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वस्तु का लक्षण | ७३
हैं - अस्ति नास्ति, अस्ति अवक्तव्य एवं नास्ति अवक्तव्य । त्रिसंयोगी भंग यह है - अस्ति, नस्ति, अवक्तव्य |
अनेकान्त दृष्टि
अनेकान्त का अर्थ है - - अनेक धर्म । प्रत्येक वस्तु में अनेक धर्म होते हैं । अतएव वह अनेकान्तात्मक कही जाती है । यदि चारों दिशाओं से हिमगिरि के फोटो लिए जाएँ, तो सब फोटो एक जैसे नहीं होंगे, फिर भी वे सब फोटो हिमगिरि के ही होंगे । अनेक दृष्टियों से एक ही वस्तु अनेक रूपों में नजर आती है। आम के फल को कटहल की अपेक्षा छोटा और बेर की अपेक्षा बड़ा कहा जाता है । अपेक्षाभेद से एक ही वस्तु छोटी-बड़ी हो सकती है । एक ही व्यक्ति अपेक्षाभेद से पिता, पुत्र, पौत्र, भ्राता, पति, मातुल और श्यालक आदि हो सकता है । किसी भी प्रकार का विरोध नहीं आता । एक ही मनुष्य अपेक्षाभेद से अध्यापक, सेवक और स्वामी आदि हो सकता है । बस, यही बात अनेकान्त के विषय में भी है । एक ही वस्तु को अपेक्षाभेद से है, नहीं है, तथा अवक्तव्य भी कहा जा सकता है ।
जो पुस्तक कमरे में है, वह पुस्तक कमरे के बाहर नहीं है । यहाँ पर है, और नहीं में किसी प्रकार का विरोध नहीं आता । यह अविरोध अनेकान्त दृष्टि का फल है । शीत और उष्ण स्पर्श के समान, अस्ति और नास्ति में विरोध नहीं हो सकता । क्योंकि विरोध तभी कहा जा सकता है, जबकि एक ही काल में एक ही स्थान पर, दोनों धर्म एकत्रित होकर न रहें, लेकिन स्वचतुष्टय की अपेक्षा अस्तित्व और पर चतुष्टय की अपेक्षा नास्तित्व, रह सकते हैं । यहाँ किसी प्रकार का विरोध नहीं है । विरोध कब होता है, जबकि स्वचतुष्टय की अपेक्षा अस्ति, और स्वचतुष्टय की अपेक्षा ही नास्ति कहा जाए । उस स्थिति में विरोध कहा जा सकता है । लेकिन अपेक्षाभेद से दोनों में, विरोध नहीं होता है ।
स्याद्वाद और सप्तभगी
स्वचतुष्टय की अपेक्षा वस्तु अस्ति रूप है, और पर चतुष्टय की अपेक्षा नास्ति रूप है । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का कथन सरलता से द्रव्य में, अस्ति एवं नास्ति समझाने के लिए है । स्व-रूप में वस्तु है, और पर-रूप से नहीं है । स्व-रूप को स्वात्मा और पर रूप को परात्मा कहते हैं ।
जव वस्तु के स्वरूप की अपेक्षा होती है, तब अस्ति कहते हैं, और जब पर-रूप की अपेक्षा होती है, तब नास्ति कहते हैं । यह प्रथम और
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