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जन्म
४. सासादनमे जीवोंके जन्मसम्बन्धी मतभेद
४ असंज्ञियों में भी जन्मता है
मिथ्यादृष्टिके नरक में प्रवेश विषयक प्ररूपणा करके सूत्र नं०४७ में सम्यग्दृष्टिके प्रवेश विषयक प्ररूपणा की गयी है। बीचमे सासादन व मिश्र गुणस्थानकी प्ररूपणाएँ छोड दी हैं)। ध.१/१,१,२५/२०११ न सासादनगुणवतांतत्रोत्पत्तिस्तद्गुणस्य तत्रोत्पत्त्या सह विरोधात् । . किमित्यपर्याप्तया विरोधश्चेत्स्वभावोऽयं, न हि स्वभावाः परपर्यनुयोगार्हा. I = सासादन गुणस्थानका नरक में उत्पत्ति के साथ विरोध है । प्रश्न-नरकगतिमे अपर्याप्तावस्थाके साथ दूसरे (सासादन) गुणस्थानका विरोध क्यों है ? उत्तर-यह नारकियों
का स्वभाव है, और स्वभाव दूसरेके प्रश्नके योग्य नहीं होते। गो.क./जी.प्र./१२७/३३०/१५ सासादनगुणस्थानमृता नरकवजितगतिषु
पोरपद्यन्ते। -सासादन गुणस्थानमे मरा हुआ जीव नरक रहित शेष तीन गतियोंमे उत्पन्न होते है।
गो. जी./जी.प्र /६६५/११३१/१३ सासादने ... संझ्यसंयपर्याप्तसंज्ञिपर्याप्ता....। दितीयोपशम सम्यक्त्वविराधकस्य सासादनत्वप्राप्तिपक्षेच संक्षिपर्याप्तदेवापर्याप्ताविति द्वौ। सासादन विषै जीवसमास असंज्ञी अपर्याप्त और संज्ञी पर्याप्त व अपर्याप्त भी होते है और द्वितीयोपशम सम्यक्त्वत पड़ जो सासादनको भया होइ ताकि अपेक्षा तहाँ सैनी पर्याप्त और देव अपर्याप्त ये दो ही जीव समास है। (गो.जी./जी.प्र./ ७०३/११३७/१४); (गो क./जी.प्र./५५१/७५३/४) ।
२. अन्य तीन गतियों में उत्पन्न होने योग्य कालविशेष
५. विकलेन्द्रियों में ही जन्मता ध.६/१,६-६/सू.१२०/४५६ तिरिक्वेसु गच्छता एइंदिए पंचिदिएसु गच्छति णो विगलि दिएसु ।१२० = तिर्यंचों में जानेवाले संरण्यातवर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यच एकेन्द्रिय व पंचेन्द्रियों में जाते हैं प विकले न्द्रियों में नहीं ।१२०॥ ध.६/१,६-६/सूत्र ७६-७८; १५०-१५२:१७५ ( नरक, मनुष्य व देवगतिसे
आकर तिर्यंचोमे उपजनेवाले सासादन सम्यग्दृष्टियोंके लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)। ध,२/१,१/५७६,५८० ( विकलेन्द्रिय पर्याप्त ब अपयाप्त दोनों अवस्थाओमें
एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा गया है)। (दे० इन्द्रिय/४/४) विकलेन्द्रियोंमें एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान ही कहा
गया है।
ध.५/१६,३८/३५/३ सासणं एडिवण्णविदिए समए जदि मरदि, तो णियमेण देवगदीए उववज्ज दि । एवं जाब आवलियाए असंखेज्जदिभागो देवगदिपाओग्गो कालो होदि । तदो उवरि मणुसगदिपाओग्गो आवलियाए असंखेज दिभागमेत्तो कालो होदि । एवं सण्णिपंचिदियतिरिक्ख-चउरिदिय-तेई दिय-वेइंदिय-एइंदियपाओग्गो होदि । एसो णियमो सव्वत्थ सासणगुणं पडिवज्जमाणाणं । सासादन गुणस्थानको प्राप्त होनेके द्वितीय समयमें यदि वह जीव मरता है तो नियमसे देवगतिमें उत्पन्न होता है। इस प्रकार आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाणकाल देवगतिमें उत्पन्न होने के योग्य होता है। उसके ऊपर मनुष्यगति ( मे उत्पन्न होने ) के योग्यकाल आवलीके असंख्यातवेंभाग प्रमाण है। इसी प्रकारसे आगे-आगे संज्ञी पंचेन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय तियंच, चतुरिन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और एकेन्द्रियोंमे उत्पन्न होने योग्य (काल) होता है। यह नियम सर्वत्र सासादन गुणस्थानको प्राप्त होनेवालोंका जानना चाहिए ।
