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नय - निरूपणा | १११
निषेध करता हो, वह पर संग्रह नयाभास होता है। जैसे कि जगत में सत्ता ही एक मात्र वस्तु है, उससे भिन्न घट-पट आदि विशेष की सत्ता नहीं है । पर संग्रह नय और संग्रह नयाभास दोनों ही एक मात्र सत्ता को स्वीकार करते हैं, फिर भी दोनों में अन्तर यह है, कि पर संग्रह नय विशेष का निषेध नहीं करता, और पर-संग्रह नयाभास विशेषों का एकान्त रूप से निषेध ही करता है। दूसरे अंश की उपेक्षा करना, नय है । दूसरे अंश का निषेध, आभास है । इसका उदाहरण है- वेदान्त दर्शन । जैन दर्शन के अनुसार वेदान्त दर्शन पर संग्रह नयामास माना गया है । क्योंकि वह एक मात्र सत्ता ब्रह्म के अतिरिक्त सबका एकान्त निषेध करता है ।
आचार्य वादिदेव सूरि ने अपर संग्रह नय का लक्षण इस प्रकार किया है- जो विचार द्रव्यत्व आदि अवान्तर सामान्य को मानता हो, और उसके भेदों की उपेक्षा करता हो, वह अपर - संग्रह नय होता है । जैसे कि धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव- ये सब द्रव्य एक हैं, क्योंकि सव में द्रव्यत्व व्याप्त है । द्रव्यत्व रूप में सब द्रव्य एक हैं । अपर संग्रह नय, अपर सामान्य को विषय करता है । इस नय की दृष्टि में, एक होने से सभी द्रव्य एक होते हैं ।
अपर संग्रह नयाभास
जो विचार द्रव्यत्व आदि अपर सामान्य को मान कर भी उनके भेदों का निषेध करता हो वह अपर संग्रह नयाभास है । जैसे द्रव्यत्व ही वास्तविक है, उससे भिन्न धर्म आदि द्रव्य की उपलब्धि नहीं होती है । यह अपर संग्रह नयाभास अपर सामान्य के भेदों का निषेध करता है । अतः उसकी गणना नयाभासों में की जाती है ।
व्यवहार नय
आचार्य ने व्यवहार नय का लक्षण करते हुए कहा है, कि वक्ता का जो अभिप्राय संग्रह नय द्वारा ज्ञात अर्थात् विषयीकृत सामान्य रूप पदार्थों में, विधिपूर्वक भेद करता हो, वह व्यवहार नय होता है । जैसे कि जो सत् होता है, अर्थात् जो सत्तावान् पदार्थ है, वह द्रव्य होगा या पर्याय होगा । संग्रह नय द्वारा संगृहीत सामान्य में भेद करने वाला, व्यवहार कहा जाता है | क्योंकि केवल सामान्य के आधार पर लोक व्यवहार नहीं चलता । लोक व्यवहार के लिए विशेषों की आवश्यकता पड़ती है । जाति से काम नहीं चलता, उसके लिये व्यक्ति आवश्यक है। दूध की आवश्यकता की पूर्ति
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