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३६ | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
(अ) प्रथम मत के अनुसार, सत्ता मनस् है, संसार का मूल इसी तत्व में है। विश्व इसी मनस् का प्रकटीकरण है। जगत् प्रक्रिया एक बौद्धिक प्रक्रिया है, और विवेक है। संसार के पीछे एक प्रयोजन निहित है, बिना किसी प्रयोजन के व्यवस्था नहीं बन सकती। इस प्रकार जगत् मानसिक है । अरस्तू, प्लेटो, लाइबनित्ज, बर्कने, कांट, हेगल और शॉपेनहावर-ये सब अध्यात्मवाद के प्रतिपादक रहे हैं। इनका मत है, विश्व मनस से बना है।
(ब) द्वितीय मत के अनुसार, संसार की रचना पुद्गल से बनी है । पुद्गल गतिशील है, उसी से विकास के विभिन्न स्तरों पर जीवन और मनस् का विकास होता है । जीवन और मनस् की उत्पत्ति पुद्गल से ही होती है।
(स) तृतीय मत के अनुसार अन्तिम तत्व न तो मनस् है, और न ही पुद्गल । यह स्पिनोजा का अभिमत है । उसके अनुसार वह परम तत्व है, एक मात्र ब्रह्म अर्थात् परमात्मा । वही सृष्टि का एक मात्र मूलकारण कहा जा सकता है। ज्ञान-मीमांसा
अनुभववाद के अनुसार, समस्त ज्ञान का जनक अनुभव ही है। ज्ञान जन्मजात नहीं होता, अनुभव द्वारा अजित किया जाता है। अनुभव एवं संवेदना के बिना कोई ज्ञान सम्भव नहीं होता। अनुभववाद के व्याख्याता तीन हैं-जॉन लॉक, बर्कले और ह्य म । परन्तु तीनों के मत में अन्तर भी है। जॉन लॉक का मत
अनुभववाद के जन्मदाता, जॉन लॉक से पूर्व बेकन ने इन्द्रिय ज्ञान को ही वास्तविक ज्ञान का साधन कहा था। जॉन लॉक ने जन्मजात प्रत्ययों का जोरदार खण्डन किया। उसके अनुसार मन एक स्वच्छ स्लेट या कोरा कागज है, उस पर कुछ भी पूर्व का लिखा नहीं होता । ज्ञान अजित किया जाता है । ज्ञान की उत्पत्ति और उसके विकास के विषय में लॉक का मत है, कि ज्ञान हमारे अन्धकारयुक्त मन में दो प्रकार से पहुँचता है-संवेदना और चिन्तन द्वारा । संवेदना ज्ञान-इन्द्रियों द्वारा प्राप्त बाह्य ज्ञान है, चिन्तन का अर्थ है-अन्तर ज्ञान । बर्कले का मत
जिस प्रकार बर्कले ने लॉक के बाह्य पदार्थों को अस्वीकार किया था,
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