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सारे लेखोंके संशोधनमें अभी तीन चार महीने और लग जाते परन्तु इसी समय महायुद्धकी विभीषिका भारतके बिल्कुल सिरपर आ पहुँची और उसके भयसे वम्बई नगर खाली होने लगा, इसलिए अब इतने समय तक ठहरनेका साहस न रहा, न जाने कल क्या हो जाय, इसलिए जितना तैयार था, उतना ही पाठकों की सेवामें उपस्थित कर देना ठीक प्रतीत हुआ ।
जो लेख ठीक नहीं किये जा सके और इस संग्रह में नहीं दिये जा सके, उनमें भट्टाकलंक, समन्तभद्र, कुन्दकुन्द, उमास्वाति, विद्यानन्दि, दर्शनसारविवेचन, तारनपन्थ, परवार जाति आदि मुख्य हैं । यदि जीवित रहा, और परिस्थितियाँ अनुकूल हुई, तो कमसे कम इस समय तो उनको ठीक करके प्रकाशित कर देनेकी भावना है । यद्यपि इस साठ वर्षकी उम्र में और इस प्रलय-कालमें जीवित रहने और अनुकूल परिस्थितियोंकी आशा करना एक दुराशा ही है ।
लेखोंमें अनेक दोष और त्रुटियाँ रह गई होंगीं, परन्तु उनके लिए मैं पाठकोंसे क्षमा नहीं माँगता । मनुष्यसे दोष और त्रुटियाँ होती ही हैं । केवल इतना विश्वास दिला देना चाहता हूँ कि किसी आग्रह या पक्षपातके वशीभूत होकर मैंने कोई निर्णय नहीं किया । अपनी अल्प बुद्धि और साधारण विवेकसे जो कुछ मुझे ठीक मालूम हुआ है वही लिखा है और मैं समझता हूँ कि एक इतिहासके विद्यार्थीके लिए यह काफी है । मैं अपनेको इतिहासका एक तुच्छ विद्यार्थी ही मानता हूँ ।
यद्यपि इस संग्रहके प्रायः सभी लेख अपने पूर्व रूपमें नहीं रहे हैं उनमें प्रायः आमूल परिवर्तन किया गया है; फिर भी सबसे पहले वे कब लिखे गये थे और कहाँ प्रकाशित हुए थे, लेख सूची में इसकी सूचना दे दी गई है ।
इस संग्रह-कार्यमें राजाराम कालेजके अर्धमागधीके प्रोफेसर डॉ० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्याय एम० ए० ने बहुत अधिक सहायता दी है । बड़ी ही तत्परतासे अनेक प्रूफोंका संशोधन कर दिया है, समय समयपर अनेक बहुमूल्य सूचनायें दी हैं, अपनी देख-रेख में उपयुक्त नाम-सूची तैयार करा दी है, और साथ ही एक अँग्रेजी भूमिका भी लिख दी है ।