Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 447
________________ दृष्टान्त निश्चयस्योत्पाद। अतर असर्वज्ञोऽयं रागादिमत्यादिश्यन्तसंदिग्धोभयम् । रागादिमत्त्वे वक्तृत्वादित्यनन्वयम् रागादिमत्त्वस्यैव तत्रासिद्धी तत्रान्वयस्यासि अप्रदर्शिताम्वयं यथा शब्दोऽ नित्य' कृतकत्वात् घटादिवदिति । न ह्यत्र ' यद्यत्कृतकं तत्तदनित्यस्' इत्यन्ययदर्शनमस्ति विपरीतान्वर्य यथा यदनित्यं तत्तकमिति । तदेवं नव साधर्म्येण दृष्टान्ताभासाः । वैधर्म्येणापि नवे । तद्यथा नित्य शब्द: अमूर्तस्वात् यदनित्यं न भवति तदमूर्तमपि न भवति परमाणुवदिति साध्यव्यावृत्तं परमाणुषु साधनव्यावृत्तावपि साध्यस्य निश्यत्वस्याव्यावृत्तेः । कर्मदिति साधनाव्यावृत्तं तत्र साध्यव्यावृत्तावपि साधनस्य अवस्थाव्यावृत्तेः आकाशमवित्युभयावृत्तम् अमूर्तस्य नित्यत्वयोरुभयोरव्याकाशादध्यावृत्तेः । संदिग्धसाध्यव्यतिरेकं यथा सुगतः सर्वज्ञोऽनुपदेशादि प्रमाणोपपन्नतत्त्ववचनात यस्तु न सर्वज्ञो नासौ 1 चनो यथा बीधी पुरुष इति तत्र सर्वज्ञस्यव्यतिरेकस्यानिश्चयात परचेतोवृत्तीनामित्यभावेन दुबोधला संदिग्ध साधनव्यतिरेकं यथा अनित्य' शब्द सत्त्वात् यदनित्यं न भवति तत्सदपि न भवति यथा गगनमिति गगने हि सत्यव्यावृत्तिरनुपलम्भात. तस्य च न गमकत्वमदृश्य विषयत्वात् । संदिग्धोभयव्यतिरेकं यथा यः संसारी स न तद्वान् यथा बुद्ध इति बुद्धात संसारित्वाविद्यादिमत्त्व व्यावृत्ते' अनवधारणात्। तस्य च तृतीये प्रस्तावे निरूपणात् । अव्यतिरेकं यथा नित्यः शब्द अमूर्तस्वात् यन्न नित्यं न तदमृतं यथा घट इति घटे साध्यनिवृत्तेभविऽपि हेतुव्यतिरेकस्य मुक्ताभावात् कर्मण्यनित्येऽप्यखभावादशितव्यतिरेकं यथा अनित्यः शब्दसखात्मे आकाशपुष्पमदिति विपरीत व्यतिरेकं यथा अत्रैव साध्ये यत्सन्न भवति तदनित्यमपि न भवति यथा व्योमेति साधनव्यावृत्त्या साध्यनिवृत्तेरुपदर्शनाव । १. अन्ययदृष्टान्ताभास के लक्षण- १. अमूर्त होनेसे शब्द अनित्य है इस हेतुमें दिया गया 'कर्मवद' ऐसा दृष्टान्त साध्यमिकल है, क्योंकि कर्म अनित्य है, नित्यत्व रूप साध्यसे विपरीत है । २. 'परमाणुवत' ऐसा दृष्टान्त देना साधन विकल्प है, क्योंकि वह मूर्त है और अमूतत्व रूप साधनसे ( हेतुसे ) विपरीत है । ३. 'घटवत्' ऐसा दृष्टान्त देना उभय विकल है। क्योंकि घट मूर्त व अनित्य है । यह अमूर्तदेवरूप साधन तथा अनित्यत्व रूप साध्यसे विपरीत है । ४. 