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शब्दार्थ - विवेचन | १४६
३. जिसमें वाक्य ही वाचक हो, वह वाक्य स्फोट ।
इस प्रकार त्रिविध होते हुए भी जाति व्यक्ति के भेद से पुनः छह प्रकार हैं । स्फोटात्मक शब्द, पर ब्रह्म परमेश्वर से अभिन्न है । यह शब्द रूप परब्रह्म है ।
प्रमाणों में शब्द प्रमाण
महर्षि गौतम ने चार प्रमाणों में एक शब्द को भी प्रमाण माना है । शब्द से होने वाले बोध को शब्द कहा है । शिष्ट जनों का आदेश ही चतुर्थ शब्द प्रमाण है । चरक में पतञ्जलि ने आप्त का लक्षण कहा है- " आप्तो नाम अनुभवेन वस्तु तत्त्वस्य पूर्णतः निश्चयवान् रागादि वशतोऽपि नान्यथावादी यः सः ।"
अपने अनुभव से वस्तु स्वरूप का निश्चय करने वाला, राग आदि वश होकर जो कभी असत्य नहीं बोलता, उसे आप्त कहा जाता है । आप्त पुरुष का उपदेश ही शब्द प्रमाण है ।
शब्द में रहने वाली वृत्ति तीन प्रकार की होती है-शक्ति, लक्षणा और व्यञ्जना | शक्ति को अभिधा और संकेत भी कहते हैं । नागेश भट्ट का मत
वाक् चार हैं- परा, पश्यन्ती, मध्यमा और वैखरी । उनमें परा वाक् उसे कहते हैं, जो मूलाधार में स्थित वायु से संस्कृत मूलाधार में ही रहने वाली शब्द ब्रह्म स्वरूप क्रिया- शून्य बिन्दु रूप ही परावाक् कही जाती है । उसके बाद नाभि में स्थित पवन से व्यञ्जित मन में ही दृष्टिगोचर होती है, वह पश्यन्ती वाक् कही जाती है । ये दोनों परा पश्यन्ती, वाग्रूप ब्रह्मयोगियों की समाधि में निर्विकल्प और सविकल्प विषय कहा जाता है । उसके बाद हृदय स्थित पवन से प्रकटित अर्थों का प्रतिपादन करने वाली स्फोट रूप, बुद्धि ग्राह्य मध्यमा वाक् कही जाती है । उसके बाद में मुख में स्थित पवन से टकराकर, व्यञ्जित होकर, जिसे दूसरे लोग
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सुन 'सकें, वह वैखरी वाक् कही जाती है । यह वाग् रूप ब्रह्म है । मूल चक्र में स्थित वाक् परा, नाभि में स्थित वाक् पश्यन्ती, हृदय में स्थित वाक् मध्यमा और कण्ठ में स्थित वाक् वैखरी है । वैखरी वाक् से किया हुआ शब्द अन्य लोगों के भी श्रवण गोचर होता है । मध्यमा वाकू . से किया हुआ शब्द स्फोट व्यञ्जक कहा जाता है | शब्द की उत्पत्ति
एक ही बार मध्यमा और वैखरी वाक् से शब्द उत्पन्न होता है ।