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केवली
६. ध्यानलेश्या आदि सम्बन्धी निर्देश...
११. केवलीके पर्याप्ति, योग तथा प्राण विषयक प्ररूपणा
(ध.२/११/४४४.३+४४६४-६५८७+ ४१६.१६); (गो० जी०/जी० प्र०/७०१/११३५.१२, ७२६/११६२ १)
निर्देश
प्राण (दे० उपर्युक्त प्रमाण) पर्याप्ति (दे० पर्याप्ति/३
पर्याप्तापर्याप्त विचार
आहारकत्व पर्याप्तापर्याप्त ० आहारक । दे० नीचे
याग दे० योग/
४
आहा
संद
विवरण
स०
विवरण
पर्या, अप. पर्याप्त अपर्याप्त
४ वचन, काय, आयु. श्वास ४ २ आयु तथा श्वास
हो पाप्त, अप ६, पर्याप्ति
.. अपर्याप्ति
सयोग केवलीसामान्य पर्याप्त अपर्याप्त समुद्घात केवली- प्र.समय दण्ड, द्वि० ,, कपाट तृ० , प्रत्तर चतु० लोक
आहा., अना आहारक
अनाहारक (दे० केवली/७/०१२,१३) औदारिक आहारक ओदा, मिश्र, कार्मण अनाहारक
पर्यास्त अपर्याप्त
३ काय, आयु, श्वास २ काय तथा आयु १ आयु
६ छहों पर्याप्ति १ आहार पर्याप्ति ६ छहों अपर्याप्ति
आहारक
पंचम , प्रतर षष्टम , कपाट सप्तम ॥ दण्ड अष्टम , शरीर
औदा, मिश्र औदारिक
पर्याप्त
२ | काय, आयु, श्वास ३ काय, आयु, श्वास ४ वचन, काय, आयु. श्वास
१ आहार पर्याप्ति. ६ छहों पर्याप्ति ६ .
प्रवेश
पर्याप्त
अयोग केवलो- दे० प्राण तथा पर्याप्ति विषयक द्वि० त० कोष्टक) प्रथम समय
आहारक
६ काय, वायु, श्वास ६ छहों पर्याप्ति
| (बचन निरोध) अन्तिम समय x अनाहारक
आयु, (श्वास निरोध) *-७ योग-सत्य ता अनुभव मन तथा वचन, औदा. द्विक, कार्मण
योग-उक्त २ मन, २ वचन औदारिक काय ३ योग-उक्त २ मन, औदारिक काय २ योग-औदारिक मिश्र तथा कार्मण
१२.'दव्येन्द्रियों की अपेक्षा दश प्राण क्यों नहीं कहते घ २/१,१/४४४/६ अध दबिदियस्स जदि गहण कीरदि तो सण्णीणमपज्जतकाले सत्त पाणा पिडिदूण दो चेव पाणा भवंति। पंचण्ह दवेंदियाणमभावादो। तम्हा सजोगिकेवलिस्स चत्तारि पाणा दो पाणा वा प्रश्न-द्रव्येन्द्रियों की अपेक्षा दश प्राण क्यो नही कहते । उत्तर--यदि प्राणों में द्रव्येन्द्रियोंका ही ग्रहण किया जाये तो संज्ञी जीवों के अपर्याप्त काल में सात प्राणो के स्थानपर कुल दो ही प्राण कहे जायेगे, क्योकि, उनके द्रव्येन्द्रियो का अभाव होता है। अत' यह सिद्ध हुआ कि सयोगी जिनके चार अथवा दो ही प्राण होते हैं। (ध. २/१,१६५८/५)।
१३. समुद्धात गत केवलीको चार प्राण कैसे कहते हो ध. २/१,१/६५६/१ तेसि कारणभूद-पज्जत्तीओ अत्थि त्ति पुणो उपरिमछट्ठसमयपडि बचि-उस्सासैपाणाणं समणा भवदि चत्तारि वि पाणा हवं ति । = समुद्घातगत केवलीके वचनबल और श्वासोच्छ्वास प्राणोकी कारणभूत वचन और आनपान पर्याप्तियाँ पायी जाती है, इसलिए लोकपूरण समुद्धातके अनन्तर होनेवाले प्रतर समुद्धातके पश्चात् उपरिम छठे समयसे लेकर आगे वचनबल और श्वासोच्छवास प्राणोंका सद्भाव हो जाता है, इसलिए सयोगिकेवलीके औदारिकमिश्र काययोगमे चार प्राण भी होते है।
वरण-खोवसम-लक्षण-पचि दियपाणा तत्थ सति, खीणावरणे खओंवसमाभावादो। आणावाणभासा-मणपाणा वि णस्थि, पज्जात्त-जणिदपाण-सण्णिद-सत्ति-अभावादो। ण सरीर-बलपाणो वि अस्थि, सरीरोदय-जणिद-कम्म-णोकम्मागमाभावादो तदो एक्को चेव पाणो। = ( अयोग केवली के ) एक आयु नामक प्राण होता है। प्रश्न-एक आयु प्राणके होनेका क्या कारण है। उत्तर-ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशमस्वरूप पाँच इन्द्रिय प्राण तो अयोगकेवलीके है नहीं, क्योंकि ज्ञानावरणादि कर्मोके क्षय हो जानेपर क्षयोपशमका अभाव पाया जाता है। इसी प्रकार आनपान, भाषा और मन प्राण भी उनके नहीं है, क्योकि पर्याप्ति जनित प्राण संज्ञावाली शक्तिका उनके अभाव है। उसी प्रकार उनके कायबल नामका भी प्राण नहीं है, क्योकि उनके शरीर नामकर्मके उदय जनितकर्म और नोकर्मोके आगमनका अभाव है। इसलिए अयोगकेवलीके एक आयु ही प्राण होता है। ऐसा समझना चाहिए।
६. ध्यानलेश्या आदि सम्बन्धी निर्देश व शंकासमाधान
१.केवलीके लेश्या कहना उपचार है तथा उसका कारण स.सि /२/६/१६०/१ ननु च उपशान्तकषाये क्षीणकषाये सयोगकेवलिनि
च शुक्ललेश्यास्तीत्यागम । तत्र कषायानरञ्जनाभावादौदयिकत्वं नोपपद्यते। नैष दोषः; पूर्वभावप्रज्ञापननयापेक्षया यासौ योगप्रवृत्तिः कषायानुरञ्जिता से वेत्युपचारादौदयिकीत्युच्यते। तदभावादयोग
०९ ननु च
तत्र कषायावक्षया यासो
१४. अयोगीके एक आयु प्राण होनेका क्या कारण है ध.२/१.१/४४५/१० आउअ-पाणो एक्को चेव। केण कारणेण । ण ताव णाणा
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
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