Book Title: Jain Nyayashastra Ek Parishilan
Author(s): Vijaymuni
Publisher: Jain Divakar Prakashan

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नय-निरूपणा | १०१ एकत्व और अनेकत्व । इसका समाधान नयवाद करता है, कि द्रव्यदृष्टि से आत्मा नित्य है, पर्यायदृष्टि से आत्मा अनित्य है। चैतन्य स्वरूप की अपेक्षा से आत्मा एक है। व्यक्ति को अपेक्षा से आत्मा अनेक हैं। अतः नयवाद को अपेक्षावाद भी कहा जाता है । __नयवाद को देशना का प्रयोजन क्या है ? इसके सम्बन्ध में कहा गया है, कि श्रत, यह विचारात्मक ज्ञान है, नय भी एक प्रकार से विचारात्मक ज्ञान होने से थ त में ही समा जाता है। यहाँ पर प्रश्न यह होता है, कि थ त का निरूपण हो जाने के बाद नयों को उससे भिन्न करके नयवाद की देशना अलग क्यों की जाती है ? जैन दर्शन की एक विशेषता नयवाद के कारण मानो जाती है। लेकिन नय तो श्रत है, और श्रुत कहते हैं, आगम प्रमाण को। थ त प्रमाण में अर्थात् आगम प्रमाण में नय का समावेश हो जाता है। फिर उसकी अलग देशना क्यों ? समाधान में कहा गया है, कि किसी भी विषय को सर्वांश में स्पर्श करने वाला विचार श्रत है, और उसी विषय के किसी एक अंश को स्पर्श करने वाला विचार नय होता है। नय न प्रमाण है, और न अप्रमाण । जैसे कि हाथ की अंगुली के अग्र भाग को अँगुली नहीं कह सकते, और न अँगुली नहीं है, यही कह सकते हैं । फिर भी वह अँगुली का अंश तो है हो । नय भी श्रुत प्रमाण का अंश है। अतः समग्र विचारात्मक श्रत से अंश विचारात्मक नय का निरूपण भिन्न किया है। नयों के अन्य भेद प्रकारान्तर से भी सात नयों के दो भेद किये जाते हैं --शब्दनय और अर्थनय । जिसमें अर्थ का विचार प्रधान रूप से किया जाता है, वह अर्थ नय होता है । जिसमें शब्द का मुख्य रूप से विचार हो, वह शब्द नय कहा जाता है। प्रथम नय से ऋजुसूत्र प्रर्यन्त चार अर्थ नय हैं, और शेष तीन शब्द नय हैं । नय के दो भेद इस प्रकार भी हैं-ज्ञान नय और क्रिया नय । नय के दो प्रकार अन्य भी हैं--निश्चय नय और व्यवहार नय । __ सन्मति-तर्क प्रकरण में नय सन्मति तर्क प्रकरण ग्रंथ आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की एक अमर कृति है । पूर्व आचार्यों के ग्रन्थों की समीक्षा करके आचार्य ने इसकी रचना की है । उत्तर काल भावी आचार्यों को कृतियों पर सन्मति सूत्र का पूरा-पूरा प्रभाव पडा है । इसकी भाषा प्राकृत है। विषय न्याय एवं तर्क है । प्रस्तुत For Private and Personal Use Only

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