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१३४ | जैन न्याय - शास्त्र : एक परिशीलन
कुप्रावनिक द्रव्य निक्षेप है । ये विविध भेद द्रव्य निक्ष ेप के हैं । भेद और भी बहुत हैं, पर यहाँ संक्षेप से कथन किया गया है ।
जिस वस्तु का जो गुण है, गुणानुसार उसका निरूपण करना, भाव निक्ष ेप है । भाव निक्ष ेप के दो भेद हैं
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१. आगम भाव निक्ष ेप
२. नो आगम भाव निक्ष ेप
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१. उपयोग पूर्वक शास्त्र पढ़ना, यही आगम से भाव निक्षेप है । २. नो आगम से भाव निक्ष ेप के तीन भेद हैं
१. लौकिक
२. लोकोत्तर
३. कुप्रावचनिक
१. जो व्यक्ति प्रातःकाल उपयोग पूर्वक महाभारत को और मध्य बेला में, रामायण को पढ़ते हैं, अथवा सुनते हैं, उसे लौकिक नो आगम से भावनिक्षेप कहते हैं ।
२. जो श्रमण अथवा श्रावक उभयकाल उपयोगपूर्वक एवं शुद्ध आवश्यक करते हैं, उनका यही लोकोत्तर नो आगम से भाव निक्ष ेप है । ३. जो व्यक्ति अर्थात् अन्धविश्वासी एवं अन्यधर्मी उपयोगपूर्वक एवं शुद्ध तथा अर्थ सहित ॐ आदि का जप तथा ध्यान करते हैं, उनका यह कुप्रावचनिक नो आगम भाव निक्ष ेप है । इस प्रकार अनुयोगद्वार सूत्रगत निक्ष ेप का स्वरूप तथा उसके प्रभेदों का संक्षेप में ही प्रतिपादन किया गया है ।
तत्वार्थ सूत्र में निक्षेप
वाचक उमास्वाति ने स्व-विरचित ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र अध्याय प्रथम, सूत्र पाँच में चार निक्षेपों का वर्णन किया है- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । इन चार निक्ष ेपों से सम्यग्दर्शन तथा जीव आदि का न्यास अर्थात् निक्ष ेप होता है ।
लोक में, अथवा आगम में, जितना शब्द व्यवहार होता है, वह कहाँ और किस अपेक्षा से किया जा रहा है ? इस समस्या को सुलझाना ही निक्षेप व्यवस्था का काम है । प्रयोजन के अनुसार एक ही शब्द के अनेक अर्थ हो जाते हैं ।
महाभारत में, 'अश्वत्थामा हतः, युधिष्ठिर के इतना कहने भर से युद्ध की दिशा में परिवर्तन हो गया। इससे ज्ञात होता है, कि एक ही
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