'सुगत (देव) रागवाला है, क्योंकि यह कृतक है इस हेतुमें दिया गया- 'रथ्या पुरुषवत्' ऐसा दृष्टान्त सन्दिग्ध साध्य है, क्योंकि रथ्यापुरुषमें रागादिमत्त्वका निश्चय होना अशक्य है। उसके व्यापार या चेष्टादि परसे भी उसके रागादिमत्वकी सिद्धि नहीं की जा सकती. क्योंकि गीतरागियोंमें भी शरीरवत् चेटा पायी जाती है. वहाँ रागादिकी सिद्धिमें 'मरणधर्मापनेका दृष्टान्त देना सन्दिग्ध साधन है, क्योंकि मरणधर्मा होते हुए भी रागादिधर्मापने का निश्चय नहीं है। ६. 'सर्वपकारान्त देना सन्दिग्धसाध्य व सन्दिग्ध ४३९ 1 साधन उभय रूप है । ७. वक्तृत्वपनेका दृष्टान्त देना अनन्वय है, क्योंकि रागादिम के साथ वक्तृत्वका अन्वय नहीं है । ८. 'कृतक होनेसे शब्द अनित्य है' इस हेतुमें दिया गया 'घटवत्' यह दृष्टान्त अमदर्शिताय है क्योंकि जो जो कृतक हो वह वह नियमसे अनित्य होता है, ऐसा अन्वय पद दर्शाया नहीं गया । ६. जो जो अनित्य होता है वह यह कृतक होता है, यह विपरीतान्वय है। ए. व्यतिरेक दृष्टांतामासके स-१. 'अमूर्त होनेसे शब्द अनिय है, जो-जो नित्य नहीं होता वह वह अमूर्त नहीं होता' इस हेतुमें दिया गया 'परमाणुवत्' यह दृष्टान्त साध्य विकल है, क्योंकि परमाणु में साधनरूप अर्तवको व्यावृत्ति होनेपर भी साध्य रूप नित्यत्वको व्यावृत्ति नहीं है। २. उपरोक्त हेतुमें दिया गया 'कर्मवद' यह दृष्टान्त साधन विकल है, क्योंकि यहाँ साध्यरूप नित्यत्वकी व्यावृत्ति होनेपर भी साधन रूप अमूर्तस्वकी व्यावृत्ति नहीं है । ३ उपरोक्त Jain Education International १. दृष्टान्त व उदाहरणोंके भेद व लक्षण हेतुमें ही दिया गया 'आकाशवत्' यह दृष्टान्त उभय विकल है, क्योकि यहाँ न तो साध्यरूप नित्यत्वकी व्यावृत्ति है, और न साधन रूप नित्यत्वको । ४. 'सुगत सर्वज्ञ है क्योंकि उसके वचन प्रमाण हैं, जो-जो सर्वज्ञ नहीं होता, उसके वचन भी प्रमाण नहीं होते, इस हेतुमें दिया गया 'वीथी पुरुषवत्' यह दृष्टान्त सन्दिग्ध साध्य है, क्योंकि बीथी पुरुषमें साध्यरूप सर्वशत्यके व्यतिरेकका निश्चय नहीं है. दूसरे अन्य चित्तकी वृत्तियोंका निश्चय करना शक्य नहीं है । ५. 'सत्त्व होनेके कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता वह वह सत् भी नहीं होता' इस हेतुमें दिया गया 'आकाशवत्' यह दृष्टान्त सन्दिग्ध साधन है, क्योंकि आकाशमें न तो साधन रूप सनकी व्यावृत्ति पायी जाती है, और अष्ट होनेके कारणसे न ही उसके सवका निश्चय हो पाता है । ६. 'अविद्यामत होनेके कारण हरि हर आदि संसारी है, जो जो संसारी नहीं होता वह वह अविद्याम भी नहीं होता। इस हेतुमें दिया गया 'बुद्धवद' यह दृष्टान्त सन्दिग्धभय व्यतिरेकी है। क्योंकि बुद्ध के साथ साध्यरूप संसारीपनेको और साधन रूप' 'अविद्यामत्पने दोनों ही की उपावृत्तिका कोई निश्चय नहीं है। ७ अमूर्त होनेके कारणसे शब्द निरय हैं, जो जो नित्य नहीं होता वह वह अमूर्त भी नहीं होता, इस हेतुमें दिया गया 'घटन्तु' यह दृष्टान्त अव्यतिरेकी है, क्योंकि घटमें साध्यरूप नित्यत्वकी निवृत्तिका स्वभाव होते हुए भी साधन रूप अमूर्तकी निवृतिका अभाव है। 