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५२ | जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन
। स्थानकवासी परम्परा में, सूत्रात्मक न्याय का यह प्रथम ग्रन्थ है। दिगम्बर परम्परा के परीक्षामुख तथा श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के प्रमाण-नयतत्त्वालोकालंकार से भी अधिक स्पष्ट, अधिक सरल और अधिक बुद्धिगम्य है-यह लघुकाय ग्रन्थ ।
तेरापन्थी परम्परा का न्याय-ग्रन्थ 'भिक्षु न्यायकणिका' भी एक लघुकाय सुन्दर ग्रन्थ कहा जा सकता है।
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