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१२६ | जैन न्याय - शास्त्र : एक परिशीलन
लेना होगा, क्योंकि देहधारी गुरु किसी के हृदय में कैसे रह सकता है ? अतः उक्त वाक्य में गुरु का ज्ञान, यह अर्थ प्रस्तुत है, न कि स्वयं गुरु व्यक्ति । निक्षेप का सबसे बड़ा उपयोग यह है, कि वह अप्रस्तुत अर्थ को दूर करके प्रस्तुत अर्थ का ज्ञान करा देता है । निक्षेप की उपयोगिता केवल शास्त्र में ही नहीं, बल्कि मनुष्य के दैनिक व्यवहार में भी रहती है । बिना निक्षेप के मनुष्य का व्यवहार चल नहीं सकता ।
वाच्य वाचक सम्बन्ध
संसार के जीवों का समग्र व्यवहार पदार्थ के आश्रित रहता है । पदार्थ एक नहीं अनन्त हैं । उन समग्र पदार्थों का व्यवहार एक साथ नहीं हो सकता । यथावसर प्रयोजन-वशात् अमुक किसी एक पदार्थ का ही व्यवहार होता है । अतः जिस उपयोगी पदार्थ का ज्ञान हम करना चाहते हैं, उसका ज्ञान शब्द के आधार से ही किया जा सकता है | किन्तु किस शब्द का क्या अर्थ है, यह कैसे जाना जाए ? वस्तुतः इसी प्रश्न का समाधान, निक्षेप सिद्धान्त है ।
व्याकरण के अनुसार, शब्द और अर्थ परस्पर सापेक्ष होते हैं । शब्द को अर्थ की अपेक्षा रहती है और अर्थ को शब्द की अपेक्षा रहती है । यद्यपि शब्द और अर्थ दोनों स्वतन्त्र पदार्थ हैं, तथापि उन दोनों में एक प्रकार का सम्बन्ध माना गया है । इस सम्बन्ध को वाच्य वाचक सम्बन्ध कहा जाता है । शब्द वाचक है और अर्थ वाच्य है । वाच्य वाचक सम्बन्ध का ज्ञान होने पर ही शब्द का उचित प्रयोग किया जा सकता है। इस दृष्टि से निक्षेपका सिद्धान्त एक वह सिद्धान्त है, जिससे शब्द के अर्थ को समझने की कला का परिज्ञान होता है । निक्षेप एक पद्धति है ।
वाचक उमास्वाति ने स्वरचित तत्वार्थ सूत्र के प्रथम अध्याय के पंचम सूत्र में, निक्षेप के चार प्रकार कहे हैं- नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । चारों की मिलकर निक्षेप संज्ञा है । निक्षेप का अर्थ है - फेंकना तथा न्यास करना, रखना । शब्द को चार अर्थों में फेंकना । किसी भी सार्थक शब्द का अर्थ विचारना हो, तो उसको इन चारों का आधार लेकर ही किया जा सकता है, जिससे वक्ता के विचार को सही समझा जा सके । जैसे कि एक शब्द है, राजा । इसका वाक्य प्रयोग इस प्रकार हो सकता है- - राजा आ रहा है । 'आ रहा है' क्रियापद है, उसका कर्ता राजा है । राजा शब्द के चार अर्थ हैं
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