________________
क्षयोपशम
१८२
१. भेद व लक्षण निर्देश
घाती कर्मोंका उदय प्राप्त होनेकी अपेक्षा यहाँ औदायिक भाव भी कहा जा सकता है, परन्तु गुणके प्रगट होनेवाले अंशकी अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव ही कहते हैं, औदयिक नहीं, क्योंकि कर्मोंका उदय गुणका घातक है साधक नहीं।
५.गुणका एकदेश क्षय ध.७/२,१,४५/८७/३ णाणस्स विणासो खओ णाम, तस्स उवसमो एकदेसक्खओ, तस्स खओवसमसण्णा। -ज्ञानके विनाशका नाम क्षय है, उस क्षयका उपशम (अर्थात् प्रसन्नता) हुआ एकदेशक्षय। इस प्रकार ज्ञानके एकवेशीय क्षयकी क्षयोपशम संज्ञा मानी जा सकती है।
१. भेद व लक्षण निर्देश
२. पाँचों लक्षणों के उदाहरण
१. क्षयोपशमका लक्षण
१. उदयाभाव क्षय आदि स.सि./२/५/१५७/३ सर्वघातिस्पर्द्धकानामुदयक्षयात्तेषामेव सदुपशमाहेश
घातिस्पर्द्धकानामुदये क्षायोपशमिको भावो भवति ।-वर्तमान कालमें सर्वघाती स्पर्द्धकोंका उदयाभावी क्षय होनेसे और आगामी कालकी 'अपेक्षा उन्हींका सदवस्थारूप उपशम होनेसे देशघाती स्पर्द्धकोंका उदय रहते हुए क्षायोपश मिक भाव होता है । (स.सि./१/२२/१२७/१), (रा.वा./१/२२/१/६१); (रा.वा./२/५/३/१०७/१); (द्र.सं./टी./३०/६E/R)। पं.का./त.प्र./५६ कर्मणां फलदानसमर्थतयों.'उभूत्यनुदभूती क्षयोप
शमः। फलदानसमर्थ रूपसे कर्मों का उद्भव तथा अनुभव सो क्षयोपशम है। २. क्षय उपशम आदि रा.वा./२/१/३/१००/१६ यथा प्रक्षालन विशेषात क्षीणाक्षीणमदशक्तिकस्य कोद्रवस्य द्विधा वृत्तिः, तथा यथोक्तक्षयहेतुसंनिधाने सति कर्मण एकदेशस्य क्षयादेकदेशस्य च वीर्योपशमादात्मनो भाव उभयात्मको मिश्र इति व्यपदिश्यते । = जैसे कोदोंको धोनेसे कुछ कोदोकी मदशक्ति क्षीण हो जाती है और कुछकी अक्षीण, उसी तरह परिणामोंकी निर्मलतासे कर्मोंके एकदेशका क्षय और एकदेशका उपशम होना मिश्रभाव है। इस क्षयोपशमके लिए जो भाव होते हैं उन्हें क्षायोप
शमिक कहते हैं । (स.सि./२/९/१४६/७)। घ. १/१,१,८/१६१/२ तत्क्षयादुपशमाच्चोत्पन्नो गुणः क्षायोपशमिकः ।
-कर्मोंके क्षय और उपशमसे उत्पन्न हुआ गुण क्षायोपशमिक कहलाता है। घ.७/२.१,४४/१२/७ सव्वघादिफद्दयाणि अणंतगुणहोणाणि होदूण देस
घादिफद्दयत्तणेण परिणमिय उदयमागच्छति, तेसिमणतगुणहीणतं खओ णाम । देसघादिफद्दयसरूवेणवट्ठाणमुवसमो। तेहि खओवसमेहिं संजुत्तोदो खओवसमो णाम् । -सर्वघाति स्पर्धक अनन्तगुणे हीन होकर और देशघाती स्पर्धक्कों में परिणत होकर उदयमें आते हैं। उन । सर्वघाती स्पर्धकोंका अनन्तगुण होनत्व ही क्षय कहलाता है, और उनका देशघाती स्पर्धकोंके रूपसे अवस्थान होना उपशम है। उन्हीं क्षय और उपशमसे संयुक्त उदय क्षयोपशम कहलाता है। (ध. १४/ ५,६,१३/१०/२)। ३. आवृत भावमें शेष अंश प्रगट ध.१/१,७,१/१८५/२ कम्मोदए संते विजं जीवगुणवरवंडमुवलंभदि सो खओवसमिओ भावो णाम । -कर्मोके उदय होते हुए भी जो जीबगुणका खंड (अंग) उपलब्ध रहता है वह क्षायोपशम भाव है। (ध.७/२,१,४५/८७/१); (गो.जी./जी.प्र./८/२६/१४); (द्र.सं./टी./३४/ ११/)। ४. देशपातीके उदयसे उपजा परिणाम ध. ५/१,७,५/२००/३ सम्मत्तस्स देसधादिफयाणमुदएण सह वट्टमाणो
सम्मत्तपरिणामो खोवसमिओ । सम्यक्त्वप्रकृतिके देशधाती। स्पर्धकोंके उदयके साथ रहनेवाला सम्यक्त्व परिणाम क्षायोपशमिक कहलाता है। (द्र.सं./टी./३४/88/8)।
