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दार्थ-विवेचन | १५१
३. तृतीय उल्लास में, शाब्दी व्यञ्जना और आर्थी व्यञ्जना का वर्णन है।
४. चतुर्थ उल्लास में, ध्वनि का स्वरूप, उसके भेद-प्रभेद, रस और भावों का विस्तृत विवेचन किया गया है ।
५. पञ्चम उल्लास में, गुणीभूत व्यंग्य के भेद-प्रभेद तथा व्यञ्जना की सिद्धि की है।
६. षष्ठ उल्लास में, चित्र काव्य का वर्णन किया है, जो अधम काव्य माना जाता है।
७. सप्तम उल्लास में, पद दोष, वाक्य दोष, रस दोष, अर्थ दोष आदि का अत्यन्त विस्तार से प्रतिपादन किया है।
८. अष्टम उल्लास में, माधुर्य एवं प्रसाद आदि गुणों का और गौड़ी, पाञ्चाली वृत्तियों का वर्णन किया गया है ।
६. नवम उल्लास में, शब्दालंकारों का वर्णन किया है ।
१०. दशम उल्लास में, अर्थालंकारों का विस्तार से प्रतिपादन किया है।
___ इस प्रकार काव्य-प्रकाश में, काव्य के समस्त सिद्धान्तों का वर्णन है। आचार्य मम्मट
आचार्य मम्मट को वाग्देवतावतार कहा जाता था। उनकी अमर कृति काव्य प्रकाश, काव्यशास्त्र का अद्वितीय, अनुपम तथा अतुलनीय ग्रन्थ माना जाता है। उनकी एक हो कृति ने उनको साहित्य जगत् में अमर बना दिया है। काव्य शास्त्र पर, अलंकार शास्त्र पर और साहित्य शास्त्र पर आधिपत्य प्राप्त करने के लिए इस ग्रन्थ का अध्ययन परम आवश्यक है। __आचार्य मम्मट ध्वनिवादी आचार्यों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। ध्वनिवाद की स्थापना आचार्य आनन्दवर्धन ने की थी। किन्तु उसको स्थायित्व प्रदान किया, आचार्य मम्मट ने । ध्वनिवाद के विरोधी आचार्यों के मतों का खण्डन उन्होंने इस प्रकार किया, कि आज तक किसी को ध्वनि के विरोध में खड़ा होने का साहस नहीं हुआ। आनन्दवर्धन ने ध्वनि तत्त्व पर तो विवेचन किया है, पर काव्य के अन्य साधनों से दूर हो रहे । अभिनव गुप्त की काव्य शास्त्र को लोचन और अभिनव भारती अनुपम देन है । परन्तु दोष, गुण और अलंकार का विवेचन नहीं किया। आचार्य
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