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निक्षेप सिद्धान्त | १३१
कल्पना करो, एक व्यक्ति किसी नदी में से गोल पत्थर उठा लाया, और उसने उसमें शालिग्राम की स्थापना कर ली, उस स्थिति में वह व्यक्ति उसमें आदर बुद्धि भी रखता है । शास्त्रीय रहस्य को समझने के लिए ही निक्ष ेप सिद्धान्त की आवश्यकता नहीं है, बल्कि लोक व्यवहार की उलझनों को सुलझाने के लिए भी निक्षेप की आवश्यकता रहती है । अतः निक्ष ेप का ज्ञान परम आवश्यक हो जाता है । वक्ता के सही अभिप्राय को इसके बिना नहीं समझा जाता । नय और निक्षेप में भेद
नय और निक्षेप में क्या भेद है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि नय और निक्षेप में विषय और विषयी भाव सम्बन्ध है । नय ज्ञानात्मक है, और निक्षेप ज्ञेयात्मक । निक्षेप को जानने वाला नय है । शब्द और अर्थ में जो वाच्य वाचक सम्बन्ध है, उसके स्थापना की क्रिया का नाम, निक्ष ेप है, और वह नय का विषय है, तथा नय उसका विषयी है । प्रथम के तीन निक्ष ेप, द्रव्यार्थिक नय के विषय हैं, और अन्तिम भाव निक्ष ेप, पर्यायार्थिक नय का विषय है । निक्षेप की यह पद्धति, मूल आगमों में, नियुक्तियों में तथा भाष्यों में प्रयुक्त होती रही है। दर्शन और न्यायशास्त्र में इसका प्रयोग बहुत कम हुआ है ।
शब्द और अर्थ की पद्धति
निक्ष ेप शब्द जैन आगमों में प्रयुक्त होने वाला एक पारिभाषिक शब्द है । यह शब्द एवं अर्थ को समझने की एक पद्धति विशेष है । किस अवसर पर किस शब्द का क्या अर्थ करना, और उस अर्थ के अनुसार कैसा व्यवहार करना, इस कला को निक्षेप कहा गया है । शब्दों का प्रयोग कैसे करना, यही तो निक्षेप प्रक्रिया का तात्पर्य है । शब्दों के अर्थ बदलते रहते
| वक्ता के अभिप्राय को समझना कठिन होता है, उसको सरल करने की कला ही वस्तुतः निक्ष ेप तथा अनुयोग कहा जाता है । बिना इनके शास्त्र IT अर्थ नहीं किया जा सकता । निक्षेप, भाषा और भाव की संगति करता है । शब्द बिना अर्थ का नहीं होता, और अर्थ भी बिना शब्द का नहीं होता । शब्द वाचक है, और अर्थ वाच्य है । वाचक हो, और वाच्य न हो, यह तो सम्भव ही नहीं । वाक् और अर्थ दोनों साथ ही रहते हैं, कभी अलग नहीं हो सकते ।
श्वेताम्बर तथा दिगम्बर
दोनों परम्पराओं में, ज्ञान, प्रमाण, नय, सप्तभंगी, स्याद्वाद और
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