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निक्षेप सिद्धान्त | १३३
निक्षेप है । अतीत और अनागत पर्याय के कारण को भी द्रव्य निक्ष ेप कहा जाता है । उसके दो भेद हैं
१. आगम द्रव्य निक्ष ेप ।
२. नो आगम द्रव्य निक्षेप ।
आगम का पठन-पाठन तो करे, परन्तु न तो उसका अर्थ समझे, और न उपयोगपूर्वक पढ़े अथवा बोले, शून्य चित्त से तोता रटन कर ले, वह आगम द्रव्य निक्षेप है ।
नो आगम द्रव्य निक्षेप के तीन भेद हैं
१. ज्ञायक शरीर द्रव्य निक्षेप ।
२. भव्य शरीर द्रव्य निक्षेप ।
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३. ज्ञायक - शरीर, भव्य शरीर, तद् व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप ।
१. एक श्रावक आवश्यक सूत्र का ज्ञाता था, वह मरण को प्राप्त
हो गया । उसका शरीर पड़ा है । उसे देखकर यह कहना कि यह आव
श्यक सूत्र का ज्ञाता था । यह ज्ञायक शरीर द्रव्य निक्ष ेप है ।
२. श्रावक के घर पुत्र जन्मा । उसको देखकर कहना, कि यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता होगा । यह भव्य शरीर नो आगम द्रव्य निक्ष ेप
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३. ज्ञायक - शरीर, भव्य शरीर और तद् व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप के तीन भेद हैं
१. लौकिक ।
२. लोकोत्तर |
३. कुप्रावचनिक ।
१. राजा, सेठ एवं सेनापति आदि द्वारा सभा में बैठकर, अवश्य करने योग्य कार्यों का किया जाना । यह लौकिक तद् व्यतिरिक्त द्रव्य निक्षेप है ।
२. जो नाम से तो साधु है, पर उसमें साधु के गुण नहीं हैं । षट्काय के जीवों की दया नहीं करता, तप नहीं करता, उभयकाल आवश्यक करता है, वह लोकोत्तर द्रव्य निक्षेप के अनुसार है ।
३. यज्ञ आदि हिंसामूलक क्रिया को करने वाला तापस, ब्राह्मण एवं पाखण्ड मार्ग पर चलने वाला, मिथ्यात्वी देवों की भक्ति करने वाला, धूप दीप करने वाला, गृहस्थ धर्म को ही कल्याणकर समझने वाला, यह
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