Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 2
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 428
________________ दर्शनावरण दशमिनिमानीव्रत जेसे राजद्वारविषै तिष्ठता राजपाल राजाको देखने दे नाही तैसे दर्शनावरण दर्शनको आच्छादै है। (द्र.सं./टी./३३/११/१) २. दर्शनावरणके १ भेद प. रवं. ६/१,६-१/सू. १६/३१ णिहाणिद्दा पयलापयला थीणगिद्धी णिद्दा पयला य, चक्खुदंसणावरणीयं अचवखुदंसणावरणीयं ओहिदसणावरणीयं केवलदं सणावरणीयं चेदि ॥१६= निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा और प्रचला; तथा चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय , अवधिदर्शनावरणीय, और केवलदर्शनावरणीय ये नौ दर्शनावरणीय कर्मकी उत्तर प्रकृतियाँ है ।१६। (प. ख १३/५५५/ सू. ८४/३५३) (त. सू./८/७) (मू.'आ./१२२५) (पं.स./प्रा/४/४५/ ८) (मं.ब./प्र. १/५/२८/१) (त. सा /३/२५-२६.३२१) (गो. क./ जी, प्र./३३/२७/8)। ८. चक्षुरादि दर्शनावरण व निद्रादि दर्शनावरणमें अन्तर स. सि./८/9/३८३/४ चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानामिति दर्शनावरणापेक्षया भेदनिर्देश चक्षुर्दर्शनावरण. निद्रादिभिर्दर्शनावरणं सामानाधिकरण्येनाभिसंबध्यते निद्रादर्शनावरणं निद्रानिद्रादर्शनावरणमित्यादि।चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवलका दर्शनावरणकी अपेक्षा भेदनिर्देश किया है। यथा चक्षुदर्शनावरण इत्यादि । “यहाँ निद्रादि पदोंके साथ दर्शनावरण पदका समानाधिकरण रूपसे सम्बन्ध होता है । यथा निद्रादर्शनावरण, निद्रानिद्रादर्शनावरण इत्यादि । ३. दर्शनावरणके असंख्यात भेद ध. १२/४ २,१४,४/४७६/३ णाणावरणीयस्स दंसणावरणीयस्स च कम्मरस पयडीओ सहावा सत्तौओ.'असंखेज्जलोगमेत्ता। कुदो एत्तियाओ होति त्ति णव्वदे। आवरणिज्जणाण-दसणाणमसखेज्जलोगमेत्तभेदु वलंभादो । चूकि आवरणके योग्य ज्ञान व दर्शनके असंख्यात लोकमात्र भेद पाये जाते हैं । अतएव उनके आवरक उक्त कर्मों की प्रकृतियाँ भी उतनी ही होनी चाहिए। ४. चक्षु अचक्षु दर्शनावरणके असंख्यात भेद हैं ध. १२/४,२,१५.४/५०१/१३ चक्रबु-अचक्रवुदंसणावरणीयपयडीओ च पुधपुध असंग्वेज्जलोगमेत्ताओ होदूण । - चश्नु व अचक्षु दर्शनावरणीयकी प्रकृतियॉ पृथक् पृथक् असंख्यात लोक मात्र हैं। ९. निदानिद्रा आदिमें द्विस्वकी क्या आवश्यकता रा. वा./८/७/७/५७२/२२ वीप्साभावात असति द्वित्वे निद्रानिद्रा प्रचलाप्रचलेति निर्देशो नोपपद्यत इति, तन्न; कि कारणम् । कालादिभेदाव भेदोपपत्तेः वीप्सा युज्यते ।.. अथवा मुहुर्मुहुर्वृत्तिराभीक्ष्ण्यं तस्य विवक्षायां द्वित्वं भवति यथा गेहमनुप्रवेशमनुप्रवेशमास्त इति ।