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निक्षेप सिद्धान्त | १३५
शब्द प्रसंगानुसार विविध अर्थों का जताने वाला हो जाता है। इस प्रकार यदि एक शब्द के मुख्य अर्थ देखे जाएँ, तो चार होते हैं । ये ही चार अर्थ उस शब्द के अर्थ की दृष्टि से चार भेद हैं । इसी को न्यास एवं निक्षेप कहते हैं । इनको जान लेने से प्रकृत अर्थ का बोध होता है, और अप्रकृत अर्थ का निराकरण होता है। निक्षेप के चार भेद इस प्रकार हैं
१. नाम निक्षेप-जिसमें व्युत्पत्ति की प्रधानता नहीं, किन्तु जो इतर लोगों के संकेत बल से जाना जाता है, वह अर्थ नाम निक्षेप का विषय है । जैसे माता-पिता ने अपने पुत्र का सेवक नाम रख दिया। किन्तु उसमें सेवा का गुण नहीं है।
२. स्थापना निक्षेप --जो वस्तु असली वस्तु की प्रतिकृति, मूर्ति या चित्र है, जिसमें असली वस्तु का आरोप किया गया है, वह स्थापना निक्षेप का विषय है। जैसे गाँधीजी का चित्र।
३. द्रव्य निक्षेप-जो अर्थ, भाव का पूर्व या उत्तर रूप हो, वह द्रव्य निक्षेप का विषय है । जो वर्तमान में, सेवा नहीं कर रहा है, किन्तु कर चुका है, अथवा करेगा, वह द्रव्य सेवक होता है।
४. भाव निक्षेप-जिस अर्थ में, शब्द का व्युत्पत्ति या प्रवृत्ति निमित्त वर्तमान में, घटमान हो, वह भाव निक्षेप का विषय है । जो वर्तमान में सेवा कार्य में संलग्न है, वह भाव सेवक होता है। इनमें से प्रारंभ के तीन निक्षेप, सामान्य रूप होने से द्रव्याथिक नय के विषय हैं, और भाव पर्याय रूप होने से पर्यायाथिक नय का विषय है । व्यवहार और भाषा
समस्त व्यवहार का मुख्य साधन भाषा है । किसको क्या देना और किससे क्या लेना, इस प्रकार का जो व्यवहार है, वह बिना भाषा सम्भव नहीं है । गुरु अपने शिष्य को ज्ञान देता है, शिष्य उसे ग्रहण करता है, वह भी भाषा के बिना नहीं हो सकता है । भाषा शब्दों से बनती है, शब्द पदों से बनते हैं, और पद अक्षरों से बनते हैं । अतः अक्षर, पद, शब्द, वाक्य और भाषा । यही विकास का क्रम रहा है। एक शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं। कम से कम चार अर्थ तो हैं ही। ये ही चार निक्षेप, न्यास और विभाग कहे जाते हैं । प्रसिद्ध नाम निक्षेप है। शब्दों के भेद
शब्दों के अनेक भेद होते हैं। जैसे कि संज्ञा शब्द, आख्यात शब्द और धातु शब्द अर्थात् क्रिया शब्द तथा निपात शब्द । शब्द के दो भेद भी
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