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श्यकताको प्रधान स्थान दिया और उपर्युक्त कठिनाइयोंके बढ़ते जानेपर भी वे इस कार्यमें जुट गये । न केवल उन्होंने आपने पूर्व प्रकाशित लेखोंका संग्रह ही किया है, किन्तु उनमें आजतकके अनुसन्धानोंकी दृष्टिसे उचित परिवर्तन और परिवर्धन भी कर दिया है। __इन लेखोंमें अधिकांश जैनसाहित्यके इतिहाससे सम्बन्ध रखनेवाले हैं और कुछ जैन तीर्थों तथा धार्मिक सामाजिक संस्थाओंके इतिहासपर प्रकाश डालनेवाले । जिन्होंने कभी साहित्यिक इतिहासके किसी अंशका कुछ अनुसन्धान करनेका प्रयत्न किया है वे इन लेखोंकी गम्भीरता, महत्ता और लेखकके अपार परिश्रम तथा विवेकका अंदाज लगा सकेंगे। प्रेमीजीकी लेखन-शैली ऐसी सरल और सुन्दर है कि साहित्यसे प्रेम रखनेवाला कोई भी पाठक इन लेखोंको दिलचस्पीसे पढ़ सकता है। क्या ही अच्छा होता यदि प्रेमीजी इसी शैलीसे अपनी शेष रचनाओंका भी संस्करण करके प्रकाशित करा सकते । किन्तु असाधारण विघ्नोंके कारण वह महत्त्वपूर्ण कार्य फिलहाल यहीं रुक गया है। हमें आशा और विश्वास है कि ये काले बादल शीघ्र ही नष्ट होंगे और वह शेष पुनीत कार्य भी सम्पन्न हो जायगा। तब तक हम इन महत्त्वशाली लेखोंके संग्रहसे पूरा लाभ उठाना चाहिए ।
किंग एडवर्ड कालेज, अमरावती ।
१७-२-४२
हीरालाल जैन