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८६ / जैन न्याय-शास्त्र : एक परिशीलन रची । इसमें सूत्र और विस्तृत वृत्ति रची। प्रमाण शास्त्र पर यह एक महत्वपूर्ण रचना है। अकलंक देव ने सिद्धि विनिश्चय एवं लघीयस्त्रय की रचना की। माणिक्यजन्दि ने परीक्षामुख सूत्रात्मक ग्रन्थ बनाया। प्रमेय कमल मार्तण्ड एवं प्रमेय-रत्न-माला बनी। धर्मभूषण ने न्याय दीपिका जैसे लघु ग्रन्थ की रचना की । अन्य भी अनेक आचार्यों ने प्रमाण विषयक ग्रन्थों की रचना की।
नव्य-न्याय युग चतुर्थ-युग-नव्य न्याय का कहा जाता है। नव्य न्याय की नव्य भाषा में, वाचक यशोविजय ने प्रमाण और नय पर अनेक ग्रन्थों की रचना की । "जैन तर्क भाषा" उनका अत्यन्त लोकप्रिय ग्रन्थ है, जिसमें प्रमाण, नय और निक्षेप जैसे गम्भीर विषयों पर नव्य न्याय की नूतन शैली में विवेचना की है। नय-रहस्य एवं नय प्रदीप ग्रन्थों में नय तथा सप्त भंगी जैसे ग्रन्थों की रचना की। प्रमाण, नय, सप्त भंगी और निक्षेप आदि पर तर्क भाषा में अत्यन्त सुन्दर शैली से लिखा है। इस युग की एक अन्य रचना, विमलदास ने की है, जिसका नाम है-सप्त भंग तरंगिणी।।
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