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प्रमाण और नय | ५६
नय विचार किसी विषय के सापेक्ष निरूपण को नय कहा जाता है। किसी एक या अनेक वस्तुओं के विषय में भिन्न-भिन्न मनुष्यों के अथवा एक ही व्यक्ति के भिन्न-भिन्न विचार होते हैं । यदि प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि से देखा जाए, तो ये विचार अपरिमित हैं। उन सबका विचार प्रत्येक को लेकर करना असम्भव है। अपने प्रयोजन के अनुसार अतिविस्तार और अतिसंक्षेप दोनों को छोड़कर किसी विषय का मध्यम दृष्टि से प्रतिपादन करना ही नय है । वक्ता के अभिप्राय विशेष को नय कहा गया है। नय के भेद
नय के संक्षेप में दो भेद हैं-द्रव्याथिक और पर्यायाथिक । संसार में प्रत्येक वस्तु भिन्न भी है, और अभिन्न भो है। वस्तुओं में समानता और असमानता, दोनों अंश होते हैं । अतः वस्तु मात्र को सामान्य-विशेष, उभयात्मक कहा गया है । सामान्यगामी विचार द्रव्यार्थिक नय होता है, और विशेषगामी विचार पर्यायार्थिक नय होता है। द्रव्यार्थिक नय के तीन भेद होते हैं, और पर्यायाथिक नय के चार भेद होते हैं। नय के सात भेद होते हैं। द्रव्य नय, पर्याय नय का खण्डन नहीं करता। पर्याय नय, द्रव्य नय का खण्डन नहीं करता। परन्तु अपनी दृष्टि को प्रधान रखकर, दूसरी को गौण समझता है । दोनों अपने को मुख्य, और दूसरे को गौण समझते हैं, पर विरोध नहीं करते हैं । सामान्य और विशेष
___सामान्य और विशेष, दोनों वस्तु के धर्म हैं । वस्तु में अन्य धर्मों के समान, ये दोनों भी रहते हैं। सामान्य और विशेष को समझने के लिए एक दृष्टान्त दिया जाता है। जैसे किसी ने सहसा सागर को देखा। वह एक विशाल जलराशि है। यह सामान्य का परिज्ञान है, लेकिन जब व्यक्ति सागर के आकार-प्रकार को देखता, आयतता-दीर्घता को देखता है, और उसके रंग-रूप को देखता है, तब वह उसके विशेष धर्मों को देखता है। सागर सामान्य है, और तरंग विशेष है। सामान्य को ग्रहण करना, द्रव्यदृष्टि है । विशेष को ग्रहण करना, पर्याय दष्टि है । मूल में तो नय के दो भेद हैं-द्रव्याथिक नय और पर्यायाथिक नय। नयों के सात भेद
दो नयों के मिलकर सात भेद होते हैं । जैसे कि नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत । नैगम नय का विषय सबसे
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