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१३६ | जैन न्याय - शास्त्र : एक परिशीलन
होते हैं - यौगिक और रूढ़ । तीसरा भेद भी हो सकता है - योग- रूढ़ | वाचक और कुम्भकार आदि यौगिक शब्द हैं। गाय और घोड़ा आदि रूढ़ शब्द हैं । पचति, इति पाचक, तथा कुम्भं करोति, इति कुम्भकारः । इन शब्दों की व्युत्पत्ति का निमित्त है । ये शब्द क्रिया के आश्रय से बने हैं, वह क्रिया शब्दों की व्युत्पत्ति का निमित्त कही जाती है । पाचक और कुम्भकार आदि शब्दों में पाक क्रिया और घटन क्रिया को व्युत्पत्ति निमित्त समझना चाहिए ।
यौगिक शब्दों में, व्युत्पत्ति का निमित्त ही उनकी प्रवृत्ति का निमित्त बनता है । लेकिन रुढ़ शब्दों के विषय में यह बात नहीं है । रूढ़ शब्द व्युत्पत्ति के आधार पर व्यवहृत नहीं होते, रूढ़ि के अनुसार ही उनका अर्थ होता है । जैसे कि गाय और घोड़ा - इन शब्दों की व्युत्पत्ति नहीं होती, रूढ़ि के अनुसार ही उनका प्रयोग किया जाता है । व्युत्पत्ति के अनुसार उनका प्रयोग नहीं होता । आकृति और जाति ही रूढ़ शब्दों के व्यवहार का निमित्त है । अतः आकृति और जाति को उस प्रकार के शब्दों का व्युत्पत्ति निमित्त नहीं, लेकिन प्रवृत्ति निमित्त ही कहा जाता है । जहाँ यौगिक शब्द विशेषण रूप हो, वहाँ व्युत्पत्ति निमित्त वाले अर्थ को भाव निक्षेप और जाति नाम जहाँ रूढ़ शब्द हो, वहाँ प्रवृत्ति निमित्त वाले अर्थ को भाव निक्षेप समझना चाहिए ।
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जैन सिद्धान्त दीपिका में निक्षेप
आचार्य तुलसी गणि ने स्व-प्रणीत, सूत्रात्मक तथा सवृत्ति ग्रन्थ जैन सिद्धान्त दीपिका में निक्षेप का अत्यन्त सुन्दर एवं सरल व्याख्यान किया है । ग्रन्थ के नवम प्रकाश में, निक्षेप का वर्णन इस प्रकार प्रारम्भ किया है ।
" शब्दों में विशेषण द्वारा प्रतिनियत अर्थ का प्रतिपादन करने की शक्ति निहित करने को निक्षेप कहा गया है । प्रत्येक शब्द में, असंख्य अर्थों को प्रकट करने की शक्ति होती है । अप्रस्तुत अर्थ का निराकरण, और प्रस्तुत अर्थ का कथन, यह निक्षेप का प्रयोजन है । उसके चार भेद हैं, जो इस प्रकार हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ।
१. जाति, द्रव्य, बिना संकेत मात्र से जो
वस्तु-न्यास के जितने क्रम हैं, उतने ही निक्षेप होते हैं। कम से कम चार निक्षेप होते हैं । वे अवश्यमेव करने चाहिए ।
गुण, क्रिया और लक्षण इन निमित्तों की अपेक्षा संज्ञा की जाती है, वह नाम निक्षेप है ।
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