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प्रकाशककी ओरसे मेरी स्वर्गीया माताकी मृत्युके समय पिताजीने दो हजार रुपया किसी शुभकार्यमें लगानेका संकल्प किया था। यह ग्रन्थ उन्हीं रूपयोंसे प्रकाशित किया जा रहा है। इसकी बिक्रीसे जो रुपया वसूल होगा, वह इसी खातेमें जमा किया जायगा और फिर किसी ऐसे ही कार्यमें लगाया जायगा । कागजकी इस बेहद महँगाईके समयमें भी ग्रन्थका मूल्य बहुत कम रक्खा गया है, जिससे अधिकसे अधिक इसका प्रचार हो सके।
–हेमचन्द्र