१. उदयाभावी क्षय आदिकी अपेक्षा दे० मिश्र/२/६/१ मिथ्यात्वका उदयाभावी क्षय तथा उसीका सदयस्थारूप उपशम तथा सम्यक्त्वके सर्वधाती स्पर्धकोंका उदय, इनसे होनेके कारण मिश्र गुणस्थान क्षायोपशमिक है। दे. मिश्र/२/६/२ सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतिके देशघाती स्पर्धकोंके उदयरूप क्षयसे उसीके सदवस्थारूप उपशमसे तथा उसके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयसे होनेके कारण मिश्र गुणस्थान क्षायोपशमिक है। दे. संयत/२/३/१ प्रत्याख्यानावरणीयके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षयसे, उसीके सदवस्थारूप उपशमसे और संज्वलनरूप देशघातीके
उदयसे होनेके कारण प्रमत्त व अप्रमत्त गुणस्थान क्षायोपशमिक हैं। दे. संयतासंयत/७.१. अनन्तानुबन्धी व अप्रत्याख्यानावरणके उदयाभावी क्षयसे, उन्हीके सदवस्थारूप उपशमसे तथा प्रत्याख्यानावरणीय, संज्वलन और नोकषायरूप देशघाती कर्मोके उदयसे होनेके कारण संयतासंयत गुणस्थान क्षायोपशमिक है। २. अथवा अप्रत्यारण्यानावरणके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षयसे तथा उसीके सदवस्थारूप उपशमसे और प्रत्याख्यानावरणरूप देशघाती कर्म के उदयसे होनेके कारण संयतासंयत गुणस्थान क्षायोपशमिक है। दे. योग/३/४ वीर्यान्तराय कर्मके सर्वघाती स्पर्धकोंके उदयाभावी क्षयसे, उसीके सदवस्थारूप उपशमसे तथा उसीके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे होनेके कारण योग क्षायोपशमिक है। २. क-क्षय व उपशम युक्त उदयकी अपेक्षा दे. संयत/२/३/२ नोकषायके सर्वघाती स्पर्धकोंकी शक्तिका अनन्तगुणा क्षीण हो जाना सो उनका क्षय, उन्होंके देशघाती स्पर्धकौंका सदवस्थारूप उपशम, इन दोनोंसे युक्त उसीके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे होनेके कारण प्रमत्त व अप्रमत्त संयत गुणस्थान क्षायोपशमिक हैं। दे.सयत/२/३/३ प्रत्याख्यानावरणकी देशचारित्र विनाशक शक्तिका तथा संज्वलन व नोकषायोंकी सकलचारित्र विनाशक शक्तिका अभाव सो ही उनका क्षय तथा उन्हींके उदयसे उत्पन्न हुआ देश व सकल चारित्र सो ही उनका उपशम (प्रसन्नता)। दोनोंके योगसे होनेके कारण संयतासंयत आदि तीनों गुणस्थान क्षायोपशमिक हैं। दे. क्षयोपशम/२/१ मिथ्यात्वकर्मकी शक्तिका सम्यक्त्वप्रकृतिमें क्षीण हो
जाना सो उसका क्षय तथा उसीकी प्रसन्नता अर्थात उसके उदयसे उत्पन्न हुआ कुछ मलिन सम्यक्त्व, सोही उसका उपशम। दोनों के योगसे होनेके कारण वेदक सम्यक्त्व क्षायोपशमिक है। २. ख-उद्रय व उपशमके योगकी अपेक्षा दे.क्षयोपशम/२/२ सम्यक्त्व प्रकृतिका उदय होनेसे वेदक सम्यक्त्व
औदयिक है और सर्वघाती स्पर्धाका उदयाभाव होनेसे औपशमिक है। दोनों के योगसे वह उदयोपशमिक है। दे. मिश्र/२/६/४ सम्यग्मिथ्यात्वके देशघाती स्पर्धकोंका उदय और उसीके सर्वघाती स्पर्धकोंका उदयाभावी उपशम। इन दोनोंके योगसे मिश्रगुणस्थान उदयोपशमिक है। दे. मतिज्ञान/२/४ अपने-अपने कर्मोंके सर्वघाती स्पर्धकों के उदयाभावी
रूप उपशमसे तथा उन्हींके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे उत्पन्न होनेके कारण मति आदि ज्ञान व चक्षु आदि दर्शन क्षायोपशमिक हैं।
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org