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वस्तु का लक्षण | ८१
सकल प्रत्यक्ष केवलज्ञान है। विकल प्रत्यक्ष के दो भेद हैं-अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान । सांव्यावहारिक प्रत्यक्ष के चार भेद हैं-अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। परोक्ष प्रमाण
___ जो ज्ञान अविशद अथवा अस्पष्ट है, वह परोक्ष है। परोक्ष प्रमाण, प्रत्यक्ष से ठीक विपरीत होता है । परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद हैं-स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनमान और आगम अथवा शब्द प्रमाण । उनका स्वरूप इस प्रकार से है
१. स्मरण-वासना एवं संस्कार के उद्बोधन से उत्पन्न होने वाला, 'वह' इस आकार वाला, जो ज्ञान है, वह स्मरण एवं स्मृति है । संस्कार का जागरण कैसे होता है? स्मृति,अतीत के अनुभव का स्मरण होता है । समानता एवं विरोध आदि अनेक कारणों से वासना का उद्बोधन हो सकता है । क्योंकि स्मृति अतीत के अनुभव का स्मरण है, अतएव 'वह' इस प्रकार का ज्ञान स्मरण की विशेषता है। भारतीय दर्शनों में, एक जैन दर्शन ही ऐसा दर्शन है, जो स्मृति को प्रमाण रूप में स्वीकार करता है।
२. प्रत्यभिज्ञान-दर्शन और स्मरण से उत्पन्न होने वाला, 'यह वही है' यह उसके समान है, यह उससे विलक्षण है, यह उसका प्रतियोगी है, आदि रूप वाला, संकलनात्मक जो ज्ञान होता है, वह प्रत्यभिज्ञान कहा गया है। प्रत्यभिज्ञान में, दो प्रकार के अनुभव होते हैं, एक प्रत्यक्ष दर्शन, जो वर्तमान काल में रहता है, और दूसरा स्मरण, जो भूतकाल का अनुभव होता है । जिस ज्ञान में, प्रत्यक्ष और स्मृति, इन दोनों का संकलन होता है, वह ज्ञान प्रत्यभिज्ञान है । 'यह घट, उस घट के समान है' यह सादृश्यविषयक ज्ञान है, इसको अन्य दर्शनों में उपमान कहा गया है।
३. तर्क-उपलम्भ-अनुपलभ्भ निमित्त व्याप्ति ज्ञान, तर्क होता है। इसका दूसरा नाम ऊह भी कहा जाता है। उपलम्भ का अर्थ है-लिंग के सद्भाव से साध्य के सद्भाव का ज्ञान । धूम लिंग है, और अग्नि साध्य है । धूम के सद्भाव के ज्ञान से अग्नि के सद्भाव का ज्ञान करना, उपलम्भ है। अनुपलम्भ का अर्थ है- साध्य के असद्भाव से लिंग के असद्भाव का ज्ञान । 'जहाँ अग्नि नहीं है, वहाँ धूम भी नहीं हो सकता।' इस प्रकार का निर्णय अनुपलम्भ कहा जाता है। उपलम्भ और अनुपलम्भ रूप जो व्याप्ति है, उससे उत्पन्न होने वाला ज्ञान, तर्क कहा गया है ।
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