Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 168
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शब्दार्थ - विवेचन | १५६ शब्द-प्रमाण न्याय - शास्त्र में चार प्रमाण माने जाते हैं, उनमें एक प्रमाण शब्द भी है | तर्क संग्रह ग्रन्थ में उसका लक्षण इस प्रकार है - " आप्त- वाक्यं शब्दः । " आप्त पुरुष के वचनों को शब्द प्रमाण कहते हैं । आप्त कौन है ? इसके उत्तर में कहा गया है, कि “आप्तस्तु यथार्थ वक्ता ।" जो सदा यथार्थ बोलता है, वह आप्त है । महर्षि गौतम ने कहा है- " आप्तोपदेशः शब्दः । " आप्त का उपदेश ही शब्द प्रमाण होता है । यह विस्तृत परिभाषा है । शब्द प्रमाण के भेद शब्द दो प्रकार के होते हैं - लौकिक, जिनको दृष्टार्थ शब्द भी कहते हैं । वैदिक जिनके अर्थ को लौकिक प्रत्यक्ष द्वारा सिद्ध नहीं किया जा सकता । सांख्य और मीमांसक वेदों को अपौरुषेय मानते हैं । न्याय-वैशेषिक सम्प्रदाय वालों ने वेदों की ईश्वर द्वारा उत्पत्ति मानी है । उनके अनुसार वेद ईश्वरकृत हैं । आप्त पुरुष के वाक्य को शब्द प्रमाण कहते हैं । पदों के समूह को वाक्य कहते हैं । कहा गया है - " वाक्यं पद समूहः ।" पदों का समूह वाक्य है । शब्द के भेद शब्द दो प्रकार के होते हैं-ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक । ध्वन्यात्मक शब्द वह है, जिसमें केवल ध्वनि मात्र का ज्ञान होता है । स्पष्ट अर्थों का परिज्ञान नहीं होता । वर्णात्मक शब्द दो प्रकार के होते हैंसार्थक और निरर्थक | सार्थक शब्द से अर्थविशेष का ज्ञान होता है। निरर्थक शब्द से अर्थविशेष का परिज्ञान नहीं हो पाता । शब्द की शक्ति शब्द में अर्थ प्रदान करने की शक्ति है । इस शक्ति को संकेत कहते हैं । नैयायिक के अनुसार यह ईश्वर प्रदत्त है । मीमांसा के अनुसार यह शब्द की शक्ति नित्य और स्वाभाविक ही है । संकेत के दो भेद हैं- आजानिक एवं आधुनिक । आजानिक का अर्थ है - परम्परागत, जो आदि काल से ही चला आ रहा है । और आधुनिक का अर्थ हैं - नवीन जो आधुनिक समय में चलता है । पद के भेद For Private and Personal Use Only पद के चार प्रकार हैं- रूढ़, यौगिक, योगरूढ़ और यौगिक रूढ़ ।

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