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८४ | जैन न्यायशास्त्र : एक परिशीलन
शब्द का प्रयोग नहीं ही करना चाहिए । इस प्रकार मानने वाला और अन्य नयों का निषेध करने वाला, अभिप्राय एवंभूत नयाभास है । जैसे विशिष्ट चेष्टा से शून्य घट वस्तु 'घट' शब्द का वाच्य नहीं है, क्योंकि घट शब्द की प्रवृत्ति निमित्त क्रिया नहीं है । जैसे कि घट शब्द में । प्रवृत्ति निमित्त मुख्य है ।
१. अर्थ नयाभास - अर्थ का अभिधान करने वाला और शब्द का निषेध करने वाला दृष्टिकोण अर्थ नयाभास कहा गया है ।
२. शब्द नयाभास - शब्द का अभिधान करने वाला और अर्थ का निषेध करने वाला शब्द नयाभास कहा गया है ।
३. अर्पित अर्थात् विशेष को स्वीकार करने वाला और अनर्पित अर्थात् सामान्य का निषेध करने वाला, अर्पित नयाभास है ।
४. अर्पित का विधान करने वाला और अर्पित का निषेध करने वाला अनर्पित नयाभास |
५. व्यवहार नयाभास - लोक व्यवहार को अंगीकार करने वाला, और तत्त्व का निषेध करने वाला, व्यवहार नयाभास होता है ।
६. निश्चय नयाभास - तत्त्व को अंगीकार करके लोक व्यवहार का निषेध करने वाला निश्चय नयाभास कहा जाता है ।
७. ज्ञान नयाभास - ज्ञान को स्वीकार कर, क्रिया का निषेध करने वाला, ज्ञान नयाभास है ।
८. क्रिया नयाभास - क्रिया को स्वीकार करके ज्ञान का निषेध करने वाला, क्रिया नयाभास कहा जाता है । जिन शासन में ज्ञान और क्रिया से मोक्ष की प्राप्ति होती है ।
नव्य-न्याय-युग में प्रमाण
जैन दर्शन के विकास क्रम को चार विभागों में विभक्त किया गया है । जिन मनीषी विद्वानों ने यह विभाजन किया है, उन्होंने जैन दर्शन के मर्म को समझ कर ही वैसा किया है । विभाजन तर्कसंगत है, और जैन दर्शन की प्रकृति के अनुकूल भी है । विभाजन को रूप-रेखा इस प्रकार की है, जिसमें विकास क्रम का परिपूर्ण रूप परिलक्षित हो जाता है
१. आगम युग - इसमें मूल आगम तथा उसके उप-विभागों एवं अंगों का समावेश हो जाता है । द्वादश अंग, द्वादश उपांग, छह छेद, मूल, दो चूलिका तथा दश प्रकीर्णक । आगम के व्याख्या ग्रन्थ- 1 -निर्युक्ति,
चार
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