प्रश्न-वीप्सार्थक द्वित्वका अभाव होनेसे निद्रानिद्रादि निर्देश नहीं बनता है । उत्तर-ऐसा नहीं है; क्योकि कालभेदसे द्वित्व होकर वीप्सार्थक द्वित्व बन जायेगा। अथवा अभीक्ष्ण-सततप्रवृत्ति-मारबार प्रवृत्ति अर्थ में द्वित्व होकर निद्रा-निद्रा प्रयोग बन जाता है जैसे कि घरमें घुस-घुसकर बैठा है अर्थात बार-बार घर में घुस जाता है यहाँ। * अन्य सम्बन्धित विषय * दर्शनावरणका उदाहरण-दे० प्रकृति बंध/३ । * दर्शनावरण कृतियोंका घातिया, सर्व धातिया व देश घातियापना। - दे० अनुभाग ४। * दर्शनावरणके बंध योग्य परिणाम-दे० ज्ञानावरण/५ । * निद्रादि प्रकृतियों सम्बन्धी-दे० निद्रा। * निद्रा आदि प्रकृतियोंको दर्शनावरण क्यों कहते है। -दे० दर्शन/४/६॥ * दर्शनावरणकी बन्ध, उदय वसत्ल प्ररूपणा-दे० वह वह नाम । ५. अवधि दशनावरणके असंख्यात भेद ध. १२/४,२,१५,४/५०१/११ ओहिदं सणावरणीयपयडीओ च पुध उध असंखेज्जलोगमेत्ता होदूण । - अबधिदर्शनावरणकी प्रकृतियाँ पृथक्पृथक असंख्यात लोकमात्र हैं। ६.केवल दर्शनावरणकी केवल एक प्रकृति है ध. १२/४,२,१५,४/५०२/8 केवलदसणस्स एक्का पयडी अस्थि 1- केवलदर्शनावरणीयकी एक प्रकृति है। ७. चक्षुरादि दर्शनावरणके लक्षण रा, बा./८/८/१२-१६/५७३ चक्षुरक्षुदर्शनावरणोदयात चक्षुरादोन्द्रियालोचन विकल' ।१२५ ‘पञ्चेन्द्रियत्वेऽप्युपहतेन्द्रियालोचनसामर्थ्यश्च भवति। अवधिदर्शनावरणोदयादवधिदर्शनविप्रमुक्तः ॥१३. केवलदर्शनावरणोदयादाविर्भूतकेवलदर्शन. १४। निद्रा-निद्रानिद्रोदयात्तेमोमहातमोऽवस्था ।१५। प्रचला-प्रचलोदयाच्चलनातिचलनभावः ।१६। -चक्षुदर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरणके उदयसे आत्माके चक्षुरादि इन्द्रियजन्य आलोचन नहीं हो पाता । इन इन्द्रियोंसे होनेवाले ज्ञानके पहिले जो सामान्यालोचन होता है उसपर इन दर्शनावरणोंका असर होता है । अवधिदर्शनावरणके उदयसे अवधिदर्शन और केवलदर्शनावरणके उदयसे केवलदर्शन नहीं हो पाता। निद्राके उदयसे तमअवस्था और निद्रा-निद्राके उदयसे महातम अवस्था होती है। प्रचलाके उदयसे बैठे-बैठे ही घूमने लगता है, नेत्र और शरीर चलने लगते हैं, देखते हुए भी देख नहीं पाता। प्रचला प्रचला के उदयसे अत्यन्त ऊँघता है, दल-आधा करना । दे० गणित/२/१॥ दवप्रदा कर्म-दे० सावद्य/५॥ दशकरण-दे० करण/२। दशपर्वा-एक ओषधि विद्या-दे० विद्या। दशपुर-वर्तमान मन्दौर ( म. पु /प्र. ४६ पं. पन्नालाल ) दशपूवित्व ऋद्धि-दे० ऋद्धि २ । दशपूर्वी-दे० श्रुतकेबलो। दशभक्ति-१. दे० भक्ति। २. दशभक्तिकी प्रयोगविधि । -दे० कृतिकर्म/४। दशमभक्त-चौला-दे० प्रोषधोपवास/१। दशमलव-Decimal (ज. प्र./प्र. १०७ ) । दशमान-१ Decimal Place Value Notation (ध.॥ प्र २७); २. Scaleoften (ध. प्र. २७)। दशमिनिमानीव्रत-भादों सुदी दशमीको व्रत धारण करके और फिर आदर सहित दूसरेके घर आहार करें। (यह व्रत श्वेताम्बर व जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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