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वस्तु का लक्षण | ८३
तर्क युग में, नयाभासों पर गम्भीरता से विचार किया है । जितने प्रकार के नय हैं, उतने ही प्रकार के नयाभासों का कथन, तर्क ग्रन्थों में किया गया है ।
द्रव्य मात्र को ग्रहण करने वाला, और पर्याय का निषेध करने वाला, द्रव्यार्थिक नयाभास है । पर्याय मात्र को ग्रहण करने वाला किन्तु द्रव्य का निषेध करने वाला, पर्यायार्थिक नयाभास है । ये दोनों मूल नयाभास हैं ।
१ नैगमाभास - धर्मी और धर्म, अर्थात् द्रव्य और गुण में, अनेक गुणों में अथवा द्रव्यों में एकान्त भेद स्वीकार करने वाला, नैगमाभास । जैसे नैयायिक और वैशेषिक दर्शन ।
२. संग्रह नयाभास - एक मात्र सत्ता को अंगीकार करने वाला और समस्त विशेषों का निषेध करने वाला, संग्रह नयाभास है । जैसे समस्त अतवादी दर्शन और साँख्य दर्शन ।
३. व्यवहार नयाभास- - द्रव्य और पर्याय का अवास्तविक भेद स्वीकार करने वाला नय, व्यवहार नयामास है । जैसे चार्वाक दर्शन । यह दर्शन प्रमाण से सिद्ध जीव द्रव्य और पर्याय आदि के भेद को काल्पनिक कहकर, अस्वीकार करता है, और स्थूल लोक व्यवहार का अनुयायो होने से भूतचतुष्टय का विकार मात्र स्वीकार करता है ।
४. ऋजुसूत्र नयाभास -- केवल वर्तमान पर्याय को स्वीकार करने वाला और त्रिकालवर्ती द्रव्य का सर्वथा निषेध करने वाला, ऋजुसूत्र नयाभास है, जैसे कि बौद्ध दर्शन ।
५. शब्द नयाभास - काल आदि के भेद से अर्थ भेद को ही स्वीकार करने वाला और अभेद का निषेध करने वाला, शब्द नयाभास है । जैसे मेरु था, है और रहेगा - शब्द भिन्न अर्थ के ही प्रतिपादक है । क्योंकि वे भिन्न कालवाची शब्द हैं। जो भिन्न कालवाची शब्द होते हैं, वे भिन्नार्थक ही होते हैं, जैसे अगच्छत्, पठति, भविष्यति, आदि शब्द |
६. समभिरूढ नयाभास - पर्यायवाचक शब्दों के अर्थ में भिन्नता ही मानने वाला, और अभिन्नता का निषेध करने वाला, समभिरूढ नयामास है । जैसे कि इन्द्र, शक्र और पुरन्दर आदि शब्दों का अर्थ भिन्न-भिन्न है, क्योंकि वे शब्द भिन्न-भिन्न हैं । जैसे करी, कुरंग आदि शब्द |
७. एवंभूत नयाभास - जिस शब्द से जिस क्रिया का बोध होता है, वह क्रिया जब किसी वस्तु में न पाई जाए, तब उस वस्तु के लिए उस
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