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प्रमाण और नय | ६१
इन तीनों नयों की मुख्य रूप से सामान्य दृष्टि रहती है । अतः ये द्रव्यार्थिक नय कहे जाते हैं।
४. जो विचार भूत और भविष्यकाल की उपेक्षा करके, वर्तमान पर्याय मात्र को ग्रहण करे उसको ऋजुसूत्र नय कहा गया है।
५. जो विचार शब्द प्रधान हो, लिंग एवं कारक आदि शब्दगत धर्मों के भेद से अर्थ में भेद माने, उसको शब्द नय कहा जाता है।
६. जो विचार शब्द के रूढ अर्थ पर निर्भर न रहकर, व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ के अनुसार समान अर्थ वाले शब्दों में भी भेद माने, उसको समभिरूढ नय कहा गया है।
७. जो विचार शब्दार्थ के अनुसार क्रिया होने पर ही उस वस्तु को तद्रूप स्वीकार करे उसको एवंभूत नय कहा जाता है । पीछे के चार नय पर्यायाथिक नय कहे जाते हैं।
अध्यात्मशास्त्र में नय विचार नयों के सम्बन्ध में एक सिद्धान्त है-'जितने प्रकार के वचन, उतने प्रकार के नय हैं ।" नय का वचन के साथ सम्बन्ध है । यदि वचन के साथ उसका सम्बन्ध है, तो उपचार से नय भी वचनात्मक कहा जा सकता है। प्रत्येक नय, वचन द्वारा प्रकट किया जा सकता है। अतएव वचन को भी नय कह सकते हैं । इस प्रकार प्रत्येक नय दो प्रकार का होता है-भाव नय और द्रव्य नय । ज्ञानात्मक नय को भाव नय कहते हैं, और वचनात्मक नय को द्रव्य नय कहते हैं। नय के दो भेद
मूल में नय के दो भेद हैं-निश्चय और व्यवहार । व्यवहार नय को उपनय भी कहते हैं । जो वस्तु के यथार्थ स्वरूप को प्रकट करता है, उसको निश्चय नय कहते हैं। जो दूसरे पदार्थों के निमित्त से अन्य रूप प्रकट करता है, उसे व्यवहार नय कहा गया है । जैसे कि घृत घट है। निश्चय नय के भेद
निश्चय नय के दो भेद हैं - द्रव्य नय और पर्याय नय । द्रव्य नय सामान्य को ग्रहण करता है, और पर्याय नय विशेष को। द्रव्य नय के तीन भेद हैं- नैगम, संग्रह और व्यवहार । पर्याय नय के चार भेद हैं-ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत । जिनभद्रगणि द्रव्य नय के चार भेद और पर्याय नय के तीन भेद मानते हैं । सिद्धसेन दिवाकर द्रव्यनय के तीन और पर्याय नय के चार भेद मानते हैं।
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