'सव होनेके कारण शब्द अनित्य है, जो जो अनित्य नहीं होता, वह यह सभी नहीं होता' इस हेतुमें दिया गया 'आकाशपुष्पवत्' यह दृष्टान्त अप्रदर्शित उपतिरेकी है, क्योंकि आकाश में साध्यरूप अनित्यल के साथ साधन रूप सत्त्वका विरोध दर्शाया नहीं गया है । ६. 'जो जो सत् नहीं होता, वह वह अनित्य नहीं होता, इस हेतुमें दिया गया आकाशपुष्पवत् यह दृष्टान्त विपरीत व्यतिरेकी है, क्योंकि यहाँ आकाश में साधन रूप सतकी व्यावृत्तिके द्वारा साध्यरूप freerest निवृत्ति दिखायी गयी है न कि अनित्यत्वकी । म. सु. १/४१-४५ अपौरुवेयः शब्दोऽमुखादिन्द्रियमुखपरमाणुपद ४१ विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं सदमूर्त नियुदादिनातिप्रसंगाव ४२-४३॥ व्यतिरेक सिद्धरन्यतिरेका परमाद्विमुखा काशवत् विपरीतपतिरेवरच पज्ञार्त तापीरुपे ४४-४५ १. अन्वयान्ताभासके लक्षण- १. 'शब्द अपौरुपेय है क्योंकि वह अमूर्त है इस हेतु दिया गया- 'इन्द्रियल यह दृष्टान्त साध्य दिवस है क्योंकि इन्द्रिय सुख अपौरुषेय नहीं है किन्तु पुरुषकृत ही है । २. 'परमाणुवत्' यह दृष्टान्त साधन विकल है। क्योंकि परमाणु रूप, रस, गन्ध आदि रहते हैं इसलिए वह मूर्त है अमूर्त नहीं है। १. 'घट' यह रान्त उभय निकल है, क्योंकि घट पुरुष है और मूर्त है, इसलिए इसमें अपौरुषेयत्व साध्य एवं अमूर्त हेतु दोनों ही नहीं रहते। ४ उपर्युक्त अनुमानमें जो जो अमूर्त होता है वह यह अपौरुषेय होता है, ऐसी व्यामि है, परन्तु जो जो अपौरुषेय होता है वह यह अमूर्त होता है ऐसी उलटी व्याप्ति दिखाना भी अन्वयदृष्टान्ताभास है, क्योंकि बिजली आदि - से व्यभिचार आता है, अर्थात् बिजली अपौरुषेय है परन्तु अमूर्त नहीं है |४२-४३१ २. व्यतिरेक दृष्टान्ताभासके लक्षण- १ शब्द अपौरुषेय है क्योंकि अमूर्त है इस हेतुमें दिया 'परमाणुवत्' यह दृष्टान्त साध्य विकल है, क्योंकि अपौरुषेयस्वरूप साध्यका व्यतिरेक (अभाव) पौरुपेयत्व परमाणुमें नहीं पाया जाता। २. 'इन्द्रियसुखवत्' यह दृष्टान्त साधन विकल है, क्योंकि अमूर्तत्व रूप साधनका व्यतिरेक इसमें नहीं पाया जाता । ३. 'आकाशवत्' यह दृष्टान्त उभय विकल है, क्योंकि इसमें पौने मूर्त दोनों ही नहीं रहते। ४. ओ मूर्त नहीं है वह अपौरुषेय भी नहीं है इस प्रकार व्यतिरेकदृष्टान्ताभास है । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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