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१४४ | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
पदार्थ कभी युक्त होते हुए भी अयुक्त-सा प्रतीत होता है, और कभी अयुक्त होता हुआ भी युक्त-सा प्रतीत होता है। अतः प्रमाण, नय और निक्षेप के द्वारा पदार्थ का निर्णय करना, उचित होता है।
जो किसी एक निश्चय या निर्णय में क्षेपण करता है, उसे निक्षेप कहते हैं । अप्रकृत विषय के निराकरण के लिए तथा प्रकृत अर्थ का कथन करने के लिए, संशय दूर करने के लिए और तत्त्वार्थ का निश्चय करने के लिए निक्षेपों का कथन अवश्य ही करणीय होता है। क्योंकि निक्षपों को छोड़कर, वर्णन किया गया सिद्धान्त, सम्भव है, वक्ता और श्रोता दोनों को विषम मार्ग पर ले जाए । अतएव आगम में निक्षेपों का कथन आवश्यक कहा गया है।
प्रमाण का एकदेश नय होता है। क्योंकि प्रमाण सकलादेश है, और नय विकलादेश । वस्तु के अनन्त धर्मों को प्रमाण ग्रहण करता है, और नय उसके किसी भी एक धर्म को ग्रहण करता है । नय ज्ञान स्वरूप होता है । अतः निक्षेप उसके विषय होते हैं । नय विषयी होता है । आगम के गहन तत्त्वों को समझने के लिए ही प्रमाण, नय और निक्षेप का परिज्ञान आवश्यक कहा गया है। तीनों से तत्त्व का निर्णय होता है।
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