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Ex | जैन न्याय - शास्त्र : एक परिशीलन
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नय प्रतिपादन पद्धति
जिस प्रकार नयों के प्रकार भिन्न भिन्न हैं, तथा उनकी संख्या भी भिन्न-भिन्न है, उसी प्रकार नयों के प्रतिपादन की पद्धति भी भिन्न-भिन्न हैं । तीन प्रकार से नयों का प्रतिपादन किया गया हैं- आगम, दर्शन, तर्क । १. आगम पद्धति - मूल आगमों में, उनके व्याख्या ग्रन्थ, निर्युक्ति, भाष्य, चूर्णि और विशेष रूप में, विशेषावश्यक भाष्य में नयों का जो प्रतिपादन किया गया है, वह सब आगमधर विद्वानों के द्वारा किया गया है । अनुयोग तथा निक्षेप की भाँति नय भी आगम व्याख्या के साधन हैं, साध्य नहीं । अनुयोगद्वार - सूत्र में, आगम पद्धति से नयों का वर्णन किया है । लक्षण और परिभाषा न देकर भेद तथा उपभेदों का कथन अधिक किया गया है ।
आगम पद्धति का दूसरा वर्णन दिगम्बर परम्परा के आगमों में, और आचार्य कुन्दकुन्द के समयसार एवं प्रवचनसार आदि ग्रन्थों में दृष्टिगोचर होता है, जहाँ नय के दो भेद हैं - निश्चय नय और व्यवहार नय | आचार्य अमृतचन्द्र की संस्कृत टीकाओं में निश्चय और व्यवहार के अनेक उपभेदों का कथन मिलता है । इस पद्धति का विकास माइल्लधवल विरचित नयचक ग्रन्थ में तथा देवसेनकृत आलाप पद्धति में अत्यन्त चारु रूप में किया गया है ।
२. दर्शन पद्धति - मूल तत्वार्थ सूत्र में, उमास्वाति आचार्य द्वारा रचित स्वोपज्ञ भाष्य में और उसकी विशाल टीका सिद्धसेनीया में, दार्शनिक दृष्टिकोण से नयों का विवेचन किया गया है । श्वेताम्बर परम्परा के परम दार्शनिक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के प्रसिद्ध ग्रन्थरत्न सन्मति सूत्र के प्रथम काण्ड में, नयों का वर्णन विशुद्ध दार्शनिक दृष्टिकोण से किया गया है । अन्य ग्रन्थों में, तथा उसके टीका ग्रन्थों में भी यही पद्धति स्वीकार की है । यह दार्शनिक दृष्टिकोण वस्तुतः आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की देन है ।
दिगम्बर परम्परा में, इस पद्धति से नयों का विवेचन तत्वार्थ सूत्र की वृत्ति सर्वार्थ सिद्धि में, राज- वार्तिक में तथा श्लोक - वार्तिक में उपलब्ध होता है, जो अत्यन्त महत्वपूर्ण कहा जा सकता है ।
३. तर्क पद्धति - तर्क शैली से नयों का वर्णन आचार्य सिद्धसेन दिवाकर के न्याय ग्रन्थ न्यायावतार से प्रारम्भ होता है । श्वेताम्बर परम्परा के महान तार्किक आचार्य वादिदेवसूरि ने स्वप्रणीत न्याय ग्रन्थ प्रमाण
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