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१० | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
वैशेषिक और मीमांसा-वेदान्त । लेकिन सांख्य और योग से वेदों का सीधा सम्बन्ध नहीं है । सांख्य दर्शन में हिंसामूलक वैदिक धर्म का विरोध किया गया है। योग का सीधा सम्बन्ध शरीर और चित्तवत्तियों से है। योग के दो भेद हैं-राजयोग और हठयोग । अतः दोनों दर्शनों का सम्बन्ध वेदों से नहीं है। इनका सम्बन्ध श्रमण-परम्परा से अधिक है। क्योंकि दोनों ही अहिंसा धर्म में पूरा-पूरा विश्वास रखते हैं। योग दर्शन में, यम और नियमों का पालन आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी माना गया है । पाँच यमों में पहला यम अहिंसा माना गया है। कपिल का सांख्य
सांख्य दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कपिल हैं। इस दर्शन में पच्चीस तत्व माने गये हैं। मूल में तो दो ही तत्व हैं-प्रकृति और पुरुष । दोनों का संयोग संसार है, और वियोग है अपवर्ग अर्थात् मोक्ष । दोनों के भेदविज्ञान से सांसारिक बन्धन कट जाते हैं। इस दर्शन में ज्ञान की प्रधानता है। सांख्य में प्रमाण तीन हैं-प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द । प्रसिद्ध आचार्य हैं-कपिल, आसुरि, पंचशिख और ईश्वरकृष्ण । इस सम्प्रदाय के प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं-सांख्य सूत्र, सांख्य प्रवचन भाष्य, सांख्य कारिका और उस पर सांख्य तत्व कौमुदी। सांख्य ने योग दर्शन की साधना को अपनाया है। उसकी अपनी कोई साधना प्रक्रिया नहीं है। उसमें तो प्रकृति और पुरुष के भेदविज्ञान पर विशेष बल दिया गया है। पतञ्जलि का योग
योग दर्शन के उद्भावक महर्षि पतञ्जलि हैं। इन्होंने योग दर्शन सूत्र की रचना की है । योगदर्शन ने सांख्य दर्शन के सिद्धान्तों को अपनाया है। योग का मत है, कि केवल व्यक्त, अव्यक्त और ज्ञ से ही मोक्ष नहीं हो सकता। प्रकृति और विकृति के प्रभाव से मुक्त होने के लिए चित्त की वृत्तियों का शोधन और नियन्त्रण आवश्यक है । यही है, राज योग ।
___ योगदर्शन में सांख्य की भांति पच्चीस तत्त्व हैं, और प्रमाण हैं तीन-प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम । योग का भारत में व्यापक प्रभाव था, और उसका प्रसार-प्रचार भी बहुत था। योग की अनेक शाखाप्रशाखाएँ होती चली गई हैं। परन्तु योग के मुख्य भेद दो हैं-राजयोग तथा हठयोग । राजयोग में मन की एकाग्रता का वर्णन है, और हठयोग में शरीर की विशुद्धि के लिए विभिन्न आसन, मुद्रा और बन्धों का वर्णन है ।
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