन्वय व्याप्तिमें व्यतिरेक दृष्टान्त कह देना, और व्यतिरेक व्याप्तिमें अन्वय दृष्टान्त बोलना, उदाहरणाभास है, इन दोनोके उदाहरण स्पष्ट है। २. दृष्टान्ताभास सामान्यके लक्षण न्या.वि./मू./२/२११/२४० सम्बन्धो यत्र नितिः साध्यसाधनधर्मयोः । स दृष्टान्तस्तदाभासाः साध्यादिविकलादयः । =जो दृष्टान्त न होकर दृष्टान्तवत प्रतीत होवें वे दृष्टान्ताभास है। प.ध./पू./४१० दृष्टान्ताभासा इति निक्षिप्ताः स्वेष्टसाध्यशून्यत्वात् ।... ॥४१०= इस प्रकार दिये हुए दृष्टान्त अपने इष्ट साध्यके द्वारा शून्य होनेसे अर्थात अपने इष्ट साध्यके साधक न होनेसे दृष्टान्ताभास है... ४१०॥ ५. दृष्टान्ताभासके भेद न्या.वि./टी./२/२११/२४०/२६ भावार्थ-साधर्म्यदृष्टान्ताभास नौ प्रकारका है-साध्य विकल, साधन विकल, उभय विकल, सन्दिग्धसाध्य, सन्दिग्धसाधन, सन्दिग्धोभय, अन्वयासिद्ध, अप्रदर्शितान्बय और विपरीतान्वय। इसी प्रकार वैधर्म्य दृष्टान्ताभास भी नौ प्रकारका होता है-- साध्य विकल, साधन विकल, उभय-विकल सन्दिग्ध, साध्य, सन्दिग्धसाधन, सन्दिग्धोभय, अव्यतिरेक, अप्रदर्शित व्यतिरेक, विपरीत व्यतिरेक। प. मु./६/४०,४४ दृष्टान्ताभासा अन्ययेऽसिद्धसाध्यसाधनोभयाः 1801 व्यतिरेकसिद्धतद्व्यतिरेकाः ।४५ - अन्वयदृष्टान्ता भास तीन प्रकारका है-साध्यविकल, साधनविकल और उभयविकल ॥४०॥ व्यतिरेकदृष्टान्ताभासके तीन भेद हैं-साध्यव्यतिरेकविकल, साधनव्यतिरेकविकल एवं साध्यसाधन उभय व्यतिरेकविकल । 4. दृष्टान्तामासके भेदोंके लक्षण न्या.वि./वृ./२/२९१/२४०/२८ तत्र नित्यशब्दोऽमूर्तत्वादिति साधने कर्मवदिति साध्यविकलं निदर्शनम् अनित्यत्वाव कर्मणः। परमाणुवदिति साधनविकलं मूर्तत्वात परमाणूनाम् । घटवदित्युभयविकलम अनित्यत्वान्मूर्तत्वाच्च घटस्य । 'रागादिमाच सुगतः कृतकत्वाद' इत्यत्र रथ्यापुरुषवदिति संदिग्धसाध्य रथ्यापुरुष रागादिमश्वस्य निश्चेतुमशक्यत्वात प्रत्यक्षस्याप्रवृत्त व्यापारादेश्च रागादिप्रभवस्यान्यत्रापि संभवाद, बीतरागाणामपि सरागवच्चेष्टोपपत्तेः। मरणधर्माय रागादिमत्त्वात इत्यत्र संदिग्धसाधन तत्र रागादिमत्त्वाऽ जैनेन्द्र सिदान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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