Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 174
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परिशिष्ट | १६५ है । अनुमान गलत भी हो सकता है । मुस्कान दुःख में भी सम्भव है, और आँसू सुख में भी । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्तुतः शुद्ध और सही अनुमान पर ही व्यावहारिक जीवन की सफलता निर्भर | यदि मनुष्य के पास अनुमान की शक्ति न होती, तो वह कदापि पशु से भिन्न नहीं माना जाता । मनुष्यों में श्रेष्ठ और दूरदर्शी वही है, जो प्रत्यक्ष तथ्यों के आधार पर भूत और भविष्यकाल की घटनाओं का सही और शुद्ध अनुमान कर सके । सोफिस्ट लोग अनुमान पर अत्यधिक बल दिया करते थे । क्योंकि अनुमान वाद-प्रतिवाद में विरोधियों को परास्त करने का प्रबल अस्त्र भी है । यह ठीक है, कि उनके वादविवाद से ही अनुमान के नियमों तथा सिद्धान्तों का जन्म हुआ । उन्हीं नियमों एवं सिद्धान्तों को व्यवस्थित कर अरस्तू ने तर्क को व्यवस्थित रूप प्रदान करके शास्त्र का रूप दिया । व्यावहारिक जीवन में, आकार एवं वस्तु अभिन्न हैं । परन्तु विचार के क्षेत्र में, वस्तु एवं आकार को भिन्न-भिन्न विचार सकते हैं । तार्किक लोगों ने अनुमान के सम्बन्ध में, आकार और वस्तु का भेद किया है(ख) सभी बालक चंचल हैं दिनेश बालक है दिनेश चंचल है | (क) सभी बूढ़े अनुभवी हैं रतन बूढ़ा है रतन अनुभवी है । (ग) सभी मनुष्य मरणशील हैं (घ) कोई मनुष्य अमर नहीं हितेश मनुष्य है जिनदत्त मनुष्य है जिनदत्त अमर नहीं । हितेश मरणशील है । तर्क - शास्त्र एक पद्धति है, उसके दो भेद हैं - निगमन-पद्धति और आगमन-पद्धति | आगमन और निगमन तर्क शास्त्रीय विधियों एवं प्रक्रियाओं को स्वीकार किए बिना "कोई विज्ञान संभव नहीं हो सकता । अतः तर्क-शास्त्र उक्त विधियों का निरूपण करता है । यह विज्ञानों का भी विज्ञान है । इस शास्त्र की विषय सीमा में, मुख्य रूप से अनुमान ही आता | अनुमान सम्बन्धी नियमों एवं सिद्धान्तों की खोज, तर्क - शास्त्र का मुख्य विषय माना गया है । इस शास्त्र के क्षेत्र में, निगमनात्मक और आगमनात्मक दोनों प्रकार के अनुमान आते हैं । स्पष्ट ही पाश्चात्य पद्धति, भारतीय न्याय पद्धति से भिन्न रही है । For Private and Personal Use Only

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