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१३० | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
किसी के हृदय में रहना सम्भव नहीं है। यह अनुपयोग दशा है। द्रव्यनिक्षेप के अन्य दो उदाहरण हैं, कि जो पहले कभी राजा रहा है, किन्तु वर्तमान में राजा नहीं है, उसे राजा कहना, अतीत द्रव्य निक्षेप है।
वर्तमान में जो राजा नहीं है, किन्तु भविष्य में जो राजा बनेगा, उसे वर्तमान में राजा कहना, अनागत द्रव्य निक्षेप है। उक्त द्रव्य निक्षेप का अर्थ है-जो अवस्था अतीत काल में हो चुकी हो, अथवा भविष्य काल में होने वाली हो, उसका वर्तमान में कथन करना। यह द्रव्य निक्षेप है। जीव के सम्बन्ध में, यह भंग घटित नहीं होता। अतः उसे शून्य कहा गया है। जीव विशेष की अपेक्षा से इस भंग को घटाने का भी प्रयत्न किया गया है। भाव निक्षेप
वर्तमान पर्याय-परिणत वस्तु को भाव निक्षेप कहा गया है। जैसे राज्य सिंहासन पर स्थित व्यक्ति को राजा कहना । भाव निक्षेप की दृष्टि में, राजा वही व्यक्ति हो सकता है, जो वर्तमान में राज्य कर रहा हो। इसके विपरीत जो व्यक्ति पहले राज्य कर चुका है, अथवा भविष्य में राज्य करेगा, किन्तु वर्तमान में वह राज्य नहीं कर रहा है, तो भावनिक्षेप उसे राजा नहीं मानता।
निक्षेप के अनुसार, राजा शब्द के चार अर्थ होते हैं-नाम राजा, स्थापना राजा, द्रव्य राजा और भाव राजा । किसी व्यक्ति का नाम राजा रख देना, नाम राजा है। किसी राजा के चित्र को अथवा मूर्ति को राजा कहना, अथवा किसी भी पदार्थ में, यह राजा है, इस प्रकार की परिकल्पना करना यह स्थापना राजा है। द्रव्य राजा उसे कहा जाता है, जो वर्तमान में तो राजा नहीं है, किन्तु अतीत में रह चुका है, अथवा भविष्य में राजा बनेगा । भाव राजा वह है, जो वर्तमान में, राज्य पद पर स्थित है, और राज्य का संचालन कर रहा है । नाम और स्थापना
__नाम निक्षेप में और स्थापना निक्षेप में क्या अन्तर है ? क्योंकि नाम निक्षेप में किसी व्यक्ति का कुछ भी नाम रख दिया जाता है, और स्थापना निक्षेप में भी मूर्ति और चित्र आदि में नाम रख दिया जाता है । इसके समाधान में कहा गया है, कि नाम और स्थापना में इतना ही भेद है, कि नाम निक्षेप में आदर और अनादर बुद्धि नहीं रहती, जबकि स्थापना निक्षेप में आदर और अनादर बुद्धि की जाती है।
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