६. विकलेन्द्रियों में भी जन्मता है पं.स/प्रा./४/५६ मिच्छा सादा दोण्णि य इगि वियले होति ताणि
णायव्वा। पं.सं./प्रा.टी./४/RE/RE/१ तेदेकेन्द्रियविकले न्द्रियाणां पर्याप्तकाले एक मिथ्यात्वम् । तेषां केषांचित् अपर्याप्त काले उत्पत्तिसमये सासादनं संभवति । - इन्द्रिय मार्गणाको अपेक्षा एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवोमें मिथ्यात्व और सासादन ये दो गुणस्थान होते हैं। यहाँ यह विशेष ज्ञातव्य है कि उक्त जीवोमें सासादन गुणस्थान निवृत्त्यपर्याप्त दशामे ही सम्भव है अन्यत्र नहीं, क्योंकि पर्याप्त दशामें तो तहाँ एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही पाया जाता है। गो.जी./जी.प्र./६६५/११३१/१३ सासादने बादरै कद्वित्रिचतारान्द्रय संख्यसंयपर्याप्तसज्ञिपर्याप्ताः सप्त । -सासादन विषै बादर एकेन्द्रीमेंद्री तेंद्री चौइंद्री व असैनी तो अपर्याप्त और सैनी पर्याप्त व अपर्याप्त ए सात जीव समास होते हैं । (गो.जी./जी.प्र./७०३/११३७/११). (गो.क./ जी.प्र./५५९/७५३/४)।
३. पंचेन्द्रिय तियचों में गर्मज संज्ञी पर्याप्तमें ही जन्मता
है अन्यमें नहीं
ष.व./६/१,६-६/सू. १२२-१२५/४६१ पंचिदिए गच्छता सण्णीसु गच्छति, णो असण्णीम् ।१२२॥ सण्णीसु गच्छता गम्भोवक्कं तिएसु गच्छता, णो सम्मुच्छिमेसु ।१२३। गम्भोवक्कतिएम् गच्छता पज्जयत्तएससु, णो अप्पज्जत्तएसु ।१२४. पज्जत्तएम् गच्छता संखेज्जवासाउएसु वि गच्छति असंखेज्जवासाउवेस वि ।१२। -तियंचोमे जानेवाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यच ॥११॥ पंचेन्द्रियों में भी जाते हैं ।१२० पंचेन्द्रियोंमें भी संज्ञियो मेंहीजाते है असंज्ञियीमें नहीं।१२२॥ संज्ञियोंमे भी गर्भजोंमें जाते हैं संमूच्छिमोमे नहीं ।१२३। गर्भजोमे भी पर्याप्तकों में जाते हैं अपर्याप्तको में नहीं ११२४। पर्याप्तकोमें जानेवाले वे संख्यात वर्षायुष्कोंमें भी जाते है
और असंख्यात वर्षायुष्कोंमे भी ।१२। (देखो आगे गति अगति चूलिका नं. ३ शेष गतियोंसे आनेवाले जीवोंके लिए भी उपरोक्त ही नियम है।) (ध.२/१,१/४२७)।
७. एकेन्द्रियों में जन्मता है प.बं.६/१,६-६/सूत्र १२०/४५६ तिरिक्वेसु गच्छंता एई दिया पंचिदिएस गच्छति, णो विगलिं दिएसु ।१२० =तियचों में जानेवाले संख्यात वर्षायुष्क सासादन सम्यग्दृष्टि तियंच एकेन्द्रिय व पञ्चेन्द्रियमें जाते
है, परन्तु विकलेन्द्रियमें नहीं जाते। प.वं.६/१,६-६/सूत्र ७६-७८; १५०-१५२; १७५ सारार्थ (नरक मनुष्य व
देवगतिसे आकर तिर्यचों में उत्पन्न होनेवाले सासादन सम्यग्दृष्टियों के लिए भी उपरोक्त ही नियम कहा गया है)।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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