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भारतीय दर्शनों का संक्षिप्त परिचय | ३१
योग के अष्ट अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । समाधि के दो भेद हैं-सबीज समाधि और निर्बीज समाधि । योग साधना से समाधि प्राप्त करना ही योगी का एकमात्र लक्ष्य होता है । योगी परम शान्त और परम प्रसन्न होता है । वह मनोविजेता होता है ।
मीमांसा दर्शन
मीमांसा दर्शन का सीधा सम्बन्ध वेद से है । वेद को परम सत्य माना गया है । वेद से बढ़कर अन्य कोई शास्त्र नहीं हो सकता । वेद में सब कुछ है, उससे बाहर कुछ भी नहीं हो सकता । मीमांसा शब्द का अर्थ है - किसी वस्तु के स्वरूप का यथार्थ विवेचन । मीमांसा का अर्थ ही हैविवेचना | पूजित विचार को और पूजित वचन को मीमांसा कहा जाता है । वेद के विचार और वचन दोनों ही पूजित होते हैं ।
मीमांसा के भेद
मीमांसा के दो भेद हैं- कर्म-मीमांसा और ज्ञान-मीमांसा । यज्ञों की विधि तथा अनुष्ठान का वर्णन, कर्म मीमांसा का विषय है। जीव, जगत् और परमात्मा के स्वरूप का तथा सम्बन्ध का प्रतिपादन, ज्ञानमीमांसा का विषय है । कर्म मीमांसा को पूर्वमीमांसा तथा ज्ञान मीमांसा को उत्तरमीमांसा कहा जाता है । उत्तरमीमांसा को आजकल वेदान्त कहा जाता है और पहली को केवल मीमांसा कहा जाता है ।
महर्षि जैमिनि
मीमांसा दर्शन के सूत्रकार हैं - जैमिनि । भाष्यकार हैं- शबर स्वामी । मीमांसा दर्शन के इतिहास में, कुमारिल भट्ट का युग, सुवर्ण युग के नाम से कहा जाता है । भट्ट के अनुयायी भाट्ट कहे जाते हैं । इस दर्शन के अन्य आचार्यों में प्रभाकर मिश्र भी अत्यन्त प्रसिद्ध हैं । प्रभाकर के अनुयायी प्राभाकर कहे जाते हैं । भाट्ट और प्राभाकर, दोनों सम्प्रदाय अलग-अलग । दोनों में काफी विचारभेद, मतभेद और साथ ही बहुत गहन व्याख्याभेद भी रहता है ।
पदार्थ संख्या
मीमांसा दर्शन मान्य पदार्थ आठ हैं- द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, परतन्त्रता, शक्ति, संख्या और सादृश्य । भाट्टों के अनुसार पदार्थ पाँच हैंद्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य और अभाव । वैशेषिक दर्शन में नव द्रव्य हैं ।
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