Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 186
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नि 0 व्याकरण, शब्द का अर्थ व व्याख्या करने की कुंजी है, तो न्याय-शास्त्र तत्व परीक्षण करने की (MASTER KEY) मुख्य चाबी है / . भारतीय दर्शनकारो ने न्यायविद्या का सहारा लेकर अपने-अपने दर्शन की सत्यता एव निर्दोषता का मण्डन करने का भरपूर प्रयास किया है और साथ ही अन्य दर्शनों के खण्डन में भी इसका प्रयोग किया है / जैन न्याय-शास्त्र की शैली खण्डनात्मक कम, मण्डनात्मक अधिक रही है। नय-निक्षेप-प्रमाण (अनेकान्त एवं स्याद्वाद) पद्धति का सर्वथा स्वतंत्र एवं अभिनव चिन्तन जैन न्याय-शास्त्र की विलक्षणता है, इसीकारण भारतीय न्याय-शास्त्र मे जैन न्याय-शास्त्र की प्रतिष्ठा है / जैनदर्शन एवं न्याय-शास्त्र के विद्धान श्री विजयमुनि जी शास्त्री ने बहुत ही संतुलित तथा तुलनात्मक दृष्टि से जैन न्याय-शास्त्र का सुन्दर प्रतिपादन प्रस्तुत किया है, इसमे समग्र भारतीय न्याय शास्त्र के साथ ही शब्दशास्त्र की दृष्टि से भी नय- निक्षेप पद्धति की उपादेयता सिद्ध की है / परिशिष्ट में लक्षणावली में मूल ग्रंथों के सूत्र देकर न्याय के विद्यार्थियों के लिए गागर में सागर भर दिया है / पाश्चात्य तर्क शास्त्र के परिप्रेक्ष्य में जैन न्याय-शास्त्र का अवलोकन एक नवीन चिन्तन प्रस्तुत करता है / / राष्ट्रसंत उपाध्याय श्री अमरमुनि जी के विद्वान शिष्य श्री विजयमुनि जी शास्त्री साहित्य, संस्कृति, अध्यात्म, दर्शन एवं न्याय-शास्त्र के गहन अभ्यासी है / प्रस्तुति कृति - की र महत्वपूर्ण पुस्तक , सिद्ध होगी / Serving JinShasand 011740 anmandir@kobatirth.org fat gyanmanaren vorne 282002. For Private and Personal Use Only

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