Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 149
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० / जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन जाता है, अपेक्षा भेद से । नय का सार तत्त्व यही तो है । अतः नय महत्वपूर्ण विषय है। काव्य शास्त्र में शब्दों की अभिधा शक्ति के अतिरिक्त लक्षणा तथा व्यंजना शक्ति को भी स्वीकार किया गया है । क्योंकि उनके विना शब्दों का सही अर्थ नहीं किया जा सकता । एक शब्द के अनेक अर्थ सम्भव हैं, जो शब्द वत्तियों से ही सम्भव हो सकता है। जैसे हम कभी-कभी कहते हैं, कि देवदत्त निरा बैल है। लेकिन मनुष्य बैल कैसे हो सकता है ? पर, इस प्रकार का कथन असत्य भो नहीं हो सकता। अतः लक्षणा के द्वारा यहाँ बैल का अर्थ है-निरा बुद्ध अथवा मूर्ख । जैन दर्शन इस प्रकार के वचनों को नैगम नय में ही अन्तर्भूत कर लेता है। अतः नय महत्वपूर्ण हैं । नयों का भी तर्क भाषा में विस्तार से कथन है। तभाषा में निक्षेप इस ग्रंथ का तृतीय विषय है-निक्षेप । नय कम अधिक मात्रा में अर्थ की अपेक्षा रखता है, किंतु अनेक स्थल इस प्रकार के भी होते हैं, जहाँ व्यवहार के साथ अर्थ का किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता। कल्पना करो, मोहन व्यक्ति परम मूर्ख है, लेकिन उसका नाम बृहस्पति रख दिया गया । यहाँ यह प्रश्न होता है, कि क्या उस व्यक्ति को बृहस्पति कहना, असत्य वचन है ? नहीं, वह कथन असत्य नहीं है, सत्य ही है। पत्थर की मूर्ति को विष्ण, मिट्टी की मूर्ति को दुर्गा आदि देवी-देवों को नाम से संबोधित किया जाता है। शतरंज के पासों को गज एवं अश्व आदि कहा जाता है । गाँधीजी के चित्र को गांधीजी कहा जाता है। पर, यह असत्य नहीं है क्योंकि इसके लिए जैन दर्शन निक्षेप के सिद्धान्त को प्रस्तुत करता है। यह शब्द क्षिप् धातु से बना है। उसका अर्थ है-फेंकना । अर्थ का विचार किए बिना शब्द को वस्तु पर फेंकना, निक्षेप होता है। यह निक्षेप शब्द की व्युत्पत्ति है । निक्षेप का अर्थ-न्यास और विभाग भी किया जाता है । नय और निक्षेप नय ज्ञान रूप है, और निक्षेप शब्द रूप है। नय में व्यवहार की प्रधानता रहती है। उसमें अर्थ की ओर भी ध्यान रहता है, जबकि निक्षेप में शब्द की ओर लक्ष्य रहता है। उसमें अर्थ की ओर ध्यान नहीं रहता है। तृतीय द्रव्य निक्षेप भूत और भावी अवस्थाओं को लेकर चलता है, जबकि चतुर्थ निक्षेप वर्तमान की वास्तविकता को लेकर चलता है। निक्षेप का सिद्धान्त भी जैन दर्शन की मौलिक देन है । आगम साहित्य में, व्याख्या की For Private and Personal Use Only

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