Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 152
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निक्षेप सिद्धान्त | १४३ वस्तु नाम अर्थात् अभिधान है, उसका आकार स्थापना है, भावी पर्याय के प्रति कारणता द्रव्य है और कार्यापन्न वह वस्तु भाव है। आलाप पद्धति में निक्षेप प्रमाण और नय के निक्षेपण अर्थात् आरोपण को निक्षेप कहते हैं। वह चार प्रकार का होता है--नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । निक्षेप का अर्थ है, रखना । प्रयोजनवश नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव में पदार्थ के स्थापन करने को निक्षेप कहते हैं। १. नाम---जिस पदार्थ में जो गुण नहीं है, उसको उस नाम से कहना, नाम निक्षेप है। जैसे किसी दरिद्र ने अपने पुत्र का नाम राजकुमार रखा है । वह केवल नाम भर से राजकुमार है । २. स्थापना-साकार अथवा निराकार पदार्थ में, "वह यह है" इस प्रकार की स्थापना करने को स्थापना निक्षेप कहते हैं। चित्र में स्थापना। ३. द्रव्य---आगामी परिणाम की योग्यता रखने वाले पदार्थ को द्रव्य निक्षेप कहते हैं। जैसे राजा के पुत्र को राजा कहना, युवराज को राजा कहना। ४. भाव-वर्तमान पर्याय से विशिष्ट द्रव्य को भाव निक्षेप कहते हैं । जैसे राज्य करते समय ही राजा को राजा कहना । नय-चक्र में निक्षेप द्रव्य अनेक स्वभाव वाला होता है। उन में से जिस स्वभाव के द्वारा वह ज्ञेय होता है, उसके लिए एक ही द्रव्य के चार भेद किए जाते हैं । अतः निक्षेप के चार भेद है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य की संज्ञा को नाम कहते हैं। द्रव्य निक्षेप के दो भेद है- आगम द्रव्य निक्षेप और नो आगम द्रव्य निक्षेप। जो व्यक्ति जिन विषयक शास्त्र का ज्ञाता है, किन्तु उसमें उपयुक्त नहीं है, अर्थात् ज्ञाता होते हुए भी जब वह उस विषयक शास्त्र के चिन्तन में नहीं लगा है, उसे आगम द्रव्य जिन कहते है । नो आगम द्रव्य के तीन भेद हैं-ज्ञायक शरीर, भावि और कर्म नोकर्म । ज्ञायक शरीर के तीन भेद हैं-च्युत, च्यावित और त्यक्त । भाव निक्षेप के दो भेद हैं-- आगम भाव निक्षेप और नो आगम भाव निक्षेप। ___ आगम में कहा गया है, कि जिस पदार्थ का प्रमाण के द्वारा, नय के द्वारा और निक्षेप के द्वारा सूक्ष्म दृष्टि से विचार नहीं किया जाता, वह For Private and Personal Use Only

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