Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 165
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ / जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन दिशा प्रदान की। दर्शन-शास्त्र में जो स्थान अद्वैतवादी शंकर का है, अलंकार-शास्त्र में वही स्थान आनन्दवर्धन का है । इनके ग्रन्थ का नाम ध्वन्यालोक है । इसमें चार उद्योत हैं। इसमें ध्वनि सिद्धान्त का प्रतिपादन है। काव्य-शास्त्र के इतिहास में, ध्वन्यालोक ने एक तूफानी क्रान्ति उत्पन्न कर दी। उसके प्रबल प्रभाव से कोई भी अप्रभावित नहीं रह सका। ध्वन्यालोक आचार्य आनन्दवर्धन की रचना ध्वन्यालोक संस्कृत काव्य-शास्त्र की एक अमर कृति है। ध्वन्यालोक में तीन भाग हैं - कारिका, वृत्ति और उदाहरण । कारिका और वृत्ति स्वयं आचार्य को हैं, उदाहरणों का संकलन किया गया है। आचार्य अभिनव गुप्त ने कारिका और वत्ति भाग पर विशाल व्याख्या की रचना की है, जिसका नाम लोचन रखा गया है। यह टीका अत्यन्त महत्वपूर्ण रही है । काव्य-शास्त्र के इतिहास में ध्वनि सिद्धान्त के प्रवर्तक आचार्य आनन्दवर्धन का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने ध्वनि सिद्धान्त प्रतिपादक ध्वन्यालोक नामक ग्रन्थ की रचना कर के काव्य जगत् को एक अपूर्व देन प्रदान की है। काव्य-शास्त्र के इतिहास में आनन्दवर्धन को वही प्रतिष्ठा प्राप्त है, जो प्रतिष्ठा व्याकरण-शास्त्र में महर्षि पाणिनि को और दर्शन-शास्त्र में आचार्य शंकर को प्राप्त है । अलंकार शास्त्र के इतिहास में आनन्दवर्धन एक युग-प्रवर्तक माने जाते रहे हैं । आनन्दवर्धन ने अपने से पूर्व प्रचलित काव्य-शास्त्र के सिद्धान्तों का परिशीलन कर ध्वनि को सर्वोच्च पद पर प्रतिष्टित किया और गुण, अलंकार, रीति, और वृत्ति आदि सभी को ध्वनि के अन्तर्गत समाविष्ट कर दिया। उनके अनुसार ध्वनि हो एक मात्र तत्व है, इसी में सभी काव्य-शास्त्र के तत्व अन्तहित हैं। आनन्दवर्धन का कथन है, कि ध्वनि ही काव्य की आत्मा है। इसी से काव्य प्राणवान् बनता है। इसके विना काव्य निष्प्राण है । आचार्य ने काव्य में अर्थ तत्व को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया है। उनका कहना है, कि शरीर में चैतन्य के समान काव्य में अर्थ तत्व महनीय तत्व है। वह अर्थ तत्व दो प्रकार है-वाच्य और प्रतीयमान । प्रतीयमान अर्थ की कल्पना आनन्दवर्धन की स्वय की सूझबूझ है । वे प्रतीयमान अर्थ को काव्य की आत्मा मानते हैं । शब्द तत्व के सम्बन्ध में आनन्दवर्धन का दृष्टिकोण अलग है। उनके अनुसार प्रत्येक For Private and Personal Use Only

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