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११२ | जैन न्याय -शास्त्र : एक परिशीलन
सामान्य में भेद करना आवश्यक होता है । को स्वीकार किया, लेकिन व्यवहार नय और पर्याय । यह व्यवहार नय है ।
गोत्व सामान्य नहीं करता, उसके लिए गो व्यक्ति अनिवार्य होता है । अतः संग्रह नय ने सत्ता रूप अभेद उसके दो भेद कर दिये - - द्रव्य
ने
व्यवहार नयाभास
जो विचार द्रव्य और पर्याय का अपारमार्थिक विभाग स्वीकार करता है, वह व्यवहार नयाभास है । जैसे कि वृहस्पति वा चार्वाक दर्शन । द्रव्य और पर्याय में वास्तविक भेद मानना, व्यवहार नय है, और भेदन मानना, व्यवहार नयाभास है । चार्वाक दर्शन द्रव्य और पर्याय में भेद को नहीं मानता, जो कि वस्तुतः वास्तविक है, किन्तु जो अवास्तविक भूत चतुष्टय है, उसको मानता है । अतः चार्वाक दर्शन व्यवहार नयाभास है । ऋजुसूत्र नय
द्रव्यार्थिक नयों का भेद-प्रभेद करके आचार्य ने पर्यायार्थिक नयों के भेद-प्रभेद इस प्रकार प्रारम्भ किये हैं । पर्यायार्थिक नय के चार प्रकार हैं - ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत । चार में से प्रथम ऋजुसूत्रनय का लक्षण आचार्य ने इस प्रकार किया है
जो विचार, पदार्थ की वर्तमान क्षण में होने वाली पर्याय को ही मुख्य रूप से ग्रहण करता है, वह ऋजुसूत्र नय कहा जाता है । जैसे कि इस समय जीव की सुख रूप पर्याय । द्रव्य को गौण करके मुख्य रूप से पर्याय को ही ग्रहण करने वाला नय, पर्यायार्थिक नय कहा गया है । ऋजुसूत्रनय पर्याय को ही प्रधान रूप से ग्रहण करता है । यहाँ पर सुख पर्याय की मुख्यता है, और उसका आधारभूत जीव द्रव्य गौण हो गया है ।
ऋजुपुत्र नयाभास
जो विचार द्रव्य का एकान्तरूप में अपलाप अर्थात् निषेध करता है, वह ऋजुसूत्र नयाभास है । जैसे कि बौद्ध दर्शन । ऋजुसूत्र द्रव्य को अप्रधान करके पर्याय को प्रधानता प्रदान करता है । लेकिन ऋजुसूत्र नयाभास तो द्रव्य का सर्वथा ही अपलाप अर्थात् निषेध करता है । वह पर्याय को हो वास्तविक मानता है । पर्यायों में अनुस्यूत द्रव्यत्व का निषेध करता है । अतः बौद्ध दर्शन क्षणवादी होने से ऋजुसूत्र नयाभास कहा गया है ।
शब्द नय
आचार्य वादिदेवसूरि का कथन है, कि काल और कारक आदि के भेद से ध्वनि के अर्थ में, भेद करने वाला विचार, शब्द नय होता है । यह
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