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निक्षेप सिद्धान्त | १२६
निक्षेप के भेद
निक्षेप के कितने प्रकार हैं ? इसके उत्तर में इतना कहना ही पर्याप्त होगा कि किसी भी वस्तु-विन्यास के जितने क्रम हो सकते हैं, उतने ही निक्षेप होते हैं । परन्तु कम से कम चार निक्षेप माने जाते हैं। जैसे कि नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । नाम का अर्थ है-संज्ञा अथवा संकेत । स्थापना का अर्थ है-आरोपणा अर्थात् आरोप करना । द्रव्य का अर्थ हैवस्तु विशेष । भाव का अर्थ है-वर्तमान पर्याय विशेष । नाम निक्षेप
किसी व्यक्ति का अथवा किसी वस्तु का अपनी इच्छा के अनुसार नाम रख देना ही नाम निक्षेप है। जैसे किसी मनुष्य का नाम उसके माता एवं पिता ने 'इन्द्र' रख दिया । यहाँ पर इन्द्र शब्द का जो अर्थ है, वह अपेक्षित नहीं है, बल्कि एक संज्ञा मात्र ही है। नाम निक्षेप में, जाति, गुण, द्रव्य और क्रिया की आवश्यकता नहीं रहती है, क्योंकि यह नाम तो केवल लोक व्यवहार चलाने के लिए ही होता है । नामकरण संकेत मात्र से किया जाता है । यदि नाम के अनुसार, उसमें गुण भी हों, तब वह नाम निक्षेप न कहलाकर, भाव निक्षेप कहलायेगा । भाव निक्षेप उसी को कहा जाता है, जिसमें तदनुकूल गुण भी विद्यमान होते हों। स्थापना निक्षेप
किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु में, यह परिकल्पना करना कि यह वह है, स्थापना निक्षेप कहा जाता है। जो पदार्थ तद्प नहीं है, उसे तद्रूप मान लेना हो स्थापना निक्षेप है । उसके दो भेद हैं
१. तदाकार स्थापना २. अतदाकार स्थापना
किसी मूर्ति अथवा किसी चित्र में, व्यक्ति के आकारानुरूप स्थापना करना, तदाकार की स्थापना है । शतरंज आदि के मोहरों में, अश्व, गज आदि की जो अपने आकार से रहित कल्पना की जाती है, उसे अतदाकार स्थापना कहा जाता है। नाम और स्थापना, दोनों यथार्थ अर्थ से शून्य होते हैं। द्रव्यनिक्षेप
अतीत अवस्था, अनागत अवस्था और अनुयोगदशा--ये तीनों विवक्षित क्रिया में, परिणत नहीं होते। इसी कारण इन्हें द्रव्यनिक्षेप कहा जाता है । जैसे जब कोई कहता है, कि राजा तो मेरे हृदय में है तब उसका अर्थ होता है-राजा का ज्ञान मेरे हृदय में है । क्योंकि देहधारी राजा का कभी
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