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नय
I नय सामान्य
४ नयोंके भेद प्रभेदोंका चार्ट:चार्टनं.१:- नय
चार्टनं.२:
नय
आगमनय
अध्यात्मनय (दे.चार्टनं.
नय
उपनय
विनय/४) व्यवहार
निश्चय
द्रव्या
-
(द.नय///t)
-
शास्त्रीय .. आगम सदन असन्दूत उपधरित
- नय:/) (दे.चार्टन.) द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक
असद्भुत
अध्यात्म
आगम दे.नया द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक
अनादिनित्यशुद्ध अशुद्धसदभूत असंभूत सादिनित्यउपचरित अनुपचरित उपचरित अनुपचारित स्वभाव नित्य-4
स्वभाव अनित्य कलापिनिरपेक्ष (स्वभाव अनित्य कपिादिसापेक्ष । स्वताव अनिला
(देन/ N/A)
नय अनिय अनिय शब्दनय
(दे नय/४/४)
अशुद्धसममिरूढ़एवंभूत - द्रव्ये द्रव्यारोपण द्रव्य गुणारोपणद्रव्ये पर्यायारोपण गुणे द्रव्यारोपणपर्याय द्रव्यारोपण- विजाति-- गुणे पर्यायारोपण स्वजाति-1 गुणगुणारोपण पर्याय गुणारोपा+उभय पर्याय पर्यायारोपण
जुसूत्र - अपर व्यवहार म
-pola
अपर/संग्रह
पर1संग्रह
- कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध उत्पादव्यय गौणसत्ता ग्राहक शुद्ध भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध कपिाधि सापेक्ष अशुद्ध उत्पाव्यय सापेक्ष सत्ताग्राहक अशुद्ध भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध अन्वय सापेक्ष स्वद्रव्यादि चतुष्टय ग्राहक परद्रव्यादि चतुष्टय ग्राहक परमभाव ग्राहक
R7
PEFFEE (दे नय/II/2)
सकल्प मात्र
नएकंगमो
भूत भावी वर्तमान द्रव्य
पर्याय
द्रव्य पर्याय
शुद्ध
अशुद्ध
अर्थपर्याय व्यंजनपर्याय अर्थव्यंजन
पर्याय
शुद्धद्रव्य-अर्थपर्याय अशुद्ध द्रव्य अर्धपर्यायशुद्धद्रव्यव्यजनपर्याय अशुद्ध द्रव्यव्यंजनपर्याय
५. द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक तथा निश्चय व्यवहार ही मूल भेद हैं घ. १/१,१,१/गा.५/१२ तित्थयरवयणसंगहविसेसपत्थारमूलवायरणी ।
दव्वडियो य पज्जयणयो य सेसा वियप्पा सि । तीर्थंकरोके वचनोंके सामान्य प्रस्तारका मूल व्याख्यान करनेवाला द्रव्याथिक नय है, और उन्हीं वचनोंके विशेष प्रस्तारका मूल व्याख्याता पर्यायार्थिक नय है। शेष सभी नय इन दोनों नयों के विकल्प अर्थाद भेद हैं । (श्लो.वा/४/१/३३/श्लो,६१२/२२३), (ह.पु./५८/४०)।
ध./१,६,१/३/१० दुविहो णिद्द सो दव्व ठ्ठिय पज्जववट्ठिय णयावलंबणेण । तिविहो णिसो किग्ण होज । ण तइजस्स णयस्स अभावा। दो प्रकारका निर्देश है; क्योंकि वह द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयका अवलंबन करनेवाला है। प्रश्न-तीन प्रकारका निर्देश क्यों नहीं होता है ! उत्तर-नहीं; क्योंकि तीसरे प्रकारका कोई नय ही नहीं है।
६. गुणार्थिक नयका निर्देश क्यों नहीं रा.वा/५/३८/३/५०१/४ यदि गुणोऽपि विद्यते, ननु चोक्तम् तद्विषयस्तृतीयो मूलनय प्राप्नोतीति; नैष दोषः, द्रव्यस्य द्वावात्मानौ सामान्य विशेषश्चेति । तत्र सामान्यमुत्सर्गोऽन्वय' गुण इत्यनर्थान्तरम् । विशेषो भेद, पर्याय इति पर्यायशब्द । तत्र सामान्यविषयो नयः द्रव्यार्थिक' । विशेषविषयः पर्यायार्थिक' । तदुभयं समुदितमयुतसिद्धरूपं द्रव्यमित्युच्यते, न तद्विषयस्तृतीयो नयो भवितुमर्हति, विकलादेशत्वान्नयानाम् । तत्समुदयोऽपि प्रमाणगोचर. सकलादेशत्वात्प्रमाणस्य। - प्रश्न-(द्रव्य व पर्यायसे अतिरिक्त) यदि गुण नामका पदार्थ विद्यमान है तो उसको विषय करनेवाली एक तीसरी (गुणाथिक नामकी ) मूलनय भी होनी चाहिए १ उत्तर- यह कोई दोष नहीं है; क्योंकि द्रव्यके सामान्य और विशेष ये दो स्वरूप हैं। सामान्य, उत्सर्ग, अन्वय और गुण ये एकार्थ शब्द हैं । विशेष, भेद और पर्याय ये पर्यायवाची ( एकार्थ ) शब्द हैं। सामान्यको विषय करनेवाला द्रव्याथिक नय है, और विशेषको विषय करनेवाला पर्यायाथिक । दोनोंसे समुदित अयुतसिद्धरूप द्रव्य है। अतः गुण जब द्रव्यका ही सामान्यरूप है तब उसके ग्रहणके लिए द्रव्यार्थिकसे पृथक गुणार्थिक नयकी कोई आवश्यकता नहीं है; क्योंकि, नय विकलादेशी है और समुदायरूप द्रव्य सकलादेशी प्रमाणका विषय होता है। (श्लो,वा. ४/१/३३/श्लो.८/२२०); (प्र.सा/त,प्र/११४)।
आ.प./५/गा,४ णिच्छयववहारणया मूलभेयाण ताण सव्वाणं । णिच्छयसाहणहेओ दव्वयपज्जत्थिया मुणह ।४। सर्व नयोके मूल निश्चय व व्यवहार ये दो नय हैं। द्रव्यार्थिक या पर्यायार्थिक ये दोनो निश्चयनयके साधन या हेतु हैं । (न.च.व./१८३)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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